कहने के लिए मेरे
प्यारे देश भारतवर्ष ने स्वतंत्रा के उपरान्त बहुत उन्नति की। ठीक है भौतिक दृष्टि
से बहुत सुखी समृद्ध हूए। परन्तु एक आयाम ऐसा भी है जहाॅं हम बहुत अधिक कमजोर
पड़ते जा रहे हैं। वह आयाम है - अच्छे स्वास्थय व दीर्धायु की प्राप्ति। हमारे
पूर्वजों का अनुभव कहता है - ‘पहला सुख निरोगी काया’। वैसे तो हम बहुत विद्वान, ज्ञानी, बड़े डाॅक्टर, इन्जीन्यर, मैनेजर उद्योगपति हैं परन्तु स्वास्थय की दृष्टि से कितने
मजबूत हैं यह एक विचारणीय प्रश्न है।
यदि एक मजदूर
हमसे अधिक स्वस्थ है तो वह हमसे अधिक सुखी है, इस बात में कोई दो राय नहीं है। स्वास्थय के प्रति लापरवाही
हमें उन मूर्खों की श्रेणी में ला खड़ा करती है जिसने हीरे के पत्थर समझ कर बाहर
फेंक दिया फिर जीवन भर पश्चाताप् करता रहा।
‘उच्च चरित्र व
स्वस्थ जीवन’ इस राष्ट्र की
धरोहर रहे हैं जो आज संकट से जूझ रहे हैं। उळॅंचे चरित्र वाले व स्वस्थ रहने वाले
व्यक्ति आज गिने चुने ही देखने को मिलते हैं। वैसे तो व्यक्ति बाहर से बहुत सूटिड
बूटिड, बड़ी कार, बंगलों में
शान-शौकत से रहता नजर आता है। परन्तु थोड़ा सा पर्दे के भीतर झाॅंकते ही चरित्र का
ओच्छापन अथवा भान्ति-भान्ति के रोगों से घिरा पाता है। इस राष्ट्र के पुरोहित एवं
अन्य जागरूक आत्माएॅं इस राष्ट्र के गिरते चरित्र व बिगड़ते स्वास्थय को लेकर
अत्यधिक चिन्तित हैं।
एक बार सिंगापुर
से भारतीय मूल के कुछ प्रोफेसर NUS विश्वविद्यालय से NIT में हमारे Computer विभाग में हमसे मिलने आए। मैंने उनसे पूछाा कि आपने सिंगापुर जैसे एक छोटे देश में
ऐसी क्या खूबी देखी तो आप भारत छोड़ कर वहीं बस गए। उन्होंने तुरन्त उत्तर दिया कि
सिंगापुर की सरकार वहाॅं के नागरिकों के शिक्षा एवं स्वास्थ्य के लिए बहुत प्रयास
करती है। वैसे तो भारत सरकार की सभी राज्यों में AIIMS जैसे बड़े अस्पताल को
खोलने का अच्छा प्रयास कर रही है परन्तु विडम्बना यह है कि जिन कारणों से व्यक्ति
का स्वास्थय खराब होता है उनके निदान के लिए जागरूक नहीं है जैसे कि हम सभी जानते
हैं कि अधिक कीटनाशक, दवाइयाॅं, विषैले हारमोन्स (Oxitoxians) व
अधिक रासायनिक खादों से हमारे फसलें जहरीली एवं भूमि प्राणहीन ;बंजरद्ध होती जा
रही है परन्तु इस दिशा में कोई ठोस कदम कभी भारत सरकार ने नहीं उठाए।
सौभाग्य से आज
अनेक बड़े-छोटे मिशन आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सालयों एवं पुरातन चिकित्सा पद्धतियों पर
सहारणीय प्रयास कर रहे हैं जिससे बहुत बड़ी संख्या में लोगों को लाभ मिल रहा है।
परन्तु जब हम यह सुनते हैं कि इन आश्रम में रहने वाले एवं इनको चलाने वाले लोग भी
अपना इलाज मेदांता, अपोलो जैसे बड़े
चिकित्सालयों से करवाते हैं तो बहुत पीड़ा होती है। क्यों नहीं हम अपनी भारतीय
चिकित्सा पद्धतियों को इतना समर्थ और सशक्त बना पा रहे हैं कि हमें महंगे बड़े
अस्पतालों का सहारा लेना के लिए मजबूर होना न पड़े। यह चिकित्सा सुविधा इतनी महंगी
हैं कि मुश्किल से भारत की 5% से भी कम जनता ही अपनी चिकित्सा हेतू इन बड़े अस्पतालों के
सहारा ले सकती है।
किसी समय में
भारतीय संस्कृति इतनी उन्नत थी कि लोगों को रोगो का निदान घरेलू मसालों, आस-पास उगी जड़ी
बूटियों अथवा वैद्यों एवं झाड़-फूंक करने वाले प्राण चिकित्सों द्वारा सरलता से हो
जाता था। परन्तु आज व्यक्ति के लिए स्वयं को एवं परिवार को स्वस्थ रखना एक बड़ा
Project बनता जा रहा है। हमारी वो प्राचीन संस्कृति लुप्त हो चुकी है एवं हमारी
अधिकांश जनता अंग्रेजी दवाइयों पर निर्भर होती जा रही है। जिसका बड़ा घातक परिणाम
हमारे समाज को झेलना पड़ रहा है। जैसे जब कुता हड्डी चूसता है तो वह यह सोचता है
कि इस हड्डी में से निकले खून को मैं चूस रहा हूॅं यही स्थिति हमारी है हम सोचते
हैं कि ऐलोपैथिक दवाओं के साथ हम अपने को स्वस्थ रख सकते हैं परन्तु ये दवाएॅं
हमें भीतर से खोखला करके हमें इतना दूर्बल बना दिया है कि हम अनेक बड़े रोगों जैसे
कैंसर, हार्ट-अटैकस्, लीवर सिरोसिस, किडनी Failures, माईग्रेनस्, अलसर आदि की चपेट
में फसते चले आ रहे हैं। एक तरफ तो हमारे भोजन में जहरीले पदार्थों, जहरीले तत्त्वों
का मिश्रण बढ़ता जा रहा है दूसरी ओर अंग्रेजी दवाओं के घातक रासायनों को हमारे
शरीर को झेलना पड़ रहा है। चहूॅं ओर से हमारे शरीर पर पड़ती इस मार ने व्यक्ति को
औसत आयु 65-70 वर्ष के बीच
लाकर खड़ी कर दी है।
हमारी शास्त्र
कहते हैं ‘जीवेम शरद शतम्’ अर्थात् सौ वर्ष
की आयु तक व्यक्ति स्वस्थ जीवन जी सकता है जैसे शरद ऋतु में व्यक्ति का स्वास्थय
सर्वोतम होता है वैसा ही स्वस्थ जीवन हम सौ वर्ष तक जी सकते हैं
बहुत समय से समाज
में यह आवश्यकता महसूस की जा रही है कि कोई ऐसी पुस्तक किसी अनुभवी व्यक्ति द्वारा
लिखी जाए जिसमें उन सभी बातों का वर्णन हो जो एक स्वस्थ जीवन जीने के लिए जानना
आवश्यक हो। यद्यपि मैं चिकित्सा क्षेत्र से अधिक संबंधित नहीं रहा परन्तु फिर भी
अपनी रुचि एवं आवश्यकता के अनुसार मैंने इस क्षेत्र में प्र्याप्त अध्ययन एवं
प्रयोग किए हैं। इनका लाभ मुझ तक मेरे परिवार अथवा मित्र-संबंधियों तक सीमित न
रहे। अपितु सम्पूर्ण समाज को मिले इसी उद्देश्य
से यह पुस्तक लिखी गई है। पुस्तक का संकलन इस प्रकार किया गया है कि हर आयु, वर्ग के लोग इसका
लाभ उठा सकें। जो भी प्रयोग घर पर रहते हुए सरलता से किए जा सकते हैं उन सभी का
विवरण देने का प्रयास किया गया है। विभिन्न प्रकार की चिकित्सा प्रद्धतियों से
जुड़े आवश्यक सिद्धान्तों एवं त्रुटियों को भी उजागर किया गया है। हमारा देश भारत
आज भी अनेक ऐसे टोटकों एवं दवाईयों का धनी है जिनसे बड़े-बड़े असाध्य रोगों की सरल
चिकित्सा सम्भव है लोकहित के लिए जो व्यक्ति इस पुस्तक में अपने अनुभव, प्रयोगों को
छपवाना चाहे उन सभी का स्वागत है यदि व्यक्ति पुस्तक को पढ़कर उसमें दिए हुए
सूत्रों सिद्धान्तों एवं चिकित्सा पद्धतियों को जीवन में अपनाएगा तो कठिन रोगों के
बड़े दलदल से निकलने में भी सफलता प्राप्त करेगा। एवं अनेक रोगों का सरल, सस्ता एवं
प्रभावी निदान कर पाएगा। ऐसा हमारा विश्वास है।
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