चार अक्टूबर 2014, दशहरा के अगले
दिन प्रातः 4:30 बजे जैसे ही मैं
घूमने के लिए निकला मुझे अजीब सी घुटन (Suffocation) महसूस हुई। मैने देखा आसमान में अजीब सा
धुआॅं, धुंधलापन छाया
हुआ था। हमारे NIT में प्रातःकाल की वायु इतनी प्राणवान होती है कि 20-25 मिनट भ्रमण कर
पूरा शरीर आनन्द से खिल उठता है। अपने अभ्यास के अनुसार मैंने जैसी ही गहरी-गहरी
श्वास व तेज चाल प्रारम्भ की मेरे गले में बेचैनी व खराश होने लगी। ऐसा क्यों हो
रहा है, मैंने सोचना
प्रारम्भ किया। तभी मुझे याद आया कि कल दशहरा था भारी मात्रा में पटाखों का
प्रदूषण हमने कर डाला जो कि प्रकृति हमें लौटा रही है। वास्तव में
क्रिया-प्रतिक्रिया का अटल सिद्धान्त सब जगह काम करता है। यदि हमने प्रकृति में
विष भरा तो वह विष हमें भी पीना पड़ेगा।
हम अपनी
परम्पराओं को पालन करते हुए विवेक सम्मत आचरण नहीं करते। हमारे ऋषियों ने
सर्वप्रथम गणेशपूजन करने के लिए कहा था अर्थात विवेक के देवता गणेश जी से पहले
विवेक माॅंगे तब कोई पर्व मनाए। मैं ये सारी बातें सोच रहा था तभी मेरे मन में
विचार आया कि कल हमने रावण जलाया अथवा प्रदूषण रूपी रावण पैदा कर दिया। अरे यह
हमने क्या किया? हाॅं हमने अपनी
मूर्खता से एक ओर नये राक्षस को जन्म दे डाला जो हमें प्रत्यक्ष तो नहीं दिखता
परन्तु घुन की तरह हमारे भीतर घुसकर हमें कमजोर बना रहा है। यह धीमा विष जो अनेक
खतरनाक रोगों को जन्म दे रहा है। प्रदूषण रूपी रावण अकेला नहीं आएगा। अपने साथ
साॅंस के रोग, अस्थमा, कैंसर, माईगे्रन, जोड़ों के दर्द
आदि अपने भाई-बन्धु भी लेकर आएगा, जिससे मानव जाति तड़फ-तड़फ कर जीने को मजबूर होगी।
वाह हम तो प्रसन्न
हो गए कि हमने रावण जला दिया उधर असुर भी प्रसन्न हो गए कि धरतीवासियों ने एक
शक्तिशाली राक्षस पैदा कर दिया अब धरती पर हमारा राज चलेगा। अब प्रश्न यह उठता है
कि यदि रावण न जलाएॅं तो क्या करें, पर्व त्यौहार कैसे मनाएॅं? ऋषि ने सनातन परम्परा के अन्तर्गत हर त्यौहार
के पीछे एक दर्शन दिया था उस दर्शन को जानकर यदि पर्व मनाएॅं तो समाज को लाभ
पहुॅंचेगा।
दशहरा के पीछे का
दर्शन यह है कि इस दिन समाज के शुभ-चिंतक, पुरोहित, विद्वान यह विशेलषण करें कि कौन-कौन से रावण (अर्थात प्रबल
आसुरी प्रवृत्तियाॅं) समाज में विध्वंस कर रही हैं। उनके लिए समाज को जागरूक
किया जाए। यदि हम गहराई से विचार करें तो आज हमारी धरती पर 24 रावण मौजूद हैं
जिनको जलाने अर्थात समाप्त करने की शीघ्र आवश्यकता आन पड़ी है। यदि हमने इनको इसी
प्रकार दाना पानी देते रहें (अर्थात बढ़ाते रहें) तो वह दिन दूर नहीं जब ये रावण हमारी
खुशियों का भक्षण कर जाएॅंगे। आप अब निश्चित रूप से जानना चाहेंगे कि ये रावण कौन-कौन
से हैं जिनसे आप सावधान रहें, अपने परिवार, समय,
मानवता को बचाने
का प्रयास करें। इन 24 रावणों की लिस्ट नीचे दी जा रही है-
1. मोबाइलों का
बढ़ता प्रयोग
2. वातावरण में
कामुकता-अश्लीलता का प्रचलन
3. खेती में रसायनिक
खादों व कीटनाशकों का अन्धाधुन्ध प्रयोग
4. रात को देर से
सोने व प्रातः देर से उठने की आदत
5. मेहनतकश जीवन की
अवहेलना
6. भोजन में मैदा, बारीक आटा व
बाजारी उत्पादों का उपयोग
7. भोजन को अधिक
पकाने की आदत
8. भोजन करने का कोई
निश्चित समय न बाँधना
9. घरों में
प्लास्टिक का बढ़ता प्रचलन
10. हानिकारक रसायनों
से युक्त सामग्री का सजावट के लिए प्रयोग
11. परिवारों में
सद्भावना-सहनशीलता का अभाव
12. अंग्रेजी दवाओं
पर निर्भरता
13. पैट्रोल-डीजल के
वाहनों का दुरुपयोग
14. विभिन्न
कार्यालयों में अनावश्यक कागजी कार्यवाही का प्रचलन
15. कार्य क्षेत्रों
में अविश्वास, असुरक्षा एवं
दुर्भावना को बढ़ावा
16. पाॅलिथीनस का
अन्धाधुन्ध प्रयोग
17. परिवारों में दो
से अधिक बच्चों का जन्म
18. जल स्त्रोतों के
प्रति संवेदनहीनता
19. गौ हत्या एवं
देसी गायों की नस्लों में भरी कमी
20. सोलर कूकर्स की
जगह माइक्रोवेव ओवन पर निर्भरता
21. सौन्दर्य
प्रसाधनों का बढ़ता प्रचलन
22. गलत पहनावा
23. खर्चीली शादियों
का प्रचलन
24. अधिक टीवी, इन्टरनेट, गपबाजी अथवा खाली
बैठकर समय काटने की आदत
इन 24 महादैत्यों से
लोहा लेने के लिए इस समय 24 अवतारों की
आवश्यकता आन पड़ी है। जब राजतन्त्र, धर्मतन्त्र, व जनतन्त्र किसी सामाजिक समस्या को सुलझाने में समर्थ नहीं
हो पाता और वह समस्या दिनोंदिन विकराल रूप धारण करती चली जाती है तब परम ब्रह्म
परमात्मा की विशेष शक्ति उस समय निवारण में काम करने लगती है उस प्रक्रिया को
अवतार की संज्ञा दी जाती है। भविष्य वक्ता की भविष्यवाणी के अनुसार सन् 2011 के आस-पास का
समय अवतारी प्रक्रिया का समय होगा।
बौद्धों के
अनुसार जब धर्म का लोप होगा तब बुद्ध मैत्रय बनकर धरती पर मानव धर्मकी स्थापना
करेंगे। मैत्रय का अर्थ है पूरे विश्व का मित्र अर्थात करुणा व दया की मूर्ति जो
सदैव सबका उपकार करती है।
किसी अन्य उच्च
साधक की दिव्य दृष्टि के अनुसार 24000 सहस्त्रार सिद्ध महायोगी भारत की धरती पर जन्म ले चुके
हैं। शीध्र ही वे अपने स्वरूपों को पहचानेंगे एवं इन महादैत्यों को परास्त करने का
अभियान प्रारम्भ कर देंगे। ब्रह्मतेज एवं क्षात्रतेज से सम्पन्न इन दिव्य आत्माओं
को महान कर्मों को इतिहास महावतार के नाम से हजारों वर्षों तक याद करेगा। जहाॅं तक
दशहरा मनाने का प्रश्न है हम अपना कत्र्तव्य पालन करें। एक नहीं 24 छोटे-छोटे पुतले
बनाकर जलूस के साथ नगर में घुमाएॅं व लोगों को इन सामाजिक समस्याओं से अवगत कराएॅं
व इनके निवारण के लिए सभी से आह्वान करें। यही सच्चे अर्थों में यथार्थरूप में
दशहरे के पर्व की शिक्षा है।
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