घटना उन दिनों की
है, जब बगदाद में
खलीफा उमर का शासन था। वे अपनी प्रजा के सच्चे अर्थों में संरक्षक थे। उनके राज
में कभी प्रजा अत्याचार का शिकार नहीं हुई। खलीफा नेक दिल और इंसाफ पसंद व्यक्ति
थे। नियमों का पालन उनकी प्रजा से लेकर हर खास अधिकारी तक होता था। वे स्वयं भी
नियमों के पाबंद थे। अनुशासनप्रियता उनके स्वभाव में थी। एक बार उन्हें शिकायत
मिली कि राज्य में शराबियों का उत्पात बढ़ रहा है। खलीफा नैतिक मूल्यों को लेकर भी
अत्यंत सजग थे। उन्होंने अपने राज्य के शराबियों की लत छुड़ाने के लिए घोषणा की, ‘यदि कोई व्यक्ति
शराब पीता हुआ या पीए हुए पकड़ा गया तो उसे भरे दरबार में 25 कोड़े लगाए
जाएॅंगे।’ उनकी इस घोषणा ने
पूरे राज्य के शराबियों में खलबली मचा दी। चूंकि व्यसनों के आदी लोग इच्छाशक्ति के
अभाव में अपने व्यसन नहीं रोक रहे थे, इसलिए उन्होंने खलीफा को आदेश वापिस ले मजबूर करने के लिए
खलीफा के पुत्र को शराब पीला बाजार में छोड़ दिया। सैनिकों ने उसकी यह दशा देखकर
उसे तुरन्त खलीफा के समक्ष दरबार में पेश किया। खलीफा ने बिना संकोच आदेश दिया, ‘अपराधी की नंगी
चमड़ी पर 25 कोड़े लगाए
जाएॅं।’ दरबारियों ने
खलीफा को मनाने की बहुत कौशिश की, किंतु वे नहीं माने। अंततः खलीफा के पुत्र को कोड़े लगाए
गए। वह बेहोश होकर और कुछ ही देर में उसकी मृत्यु हो गई। उस घटना से खलीफा का राज्य
शराबियों से मुक्त हो गया। समाज में समान रूप से नियमों का पालन करने पर अनुशासन
रहता है और अनुशासन से सुगठित सामाजिक व्यवस्था स्थापित होती है।
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