‘‘युवाओं ने अपनी डगर बदली है। उनमें अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए अपना देश, अपनी धरती, अपनी संस्कृति और पुरखों की विरासत को पहचानने, उसे अपनाने - अपना
बनाने की ललक बढ़ी है। वे समाज का कायाकल्प करने के लिए प्रयत्नशील हैं। इनमें से
कई तो ऐसे हैं, जो विदेशों में अपना भरा-पूरा कैरियर छोड़कर अपने देश के गाँव को सँवार रहे
हैं। इनमें से एक मैं भी हूँ। ‘‘ऐसा कहते हुए रिकिन गांधी मुस्करा दिए।
उन्होंने मैसाच्यूसेट्स इन्स्टीटयूट ऑफ टेक्नोलॉजी, अमेरिका से एयरोस्पेस
इंजीनियर की उच्च शिक्षा पाई। बाद में अमेरिका वायुसेना में शामिल हुए, लेकिन अपने देश की मिट्टी की महक उन्हें भारत खींच लाई। 29 वर्षीय रिकिन गांधी ने अपने
सेवाकार्य का अनोखा तरीका खोजा। उन्होंने हैंडीकैम का प्रयोग सोशल नेटवर्किग में
हथियार के तौर पर किया।
तरीका सीधा-सादा था। उन्होंने किसानों की समस्याएँ, समाधान और सफलता की कहानियाँ रिकार्ड की और अपने द्वारा स्थापित संस्था
"डिजिटल ग्रीन" के जरिए पक्का इंतजाम किया कि ये विडियो उन लोगों तक
पहूँचें, जिन्हें इनकी सख्त जरूरत है। उन्होंने दर्शकों की भाषा और सामाजिक-आर्थिक
पृष्ठभूमि के मद्देनजर वीडियो को स्थानीय रूप में ही रखा है। अपने इस प्रयास में
उन्होंने आंध्रप्रदेश , उड़ीसा, झारखंड, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक के लगभग 300 गाँवों के 27000 किसानों की मदद करने की कोशिश की है।
अपने इस प्रयास में वे और भी ऐसे कई युवाओं-युवतियों से प्रत्यक्ष या परोक्ष
रूप में मिले। इनसे मिलकर उन्हें लगा कि सचमुच युवाओं ने अपनी डगर बदली है। इनमें
से एक मुकुल कनिटकर हैं, जो स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं के आधार पर युवाओं को प्रेरित करने का कार्य
कर रहे है। इन्होंने एक पुस्तक लिखी - परिक्षा दें हँसते-हँसते, जो विद्यार्थियों में काफी लोकप्रिय हुई। इनका कहना है कि स्वस्थ, सुशिक्षित, सुसंस्कारी, स्वावलंबी एवं सेवाभवी युवा ही नए भारत का निर्माण कर सकते है। ऐसी ही एक
युवती है विमला तिवारी, जो राजगढ़ के झिरी गाँव में संस्कृत के माध्यम से संस्कृति एवं संस्कार का
शिक्षण दे रही हैं। 34 वर्षीय नमन आहुजा लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओरियंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज
से डॉक्टेरट करके अब भारतीय संस्कृति को उन्नत बनाने के लिए काम कर रहे हैं।
रिकिन गांधी का कहना है कि प्राय: युवाओ की नकारात्मक बातों की चर्चा की जाती
है। यह बताया जाता है कि कितने युवक नशे से पीड़ित हैं, कितने युवा बेरोजगारी के कारण अवसाद से ग्रस्त हैं। कितने युवा डेटिंग और
मेटिंग के चक्कर में फँसे हैं। ये बातें चिंतनीय हैं, पर सच का एक पहलू यह भी है कि भारत देश का 54 प्रतिशत युवा रोज
पूजा करता है। यह ठीक है,
आज के युवा लाखों में कमाना चाहते है, पर यह भी सच है कि 72 प्रतिशत युवा चेरिटी के लिए पैसा देते हैं। सामान्य कद के दुबले-पतले रिकिन
गांधी जब सहयोगियों से चर्चा करते हैं तो वे उन्हें ऊर्जा एवं उष्मा से भर देते
हैं।
ऋतुओं के मानिंद शरीर पर भी बचपन, किशोरावस्था, जवानी और बुढ़ापा आता है। जवानी जीवन का, शरीर का वंसत है। मौसम तो घूम-फिर
कर बार-बार आते है, पर जवानी बार-बार नहीं आती। इसलिए गरम लोहे पर चोट करने की जरूरत है, वक्त बीतने पर ठंड़े लोहे को पीटते रह जाना पड़ेगा। यौवन का उपयोग देश, धरती एवं मानवता के लिए होना ही चाहिए।
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साँझ के पाँच बजने वाले थे। परमपूज्य गुरूदेव ने अपने ऊपर वाले कक्ष में काम
कर रहे कार्यकर्ताओं से कहा-बेटा! तुम लोग अब जाओ, माताजी ऊपर आने वाली
है। ‘‘ तभी वंदनीय माताजी सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर वाले कक्ष में पहुँची। गुरूदेव ने उनका
हाथ पकड़कर उन्हें पलंग पर बैठाया। उन्हें अपने हाथों से एक गिलास पानी लाकर दिया।
पास खड़ा एक कार्यकर्ता इस दृश्य को अभिभूत मन से देख रहा था। इस पर माता जी बोलीं
- "बेटा! पुरूष नारी को स्त्री न
समझकर माँ की नजर से देखे और स्त्री यदि स्वंय में मातृत्व होने का एहसास जगा पाए
तो समाज में नारी से संबंधित समस्याएँ स्वत: ही हल हो जाएँगी। समाज का वातावरण भी
पवित्र बनने लगेगा।"
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