कामकाजी युवाओं
की सेहत पर नजर रखने वाले देश के एकमात्र संस्थान ‘नेशनल इन्स्टीट्यूट आॅफ आॅक्युपेशनल हेल्थ’ की रिपोर्ट के
अनुसार - बीते पाॅंच साल में युवाओं की कार्यक्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ा है।
संस्थान के पाॅंच प्रमुख शहरों पर किए गए अध्ययन में मेट्रो शहरों में काम करने
वाले युवा तनाव, अनिद्रा, डायबिटीज और
मोटापे का शिकार पाए गए हैं, जिसकी वजह अनियमित दिनचर्या और बेतरतीब खान-पान को बताया
गया है।
देश में 31.2 प्रतिशत कामकाजी
युवा किसी न किसी तरह के दर्द से परेशान हैं, जिसमें माइग्रेन प्रमुख है। 65 प्रतिशत युवावर्ग दर्द के कारण छह से आठ घंटे
की सामान्य नींद भी नहीं ले पाता। 49 प्रतिशत युवाओं पर लगातार दर्द की वजह से मानसिक स्वास्थ्य
पर असर हो रहा है और 13 प्रतिशत युवाओं
को क्राॅनिक दर्द की वजह से नौकरी तक छोड़नी पड़ी है। भारतीय आयुर्विज्ञान
अनुसंधान परिषद् ने मानसिक स्वास्थ्य शोध के अंतर्गत हृदय की बीमारियों पर अध्ययन
किया, जिसमें युवाओं
में हाईपरटेंशन अथवा हाई ब्लडप्रेशर प्रमुख रूप से सामने आए। वर्ष 2001 से 2011 के बीच किए गए
अध्ययन में पाया गया कि 30 से 45 साल का 36 प्रतिशत कामकाजी
युवावर्ग हाई ब्लडप्रेशर से ग्रस्त है।
अभी हाल ही में 30 अप्रैल 2014 के दिन विश्व
स्वास्थ्य संगठन ने दिल्ली में ऐंटीबाॅयोटिक रेजिस्टेन्स पर 115 देशों की
रिपोर्ट जारी की। इस अध्ययन में भारत सहित कई प्रमुख देशों में डायरिया, मलेरिया, निमोनिया और
हेपेटाइसिस-बी आदि के कारक-वायरस के खिलाफ दवाओं का असर खत्तम पाया गया। इसका अर्थ
यह हुआ कि बीमारियों के इलाज के लिए प्रयुक्त की जाने वाली दवाओं का असर अब कम
होता जा रहा है। इस बारे में ऐंटीबाॅयोटिक स्टीवर्डशिप नेटवर्क इन इंडिया के
विशेषज्ञों का कहना है कि युवाओं के रहन-सहन व खान-पान की अस्वास्थ्यकर आदतों के
साथ ऐंटीबाॅयोटिक दवाओं का गलत इस्तेमाल दवाओं के असर को कम कर रहा है। एशियाई
देशों की जारी रिपोर्ट में डायरिया के कारक-ई-कोलाई पर दवाओं के असर को खत्तम
बताया गया है, यानी ऐसे संक्रमण
के लिए अब नई दवाओं को जारी करना होगा, जो रोगों पर बेहतर असर दिखा सकें।
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