हम इन बातों पर विचार कर ही रहे थे कि हमारे मित्र हमें अखण्ड ज्योति मासिक पत्रिका देने आए| जैसे ही मैंने इसके पृष्ठ पलटे कुछ चोकाने वाले लेख पढने को मिले|
मित्रो! अध्यात्म का जो वर्तमान स्वरूप है, इससे हमें कितनी खीज आती है, कितनी चिढ़ आती है, कौन सा अध्यात्म? जिसमें देवी-देवताओं को चापलूस और स्वार्थी समझा जाता है। चापलूस और स्वार्थी से उल्लू सीधा करने के लिए तरह-तरह के जाल बिछाए जाते है। आज का अध्यात्म यही है । इसी का नाम आज का अध्यात्म है। अमुक पूजा करेंगे, अमुक पाठ करेंगे और देवी से यह लाएँगे, देवता से यह लाएँगे, फलाने जी से यह लाएँगे, ढिमाके जी से यह लाएँगे और उससे अपनी जिंदगी में हेर-फेर करेंगे। जिंदगी तो मैं ऐसे जिऊँगा कि ऐसे ही घटिया होगी, ऐसे ही कमीना निकम्मा बनूँगा दुष्ट बना रहूँगा।
यह क्रिया कीजिए, तो अमुक मिलेगा। इस देवता को पूजिए, तो यह मिलेगा। यह मंत्र जपिए तो यह मिलेगा। बेटे! यह धंधा मेरा नहीं है और मुझे इन बातों से चिढ़ है। क्यों चिढ है? इसलिए कि मैंने हजारों बार कहा है, लाखों बार कहा है कि आदमी के र्इमान को बदल देने का नाम अध्यात्म है। र्इमान को बदले बिना कोर्इ भगवान प्रसन्न नहीं होता, कोर्इ देवता प्रसन्न नहीं हो सकता। कोर्इ सिद्धि प्रकट नहीं हो सकती और चमत्कार नहीं आ सकता। किसी आदमी के भीतर चमत्कार तभी आएगा। जब वह अपने र्इमान को बदलने की कोशिश करेगा। चिंतन को बदलने की कोशिश करेगा। जो अपने चिंतन को नहीं बदलना चाहता, अपने चाल-चलन को नहीं बदलना चाहता, अपने दृष्टिकोण को बदलना नहीं चाहता और अपना स्तर जैसे का तैसा रखना चाहता है। जो केवल क्रिया-कृत्यों के द्वारा, कर्मकांडो के द्वारा देवी-देवताओं का अनुग्रह प्राप्त करना चाहता है, स्वर्ग पाना चाहता है, मुक्ति पाना चाहता है, चमत्कार पाना चाहता है, तो यह असंभव है। अगर ऐसा हुआ तो मुझे बताइएगा।
मित्रो! हमारा अध्यात्म महँगा है। हमारे अध्यात्म में गहरार्इ है, कठोरता है। मेरा अध्यात्म वह है, जिसमें आदमी को तिलमिलाना पड़ता है। तिलमिलाने वाले अध्यात्म का आदमी, कीमत पाता है। मैं यकीन दिला सकता हूँ कि इसमें आदमी तिलमिलाता तो है, पर पाता जरूर है। यह बात मैं सौ फीसदी सच कह सकता हूँ और गारंटी से कह सकता हूँ और शपथपूर्वक अपने अनुभवों की साक्षी देकर कह सकता हूँ कि अगर आपने महँगा अध्यात्म खरीदा है, तो आप महँगी सिद्धियाँ पाएँगे। महँगे चमत्कार पाएँगे, महँगा आनंद पाएँगे और महँगी शांति पाएँगे। अगर आप कीमत चुकाएँगे तो। और अगर कीमत नही चुकाएँगे और ये खेल-खिलौने करेंगे, तो आप अपने मन को समझा भले ही लें, मन को बहका भले ही लें। आपकी मरजी है, जैसा चाहें वैसा करें, लेकिन आप कुछ पा नहीं सकेंगे। बेटे! एक ही विधि है, एक ही विधान है और वह है कि अपने आप का स्तर ऊँचा उठाइए। अपने सोचने का तरीका उच्चस्तरीय बनाइए। अपने जीवन जीने के क्रियाकलाप में कुछ शानदार परिवर्तन कीजिए। नहीं महाराज जी! यह झगड़ा तो हमसे नहीं हो सकता, मैं क्रिया-कृत्य कर लूँगा। आप चाहें तो मुझमें कोर्इ क्रिया करा लें। बेटे! मुझसे क्यों पूछता है। मेरे जैसे हजारों बैठे होंगे, जो आपको कोर्इ न कोर्इ बहाना, कोर्इ न कोर्इ विधि, कोर्इ न कोर्इ तरकीब बता देंगे कि ऐसे प्राणायाम किया करें। यह कोर्इ भी बता देगा कि नाक में रस्सी पिरो लेना। इस तरह के खेल-खिलौने कोर्इ भी बता देगा।
मित्रो! आप तो माला में, क्रिया में विश्वास करते हैं। न तो आपको गुरु में विश्वास है और न भगवान में, न गायत्री माता में विश्वास है। आपको लोभ पर विश्वास है, मोह पर विश्वास है और किसी पर विश्वास नहीं है। गायत्री माता पर आपको कोर्इ विश्वास नहीं है। गायत्री माता कोर्इ फल नहीं देती, तो कल ही सारे कमंडल फेंक देगा और फिर भैरों जी को लाएगा। फिर उसमें भी लात मारेगा और फिर से हनुमान जी को लाएगा । फिर उसे भी मारेगा लात और फिर किसी और को ले आएगा। बेटे! तेरा किसी पर विश्वास नहीं है, सिवाय तेरी चालाकी के । अगर तेरी श्रद्धा किसी एक पर रही होती, तो वह फल देती। बेटे! मुझे यही गायत्री मंत्र आता है। न हम पाँच ॐ लगाते हैं, न तीन लगाते हैं। न मैं पाँच जानता हूँ न तीन जानता हूँ। मैं तो केवल गायत्री मंत्र जपता रहा और मेरा गायत्री मंत्र इतना चमत्कारी है कि इस गायत्री मंत्र को मैं ब्रह्मास्त्र कहता रहा हूँ और यह बताता रहा हूँ कि इसके बराबर कोर्इ शक्तिमान नहीं है।
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