Monday, October 6, 2014

अहंकारी पंच लक्ष्णम् - अहंकारी व्यक्तित्व की पहचान

शास्त्र कहते हैं कि एक आदर्श विद्यार्थी में निम्न पाॅंच लक्ष्णों होने चाहिएॅं।

काकचेष्टा, बको  ध्यानं , श्वान  निद्रा  तथैव च, अल्पाहारी  , गृहत्यागी , विद्यार्थी  पञ्च लक्षणंश्लोक कहता है की विद्यार्थी के अन्दर कव्वे जैसा दृढ प्रयास, बगुले जैसी तल्लीनता, कुत्ते के सामान हलकी नीद, कम भोजन करना व घर से दूर रहने जैसे पांच लक्षण होने चाहिए| जैसे शास्त्र विद्यार्थी के पाॅंच लक्ष्ण बताता है वैसी ही लेखक ने अपने अनुभव के आधार पर अहंकारी व्यक्ति के पाॅंच लक्ष्ण नीचे दिए हैं।
1. दूसरों की छोटी-छोटी गलतियों पर भड़कता है व अपने बड़े-बड़े दोषों को भी स्वीकार नहीं करता।
2. महत्त्वपूर्ण पदों पर लम्बे समय तक बने रहता है। अपने से योग्य व्यक्तियों को उभरते देख परेशान हो उठता है। कभी अपने साथियों को नेतृत्व नहीं करने देता।
3. सदा विफलताओं का ठीकरा दूसरों के सिर फोड़ता है व सफलताओं का श्रेय स्वयं लेता है।
4. अपने समीप प्रशंसक व चापलूस रखना पसन्द करता है व जो उसको सचेत करे उसको लात मारने में भी संकोच नहीं करता।
5. जगह-जगह अपने नाम व फोटो छपवाना पसन्द करता है। जातिवाद, परिवारवाद, देववाद को बढ़ावा देता है। सदैव अपने समर्थकों से घिरे रहना पसन्द करता है। समर्थक उसकी प्रशंसा करते हैं वह समर्थकों को बढि़या उपहार प्रदान करता है।
            हम गहराई से आत्म-विश्लेषण करें कि कहीं ऐसा किसी प्रकार का अहंकारी व्यक्तित्व हमारे भीतर तो उत्पन्न नहीं हो रहा है। यदि कहीं ये झाड़-झंकार नजर आए तो तुरन्त सफाई करें अन्यथा धीरे-धीरे यह हमारे पूरी व्यक्तित्व पर छा जाएगा व हमें घोर नरक में धकेल देगा।
            अहंकारी व्यक्ति से सदा सावधान रहना चाहिए। एक बार की बात है कि एक वृक्ष पर एक बन्दर व चिडि़या रहते थे। वर्षा ऋतु आई। चिडि़या सुरक्षित अपने घोंसले में रहती व बन्दर भीग-भीग कर परेशान हो इधर-उधर मारा-मारा फिरता। एक बार चिडि़या ने प्रेमपूर्वक तरस खा कर आग्रह किया - ‘‘बन्दर मामा, वर्षा ऋतु बीतने पर आप भी प्रयत्न कर मेरी तरह एक सुरक्षित कवच बना लीजिए जिससे भविष्य में आपको कष्ट न हो।’’ बन्दर को क्रोध आया-‘‘मुर्ख तू मुझे शिक्षा देती है अभी तूझे बताता हूॅं। उसने तुरन्त चिडि़या का घोंसला तोड़ दिया।
            यदि आप शक्तिशाली नहीं है अपना बचाव नहीं कर सकते तो कभी भी अहंकारी को सीख न दें अन्यथा वह आपके लिए कुछ न कुछ परेशानी खड़ी कर देगा।

आज के समय में लोगों में अहंकार की प्रवृति बहुत बुरी तरह बढ़ रही है किसी को कुर्सी का अहंकार, किसी को ज्ञान का तो किसी को तप का अहंकार हो जाता है यहाॅं तक कि लोगों को दान, त्याग का भी अहंकार होने लगता है। जहाॅं अहंकार पनपता है समर्पण कम होता चला जाता है। भगवान अपने भक्त का अहंकार कभी सहन नहीं करते। एक बार नारद जी को अपने इन्द्रिय संयम पर बहुत अहंकार हो गया। भगवान विष्णु ने उनके अहंकार को दूर करने के लिए अपनी माया से एक सुन्दर स्त्री प्रकट की। सारे नगर में यह शोर मच गया कि नगर में एक बहुत सुन्दर स्त्री है व उसका स्वयंबर होने वाला है उसने घोषणा की कि उसके स्वयंबर में उसी के समान सुन्दर युवक आएगा उससे वह विवाह करेगी। वह युवक का चुनाव उसकी सुन्दरता के आधार पर करेगी। नारद जी को भी जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि किस स्त्री की चर्चा सब जगह फेली हुई है वे भी उस स्त्री से मिल कर उसको शास्त्र ज्ञान प्राप्त करने के उद्देश्य से उसके पास पहुॅंचे जिससे उसका गृहस्थ धर्म सुखी हो सके। भगवान की माया बड़ी प्रबल है नारद जी जैसे महातपस्वी को भी उस स्त्री से आसक्ति उत्पन्न हो गई व नारद जी ने सोचा यदि मुझे भगवान हरि का सुन्दर रूप मिल जाए तो मेरा विवाह उससे हो जाएगा। नारद जी स्वयंबर से पहले दिन विष्णु लोक पहुॅंचे व भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि उन्हें कुछ समय के लिए हरि का रूप प्रदान करें। अब नारद जी बड़ी प्रसन्नतापूर्वक स्वयबर में पहुॅंचे जहाॅं हजारों युवक विभिन्न-विभिन्न जगहों से आए हुए थे। वह स्त्री सभी युवकों को ध्यान से देख रही थी व आगे बढ़ती जा रही थी जैसे ही नारद जी के पास से निकली वह डर कर आगे भाग गई। नारद जी बार-बार उसको अपना चेहरा दिखाने का प्रयत्न करते परन्तु वह भयभीत हो कर भागती वहाॅं उपस्थित सभी युवक यह नजारा देखकर जोर-जोर से हॅंसने लगे। नारद जी बड़े भारी मन से वहाॅं से अपने घर लौटे व एक जलाश्य के समीप जा कर अपना चेहरा देखा तो उन्हें सारा खेल समझ में आ गया। क्रोधित होकर भगवान विष्णु के पास पहॅंचे जहाॅं वही स्त्री भगवान के चरण दबा रही थी। भगवान ने नारद जी से कहा तपस्वी को कभी अपनी साधना का अहंकार कर मर्यादाओं का खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। नहीं तो एक दिन वह जग हॅंसाई का पात्र बनने लगता है। यही शिक्षा देने के लिए मैंने यह सारी माया रची थी।

            अहंकारी के साथ स्वार्थी लोग जुड़ते हैं जो अपनी आत्मा का हनन कर भौतिक लाभों के चक्कर में लगे रहते हैं। जैसे ही अहंकारी का पतन होता है सभी उसका साथ छोड़कर भागते हैं व उसकी दुर्दशा होती है। अतः न तो स्वयं अहंकारी बने न कभी अहंकारी का साथ देकर पाप के भागी बनें।

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