Thursday, April 30, 2015

40 वर्ष की आयु पर सावधानी

क्या आप चालीस पर कर चुके है?

जी हाँ! चालीस वर्ष की आयु पर करते ही व्यक्ति पर निम्ण खतरे मंडराने लगते है:-

1. High B.P. - अपना B.P. हर माह अवश्य चैक करवाये। ऊपर का B.P. (Systolic B.P.) की Range 120-140
    है। नीचे के B.P. (Diastolic B.P.) की Range 80-90 है। यदि आपके दोनों B.P. इस Range में नहीं आ रहे है
    तो आप तुरंत सचेत हो जाएँ।

2. आपकी Pulse Rate विश्राम के समय 65-75 के बीच तथा कार्य के समय 75-85 व खेलकूद, परिश्रम के समय
     80-100 के बीच होनी चाहिए। यदि इसमें कम या अधिक है तो उपचार की आवश्यकता है।

3. ऊपर के B.P. व नीचे के B.P. में 40 का अन्तर होना चाहिए Systolic B.P. - Diastolic B.P.= 40 यदि यह 40
    से कम है तो ह्रदय की खराबी (Malfunctioning) को सूचित करता है।

4. आपका Blood Sugar बिना खाए-पीये 75-105 की Range में होना चहिये। यदि इससे अधिक है तो मधुमेह
     (Diabetes) का खतरा अधिक ऊपर मंडरा रहा है। नाश्ते के दो घंटे बाद Sugar Level 160-180 की Range
     में होना चाहिए।

7. Blood urea 6-20 की  Range में होना चाहिए। यदि इससे अधिक है तो गाड़िया, जोड़ो के दर्द का रोग घेर
     सकता है। तुरंत प्रोटीन लेने कम करे व इस प्रकार के प्रोटीन ले जिनसे यूरिया कम बनता है और जैसे चार
     काजू भिगोकर हर दूसरे दिन खाएं।

8. प्रत्येक 6 माह में आप ये सारी जाँच अवश्य कराएँ।

     Lipid Profile निम्न होना चाहिए

    (a) Total कोलेस्ट्रोल 200 से कम होना चाहए
    (b) HDL 40 से अधिक होना चाहिए।
    (c) अनुपात LDL/HDL 3 से कम होना चाहिए। 
    (d) ट्राइग्लिसराइड 150 से कम होना चाहिए।

Saturday, April 25, 2015

स्वर्णिम अवसर न खोएं

आचार्य रजनीश जब छोटे थे तो तीव्र बुद्धि के धनी थे। वो दो लोगों से बहुत प्रेम करते थे। एक अपने दादा जी से व दूसरे अपनी चचेरी बहन शशी से। परन्तु पहले उनके दादा जी की मृत्यु हुयी तत्पशचात 15 वर्ष की आयु में उनकी बहन की। इससे उनको गहरा आघात लगा व उनमे वैराग्य भाव उत्पन्न हुआ व जीवन में सत्य की खोज प्रारम्भ हुयी। उन्होंने भारतीय दर्शन को अपना विषय चुना व गहराई में उतरते चले गए। अपने विधार्थी जीवन में ही हजारो ग्रंथो का अध्ययन कर ज्ञान का अनुपम भण्डार एकत्र कर लिया।

         एक बार की घटना है जब वो M.A. के विधार्थी थे उस समय विश्वविधालय में गौतम बुद्ध जयन्ती बड़ी धूमधाम से मनायी गयी। एक अवसर पर वाइस चांसलर महोदय ने वरिष्ठ विद्यार्थियों की एक सभा को सम्बोधित करते हुए कहा "काश आज महात्मा बुद्ध जीवित होते तो हम भी उनके चरणो में बैठकर ध्यान की गहराइयों में प्रवेश कर पते।" तभी विद्यार्थी चन्द्र मोहन (आचार्य रजनीश का असली नाम) ने उनको बीच में ही टोका "बिलकुल गलत, श्री रमन बुद्ध के सामान ही उच्च कोटि के महापुरुष आपके समय में हुए। आप कितनी बार उनके पास गए जरा बताइए।" यह सुनकर वाइस चांसलर महोदय सन्न रह गए व अपनी गलती पर शर्मिंदा हुए।

         यही बात हम सभी के साथ है। स्वर्णिम अवसर हम सबके जीवन में आता है द्वार खटखटाता है परन्तु हम अपनी मूर्खता वश वह द्वार नहीं खोलते। समय चुकने पर भगवान या भाग्य से शिकायत करते है कि ऐसा हमारे साथ भी हुआ होता तो हमारा जीवन  धन्य हो गया होता।

        अब धरती पर सन 2011 से महावतार की लीला प्रारम्भ हो चूका है जो अगले 40 वर्षों तक धरती पर नवयुग की रचना करने में अपनी महान भूमिका निभाएगा। क्या हम उस हेतु अपना मानस बना पा रहे है। महावतार एक ऐतिहासिक घटना है जो युगों-युगों में कभी घटित होती है। अर्थात हजारो अवतारी सताएँ इस समय धरती पर युग परिवर्तन के कार्य को अन्जाम देने का महान कार्य करने जा रही है। जागेगा वही जिसकी आत्मा जिसके कर्म श्रेष्ट होंगे बाकी तो यों ही पशुवत जीवन जीकर दुनिया से चले जाएँगे। 
लेखक - विश्वामित्र राजेश

Thursday, April 23, 2015

Silent Health Killer from the book ‘स्वस्थ भारत’


            कहते हैं कि घुन जिस कपड़े में लग जाता है, दीमक जिस लकड़ी में लग जाती है भीतर ही भीतर उसको खाकर खत्तम करती चली जाती है, अन्दर ही अन्दर वह खोखला होता चला जाता है। ऐसे ही हमारे समाज में पाॅंच ऐसे Killer घुस चुके हैं जो हमारे स्वास्थ्य को भीतर ही भीतर नष्ट कर रहे हैं। पता हमें तब चलता है जब बहुत देर हो चुकी होती है। व्यक्ति न जीने लायक रहता है न ही शान्ति से मर पाता है ऐसे जटिल रोगों की उत्पत्ति हो जाती है कि वह तड़फ-तड़प कर अपना शेष जीवन गुजारने के लिए मजबूर हो जाता है। अतः जितना शीघ्र हो सके इन Silent Killers के बारे में समाज में जागरूकता फेलाना आवश्यक है। ये 5 Killers हैं-
            1. High B.P.             उच्च रक्तचाप
            2. Diabetes             मधुमेह
            3. Liver Disorder         लीवर की विकृति
            4. Anxiety and Depression उत्तेजना अथवा निराशा
            5. Pornograghic Scenes         कामुकता-अश्लीलता का प्रचलन
            1. उच्च रक्तचाप - रक्तचाप अधिक होना व्यक्ति को अतिरिक्त ऊर्जा देते प्रतीत होता है। जैसे शराब पीने से अधिक उत्तेजना, ताकत महसूस होती है वैसे ही अधिक रक्तचाप भी व्यक्ति को सहायक नजर आता है। जैसे यदि शराबी को शराब न मिले जो शरीर टूटा-टूटा लगता है काम में मजा नहीं आता ऐसे ही यदि दवा देकर रक्तचाप को कम कर दिया जाए तो व्यक्ति स्वयं का ऊर्जाहीन व थका थका अनुभव करता है। जवानी में व्यक्ति जैसे शराब की परवाह नहीं करता वैसे ही रक्तचाप की भी परवाह नहीं करता। परन्तु उम्र बढ़ने के साथ अर्थात् 40 पार करते ही व्यक्ति की माॅंसपेशियाॅं, हृदय, गुदा की माॅंसपेशियाॅं कमजोर होने लगती है व धीरे-धीरे करके नर्वस सिस्टम से सम्बन्धित जटिल रोगों का जन्म होने लगता है। अतः जैसे ही व्यक्ति का B.P. 14090 के पार करे तुरन्त व्यक्ति को सावधान हो जाना चाहिए। अपनी जीवनचर्या व खान-पान में परिवर्तन कर इसको नियन्त्रण करना चाहिए। जैसे अधिक उम्र में हड्डी नहीं जुड़ती वैसे ही उम्र बढ़ने पर इसके द्वारा होने वाले नुक्सान की भरपाई करना कठिन हो जाता है। अतः Early Stage पर ही इसको रोका जाए।
            2. मधुमेहः बढ़ता मधुमेह हमारे समाज के लिए घोर अभिशाप है। यह रोड़ा धीरे-धीरे करके शरीर के विभिन्न अंगों को कमजोर करता चला जाता है। ऐसा देखा गया है कि जो लोग शारीरिक श्रम से जी चुराते है उनको यह अधिक घेरता है। मजदूरों में यह रोड़ा बहुत ही कम पाया जाता है जबकि वो लोग बहुत मीठा खाते हैं। अतः व्यक्ति पसीना बहाने की आदत अवश्य डालें। कोई भी खेल-कूद अथवा ऐसी Activity अवश्य करें जिससे पसीना बह जाए। इसके बारे में शोधकार्य आवश्यक है।
            3. Liver Disorder   लीवर हमारे शरीर का बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है। शरीर में खून में जो भी कुछ खराब है उसके बाहर निकालने का कार्य करता है व पूरे metabolism को control करता है। हमारी गलत खान-पान की आदतों से लीवर पर भार पड़ता है व धीरे-धीरे इसकी कार्य क्षमता कम हो जाती है। कहते हैं कि व्यक्ति का लीवर यदि 60% भी काम कर रहा है तो शरीर में कोई परेशानी महसूस नहीं देता। परन्तु हम यदि सचेत रहें तो लीवर 80-90% तक सही कार्य कर सकता है। इससे हमारे प्रत्येक अंग में शुद्ध रक्त जाएगा व पाचन तन्त्र उचित कार्य करेगा। अतः लीवर की कार्यप्रणाली व उसके स्वास्थ्य के सम्बन्ध में जानकारी होना बहुत जरुरी है।
            4. Anxiety & Depression: कुछ व्यक्तियों को जल्दबाजी व हड़बड़ी में कार्य करने की आदत होती है। इस कारण को नाभि तक साॅंस न लेकर उथली साॅंसे लेते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने जीवन, कार्य व सफलता से सदा असन्तुष्ट रहते हैं इस कारण उनका मूलाधार चक्र कमजोर पड़ता जाता है। जितना व्यक्ति के लिए जोश में काम करना जरुरी है उतना ही विश्राम भी आवश्यक है। परन्तु कई बार कुछ महत्वकांक्षाएॅं अथवा परिस्थितियाॅं ऐसी विनिर्मित हो जाती हैं कि व्यक्ति चिन्तित व उत्तेजित रहने लगता है। इस अवस्था को Anxiety कहते हैं यह हृदय की धड़कन बढ़ाता है जिससे हृदय पर भार पड़ता है व हृदय की माॅंसपेशियाॅं कमजोर हो जाती हैं व व्यक्ति जल्दी ही हृदय रोगों की चपेट में आने लगता है। इसको मापने के लिए व्यक्ति धड़कन अवश्य नोट करें यदि धड़कन 80-85 से ऊपर चलती है तो यह ठीक नहीं है। इसी प्रकार जो लोग प्रसन्न नहीं रहते, Negative energy अधिक होने के कारण जल्दी निराश हो जाते हैं वो Depression के शिकार हो जाते हैं। यह रोग प्राणमय कोष व मनोमयकोष से सम्बन्धित है परन्तु इसका उपचार Anti-Depressant दवाइयाॅं देकर हम अन्नमय कोष पर करते हैं। अन्धे को आॅंख तो नहीं मिल पाती हाॅं लाठी का सहारा जरूर मिल जाता है।
            5ण् अश्लीलता-कामुकताः यह प्रतीत तो बड़ा आनन्ददायी होता है परन्तु है बड़ा खतरनाक क्योंकि शरीर की सातवीं धातु से सीधा सम्बन्ध रखता है। वह धातु जो शरीर के पोषण व विकास के सर्वाधिक महत्वपूर्ण है मूत्र के साथ घुल-घुल कर बाहर बहने लगती है। इसी प्रकार महिलाओं में भी ल्यूकोरिया नामक भयानक रोग की उत्पत्ति हो जाती है। महिलाओं के कमर व छाती की माॅंसपेशियों ढीली पड़ती चली जाती है और मासिक धर्म के चक्र बिगड़ जाते हैं। इस प्रकार उनकी स्थिति और दयनीय हो जाती है। इस विष के प्रभाव से आज बहुत ही कम ऐसे युवक देखने को मिलते हैं जिनमें वास्तव में कुछ दम है अन्यथा चारों ओर नपुंसकता छाई पड़ी है कोई अपने बालों से परेशान है तो कोई अपनी आॅंख के चश्में से, किसी के सिर का दर्द नहीं छूट रहा तो किसी को स्वप्नदोष ने मार रखा है। वीर अभिमन्यु, तात्याॅं टोपे, राणा प्रताप, लक्ष्मी बाई जैसे जवानी तो आज कहीं देखने को भी नहीं मिलती। जिन पर माॅं भारती को कुछ करने की आशा हो।

            कामुकता का विष हमारे युवाओं की जवानी ही खा गया और हम लुटे-बैठे हैं। जब हमारे हथियार ही छिन गए तो लड़ेंगे कैसे? हमारी प्रतिरोध करने की क्षमता ही मिट गई है तो आत्मसमर्पण स्वयं ही हो जाएगा। पहले अंग्रेजों के गुलाम थे अब विषय विकारों व विदेशी सभ्यता के दास बनकर अपनी दुर्गति भोग रहे हैं। अन्तर इतना है कि आजादी से पहले हमारे युवाओं के पास मन्यु था अर्थात् संघर्ष की क्षमता थी अब वह भी नहीं रही। वासना में अन्धें समाज को कुछ नजर नहीं आता जिनको थोड़ा बहुत दिखता है उनमें प्रतिरोध की क्षमता नहीं बची। इतने खतरनाक दलदल में हम धंसते जा रहे हैं जहाॅं से उबरना बहुत ही कठिन व वेदनापूर्ण है।

Monday, April 20, 2015

आज का विचार

ज्ञान धन से उत्तम है, 
क्योकि धन की हमें रक्षा करनी पड़ती है,
और ज्ञान हमारी रक्षा करता है॥


जिंदगी में मुश्किलें तमाम है। फिर भी इन होंठो पर मुस्कान है॥ 
जीना जब हर हाल में है। तो मुस्कुरा कर जीने में क्या नुक्सान है॥ 


"व्यक्ति सुख पाने के लिए वस्त्र बदलता है, भोजन बदलता है, मकान  बदलता है, मित्र सम्बन्धी बदलता है
परन्तु फिर भी दुखी रहता है क्योंकि वह अपना स्वभाव नहीं बदलता'' 


''आहार के सम्बन्ध में यह विशेष उल्लेखनीय है कि सच्ची एंव परिपक्व भूख लगने पर ही खाना खायें। 
रूस के स्वास्थ्य विशेषज्ञ ब्लाडीमार कोरेचोवस्को का मत है - भूख से जितना अधिक खाते है, समझना चाहिये कि उतना ही विष खाते हैं।"


सवेरे जल्दी उठेगा जो, रहेगा हर वक्त वो हंसी खुशी
न आयेगी सुस्ती कभी नाम को, खुशी से करेगा हर इक काम को 
सुबह का वक्त यह और ताजी हवा, यह है 100 दवाओं से बेहतर दवा

Thursday, April 16, 2015

सबसे बड़ा प्रमाद



अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बड़ा प्रमाद इस संसार में और कोई नहीं हो सकता। इसका मूल्य जीवन की असफलता का पश्चात्ताप करते हुए ही चुकाना पड़ता है।          श्रीराम शर्मा आचार्य

पुष्प से वार्ता

            किसी पुष्प से कहा, ‘कल तुम मुरझा जाओगे, फिर क्यों मुस्कुराते हो? व्यर्थ में यह ताजगी किसलिए लुटाते हो?’
फूल चुप रहा।
इतने में एक तितली आई, क्षणभर आनन्द लिया, उड़ गई।
एक भौंरा आया, गान सुनाया, चला गया, सुगन्ध बटोरी, आगे बढ़ गया।
खेलते हुए एक बालक ने स्पर्श सुख लिया, रूप लावण्य ;फूल की सुन्दरताद्ध को निहारा, फिर खेलने लग गया।
तब फूल बोला, ‘मित्र, क्षणभर को ही सही, मेरे जीवन ने कितनों को सुख दिया है, क्या तुमने कभी ऐसा किया है? कल की चिन्ता में आज के आनन्द में विराम क्यों करूॅं? माटी ने जो रूप, रस, गन्ध और रंग दिया है, उसे बदनाम क्यों करूॅं?
मैं हॅंसता हूॅं क्योंकि हॅंसना मुझे आता है, खिलना मुझे सुहाता है,
मैं मुरझा गया तो क्या
कल फिर एक नया फूल खिलेगा,
न कभी मुस्कान रुकी है, न सुगन्ध
जीवन तो एक सिलसिला है, वह इसी तरह चलेगा, इसी तरह चलेगा।,

सारः जो आपको मिला है उसमें खुश रहिए और कुदरत का शुक्रिया अदा कीजिए। क्योंकि आप जो जीवन देख रहे हैं, वो जीवन कई लोगों ने देखा तक नहीं है। खुश रहिए, मुस्कुराते रहिए और अपनों को भी खुश रखिए।

स्वस्थ भारत

एक बार चीन के बीजिंग शहर के सौ वर्षीय वृद्ध से पूछा गया - ‘‘आपकी लम्बी उम्र का रहस्य क्या है?’’ वृद्ध ने जवाब दिया - ‘‘मेरे जीवन में तीन बातें हैं, जिनकी वजह से मैं लम्बी आयु पा सका। एक तो मैं अपने दिमाग में कभी उत्तेजनात्मक विचार नहीं भरता, सिर्फ ऐसे विचारों को पोषण देता हूॅं, जो मेरे दिल और दिमाग को शान्त रखें। दूसरी बात यह कि मैं आलस्य को बढ़ाने वाला, उत्तेजित करने वाला भोजन नहीं लेता और न ही अनावश्यक भोजन लेता हूॅं। तीसरी बात यह कि मैं गहरा श्वास लेता हूॅं। नाभि तक श्वास भरकर फिर छोड़ता हूॅं, अधूरा श्वास कभी नहीं लेते।’’

Friday, April 10, 2015

शाकाहारी - Shakahari

आजकल मुझे यह देख कर अत्यंत खेद और आश्चर्य होता है की अंडा शाकाहार का पर्याय बन चुका है ,ब्राह्मणों से लेकर जैनियों तक सभी ने खुल्लमखुल्ला अंडा खाना शुरू कर दिया है ...खैर मै ज्यादा भूमिका और प्रकथन में न जाता हुआ सीधे तथ्य पर आ रहा हूँ
मादा स्तनपाईयों (बन्दर बिल्ली गाय मनुष्य) में एक निश्चित समय के बाद अंडोत्सर्जन एक चक्र के रूप में होता है उदारहरणतः मनुष्यों में यह महीने में एक बार,.. चार दिन तक होता है जिसे माहवारी या मासिक धर्म कहते है ..उन दिनों में स्त्रियों को पूजा पाठ चूल्हा रसोईघर आदि से दूर रखा जाता है ..यहाँ तक की स्नान से पहले किसी को छूना भी वर्जित है कई परिवारों में ...शास्त्रों में भी इन नियमों का वर्णन है
इसका वैज्ञानिक विश्लेषण करना चाहूँगा ..मासिक स्राव के दौरान स्त्रियों में मादा हार्मोन (estrogen) की अत्यधिक मात्रा उत्सर्जित होती है और सारे शारीर से यह निकलता रहता है ..
इसकी पुष्टि के लिए एक छोटा सा प्रयोग करिये ..एक गमले में फूल या कोई भी पौधा है तो उस पर रजस्वला स्त्री से दो चार दिन तक पानी से सिंचाई कराइये ..वह पौधा सूख जाएगा ,
अब आते है मुर्गी के अण्डे की ओर
१) पक्षियों (मुर्गियों) में भी अंडोत्सर्जन एक चक्र के रूप में होता है अंतर केवल इतना है की वह तरल रूप में ना हो कर ठोस (अण्डे) के रूप में बाहर आता है ,
२) सीधे तौर पर कहा जाए तो अंडा मुर्गी की माहवारी या मासिक धर्म है और मादा हार्मोन (estrogen) से भरपूर है और बहुत ही हानिकारक है
३) ज्यादा पैसे कमाने के लिए आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर आजकल मुर्गियों को भारत में निषेधित ड्रग ओक्सिटोसिन(oxytocin) का इंजेक्शन लगाया जाता है जिससे के मुर्गियाँ लगातार अनिषेचित (unfertilized) अण्डे देती है
४) इन भ्रूणों (अन्डो) को खाने से पुरुषों में (estrogen) हार्मोन के बढ़ने के कारण कई रोग उत्पन्न हो रहे है जैसे के वीर्य में शुक्राणुओ की कमी (oligozoospermia, azoospermia) , नपुंसकता और स्तनों का उगना (gynacomastia), हार्मोन असंतुलन के कारण डिप्रेशन आदि ...
वहीँ स्त्रियों में अनियमित मासिक, बन्ध्यत्व , (PCO poly cystic oveary) गर्भाशय कैंसर आदि रोग हो रहे है
५) अन्डो में पोषक पदार्थो के लाभ से ज्यादा इन रोगों से हांनी का पलड़ा ही भारी है .
६) अन्डो के अंदर का पीला भाग लगभग ७० % कोलेस्ट्रोल है जो की ह्रदय रोग (heart attack) का मुख्य कारण है
7) पक्षियों की माहवारी (अन्डो) को खाना धर्म और शास्त्रों के विरुद्ध , अप्राकृतिक , और अपवित्र और चंडाल कर्म है
इसकी जगह पर आप दूध पीजिए जो के पोषक , पवित्र और शास्त्र सम्मत भी है

Wednesday, April 8, 2015

स्वस्थ भारत के लिए प्रार्थना

            हे सविता देव! मेरे देशवासियों को सद्ज्ञान, सद्भाव, सत्कर्म, स्वास्थ्य व सुसंस्कार प्रदान करें जिससे इस धरा पर सनातन धर्म की स्थापना हो सके।
            हे प्रभु! रोगी एवं पीडि़त मानवता के उद्धार के लिए आप हमें निरोग व दीर्घ जीवन प्रदान करें। हमें वह ज्ञान दे जिससे हम अपने स्वास्थ्य को उत्तम बना सकें व दूसरे बीमार लोगो में भी आशा की नई उम्मीदें जगा सकें। हे प्रभु! यह कार्य करते हुए हमारा सेवा का भाव सदा बना रहे, हममे लालच प्रवेश न करने पाए। हे प्रभु! यह कर्म करते हुए हमारी विनम्रता सदा बनी रहे जिससे हमारे भीतर अहं न आए और हमारा ज्ञान निरन्तर बढ़ता जाए।
            हे प्रभु! यदि हमें थोड़ी बहुत सफलता मिलती है तो हम अपने को बड़ा आदमी न मान बैठे। अपितु हर प्राणी में तेरी सूरत देखकर, नर सेवा-नारायण सेवा मानकर अपने को सौभाग्यशाली समझें। हे प्रभु! हमारे व्यक्तित्व को सदा ऊॅंचा बनाकर रखना जिससे छोटे-बड़े स्वार्थ, संकीर्ण मानसिकता से सदा दूर रहें। हे प्रभु! ऋषियों की आदर्श परम्परा के अनुरूप हम अपना जीवन यापन करें और अपने सांसारिक कर्तव्य पूर्ण करके ब्रह्मलोक को प्रयाण करें। हे प्रभु! मात्र आपकी कृपा के बिना, ऊर्जा, मार्गदर्शन, संरक्षण के बिना कुछ भी सम्भव नहीं हैं। इसलिए हे प्रभु!
            ‘नजरों से गिराना ना, चाहे कितनी भी सजा देना
            सदा आपकी आॅंखों के तारे बने रहें व आपकी दिव्य ज्योति सदा हमारे अन्तःकरण को प्रकाशित करती रहे, यही हमारी आपसे विनम्र प्रार्थना है।
            हे देव! स्वस्थ भारत अभियान के बिना युग निर्माण कैसे सम्भव हो पाएगा। स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था कि उन्हें लोहे की माॅंसपेशियों व फौलाद के स्नायु वाले युवकों की आवश्यकता है।
            दृढ़ इच्दा शक्ति व आत्मबल सम्पन्न महामानव बिना श्रेष्ठ स्वास्थ्य के कैसे उत्पन्न् हो सकते हैं। स्वस्थ भारत ही सतयुगी वातावरण व उज्ज्वल भविष्य का आधार है।

            हे भगवन्! अकेला व्यक्ति इस अभियान को कैसे गति दे पाएगा? कुछ दिव्य, समर्पित, प्रतिभावान आत्माएॅं एक साथ जोड़ जिससे हम सब मिलकर इस अभियान को आगे बढ़ाकर तेरी इच्छा पूरी कर सकें।

Tuesday, April 7, 2015

मेरे भारत की व्यथा

            एक दिन जब मैं प्रातःकाल घूमने निकला तो सामने से आते दो मजदूरों को देखा। सम्भवतः वे दोनों पति-पत्नी थे व लक्कड़ सिर रखकर चल रहे थे। दोनों कम ही उम्र के थे लेकिन इतने दुर्बल थे कि आदमी से तो ठीक से चला भी नहीं जा रहा था। प्रातःकाल उनकी दयनीय दशा देखकर मेरी आत्मा चीत्कार कर उठी व प्रश्न करने लगी - स्वतन्त्रता के 65 वर्षों से अधिक बीत चुकें हैं परन्तु आज भी जगह-जगह लोग दीन-हीन तड़फती दशा में जीवन जीने को मजबूर हैं। इसका दोषी कौन?’
            ये तो बेचारे अज्ञानी-मूर्ख हैं खाना कमाना - बच्चे पैदा करना इतना ही जानते हैं इससे अधिक समझ इनमें नहीं है। इनकी दयनीय अवस्था के लिए दोषी हैं हमारा धर्मतन्त्रराजतन्त्र व प्रबुद्ध वर्ग।
            यदि ये तीनों वर्ग स्वार्थी न होते तो आज भारत छमबामक न होता। मेरे मन में विचार आया क्या मैं स्वार्थी भारत’ करके एक पुस्तक लिखूॅं जिसमें धर्मतन्त्रराजतन्त्र व प्रबुद्ध वर्ग के लोगों के स्वार्थोंधोखाधड़ी व काले कारनामों को उजागर करूॅं। पुस्तक को प्रसिद्धि तो बहुत मिलेगी परन्तु समाज को लाभ क्या मिलेगाफिर अपनी ऊर्जा इस ओर क्यों खपाऊॅं?
            मैंने तुरन्त विचार बदला व स्वस्थ भारत’ पुस्तक लिखने का मन बनाया। अपना देश भारत जिन समस्याओं से होकर गुजर रहा है उसमें सबसे बड़ी व महत्वपूर्ण समस्या है - स्वस्थ जीवन की।
            आने वाले समय में यह समस्या और गम्भीर रूप् लेती प्रतीत हो रही है। कैंसरट्यूमरमधुमेहरक्तचापस्वाइन फलू न जाने कितने खतरनाक रोगों का खतरा मेरे भारत के ऊपर मण्डरा रहा है। परन्तु इस दिशा में हम क्यों जागरूक नहीं हैं यह भी एक यक्ष प्रश्न है।
            एक बार एक अर्थ तन्त्र का बड़ा विशेषज्ञ भारत आया उससे पत्रकारों ने पूछा कि भारत की अर्थ व्यवस्था के बारे में आप क्या कहना चाहेंगेउसने कहा यहाॅं के उद्योगपति बहुत ही दमदार हैं। कभी सेल टैक्स कभी इन्कम टैक्स कभी प्रदूषण तो कभी बिजली विभाग। सभी का पेट पालते हैं परन्तु फिर भी कम्पीटिशन में अपने को मजबूती से टिकाए रखने का साहस करते हैं। यहाॅं सरकार जितनी सुस्त है जनता उतनी ही चुस्त है।
            अर्थात जनता को ही स्वस्थ भारत’ के संकल्प को साकार करने के लिए जागरूक करना होगा। अन्यथा कैसे यहाॅं वीरपराक्रमीबु(िमानशोर्यवान नई पीढ़ी का उदय हो पाएगा। भारत की वीरतातेजस्विताबु(िमतापरिश्रम करने की क्षमता का लोहा पूरा विश्व मानता है परन्तु कमी एक ही है वह है जागरूकता। जब प्यास लगती है तभी गड्डा खोदा जाता है।

            अब तो सारी हदें पार होती जा रही हैं अतः भारत की जनता को स्वस्थ भारत के अभियान के लिए जुटना होगा यही हमारा विनम्र निवेदन है।

असाध्य रोग के लिए क्या करें

            जब व्यक्ति किसी असाध्य रोग से पीडि़त होता है तो वह यह चाहता है कि उसे ऐसी कोई औषधि मिल जाए जिससे उसका यह रोग दूर हो जाए। एक डाॅक्टर से दूसरे डाॅक्टर तक एक हस्पताल से दूसरे तक चक्कर लगाते - लगाते मरीज की कमर टूट चुकी होती है। वह लाखों रूपया खराब कर चुका होता है। ऊपर से व्यक्ति भारी निराशा के दौर से गुजर रहा होता है व अपना मनोबल खो चुका होता है। मौत की भयावह कल्पनाएॅं उसकी पीड़ा को और बढ़ देती हैं।
            ऐसा व्यक्ति व उसका परिवार सर्वप्रथम शान्त व सकारात्मक वातावरण उत्पन्न करे। सर्वप्रथम उन कारणों को खोजें जिनसे यह समस्या उत्पन्न हुई है, उन कारणों की हटाए बिना रोग का समाधान नहीं निकल पाता दवाइयाॅं अपना काम उचित रूप् से नहीं कर पाती, उदाहरण के लिए पाचन तन्त्र की समस्या अधिकतर बारीक पीसे आटे से होती है। व्यक्ति अधिकतर अपना आटा तो मोटा नहीं पिसवाता। परन्तु तरह-तरह के पाचक चूर्ण प्रयोग करता रहता है। इससे उसके पेट में तरह-तरह की दवाईयाॅं चली जाती है। परन्तु स्थिति नियंत्रण में नहीं पाती । इसी प्रकार जो लोग कम मात्रा में पानी पीते हैं उनको रक्तचाप व न्यूरोमस्कूलर रोग होने लगते है, व्यक्ति हाई बी.पी. की दवाईयाॅं खाता है और उसके साइड इफेक्ट उसकी स्थिति को लगातार बिगाड़ते रहते हैं। इसीलिए यह कहा जाता है कि रोग के मूल कारण को खोजें, दूसरी बात आवश्यक बात है धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करना रोग के मूल कारण पता लगने के बाद धैर्यपूर्वक क्रियान्वित (Implement) करना होता है, व्यक्ति की बिगड़ी आदतें जल्दी से सुधार के लिए तैयार नहीं हो पाती, यदि व्यक्ति 5 सालों से कुछ गलतियाॅं करता आ रहा है तो और उनमें सुधार करता है तो परिणाम आने में 5-7 माह अवश्य लगेंगे। इसलिए बिना हताश हुए सकारात्मक रूप् रखते हुए, कुछ माह योग करना आवश्यक है। असाध्य रोग के निवारण में निम्न बातें जरूरी हैं।
            रोग के कारणों को हटाया जाए, यदि रोग के कारण अनुवांशिक है तो उनमें सुधार लाने के लिए बहुत अधिक तप शक्ति की आवश्यकता होती है।
            मृत्यु के भय से व्यक्ति मुक्त रहे,मृत्यु एक सहज प्रक्रिया है, परन्तु मृत्यु का भय और सगे-सम्बन्धियों का मोह उसको पीड़ादायक बना देता है।
            ईश्वर विश्वास बनाकर रखें के ईश्वर कृपा से बड़ी से बड़ी कठिनाई का हल भी निकालना सम्भव है।
            परमात्मा ने व्यक्ति को Self-Healing की बहुत बड़ी क्षमता दी है। बशर्तें की व्यक्ति की मानसिकता सकारात्मक हो।
            व्यक्ति भगवान से प्रार्थना करे कि यदि व रोगमुक्त होता है तो मानव कल्याण के लिए कुछ न कुछ अपना योगदान अवश्य प्रस्तुत करेगा।
            सप्तधातु विद्या के ज्ञान द्वारा व्यक्ति आवश्यक औषधि का प्रयोग करे।

            जिस प्रकार का व्यक्ति का खान-पान, रहन-सहन होता जा रहा है अपने वाले चार-पाॅंच वर्षों में भारत की लगभग एक-तिहाई जनता जटिल व असाध्य रोगों के शिंकजे में फसने जा रही है। ये जटिल रोग व इनका निदान इतना पीड़ादायी है कि व्यक्ति यह नहीं समझ पाएगा कि जीना अच्छा है या मरना। इतनी दवाईयाॅं व उनके इतने Side-effect व्यक्ति को जीवन को साक्षात् नरक बना देती है। मृत्यु की गोद उसे जीवन के अधिक उचित प्रतीत होने लगती है। इन रोगों का भय से अधिक समस्याएॅं उत्पन्न करता है। अनेक व्यक्ति इस प्रकार के पाए गए जो सप्त धातु विद्या के ज्ञान द्वारा रोगमुक्त हो गए परन्तु अन्तर्मन उस रोग के भय से उतना त्रस्त हो चुका है कि रोग न होने की अवस्था में भी उसका आभास व दर्द महसूस करते हैं।

भारत की महिलाएॅं संस्कृति की कब्र न खोदें

            देवसत्ताओं ने अपने तपोबल से नारियों को समाज की गुलामी की जंजीरों से मुक्त कर एक बड़ा कार्य किया है। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि भारत की नारियाॅं समाज व संस्कृति की मर्यादा को ताक पर रखकर मनमाने वस्त्र पहनें व मनमानी हरकतें करें। यदि ऐसा होता है तो पूरा भारत का युवा वासना के आवेश में बहकर संस्कृति व समाज को तहस-नहस कर डालेगा। इसका उत्तरदायित्व व दोष किसके सिर पर आएगा? निश्चित रूप् से उन लड़कियों को व उनके माॅं-बाप को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा। इतनी सामाजिक व धार्मिक संस्थाएॅं भारत में हैं परन्तु इस मुद्दे पर चुप हैं। कड़ाई से नारी शक्ति को अनुशासित करने का प्रयास नहीं कर रहे हैं। हम सभी को बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं के साथ बेटी को शालीन बनाओं का नारा भी जोड़ना पड़ेगा अन्यथा इसका भारी खमियाजा भारत के समाज को भुगतना पड़ेगा।

            जो नारियाॅं भारत के समाज में पवित्रता लाने में अपना योगदान नहीं दे सकती उन्हें देवी कैसे माना जा सकता है। वो तो मानव रूप् में साक्षात् सूर्पनखा हैं। राक्षस हैं व कुल व संस्कृति की कब्र खोदने पर उतारू हैं। विज्ञान के दुरुप्रयोग से हवा पानी प्रदूषित हो गए किसानो द्वारा फसलों, अनाजों, में विषाक्त तत्वों की वृशी कर दी गयी| हे देवी! तुमसे देवसत्ताओं को बहुत आशाएं थी की तुम अपने देवत्व से इन विषों का निवारण करोगी परन्तु तुमने भी अज्ञान वश अपनी हरकतों से अश्लीलता का विष समाज में घोलना प्रारंभ कर दिया| जो रही सही कसर भी वो तुमने पूरी कर डाली| चेतो! हे देवी! चेतो! वासना के आवेश में यदि तुम भी औरों के समान संवेदनहीन हो जाओगी तो भारत माता के आंसू कौन पोंछेगा| देव संस्कृति को बचने वाली शक्ति, भक्ति, पवित्रता, दिव्यता की मूर्त! हे भारत की नारी अपने मूल सवरूप को पुनः धारण करो जिससे तरह तरह के विषों में जलते भारत के पुत्रों को राहत मिल सके व भारत विशव में जगतगुरु बन सके| रक्षक ही अगर भक्षक बन जाएगा तो इस धरा का सर्वनाश हो जायेगा| अत: हे मातरी शक्ति ! करुणा, पवित्रता, उदारता की धाराएं मेरे भारत में बहा दो जिससे स्वार्थ, वासना, महत्वकांक्षा व रोगों से त्रस्त मेरे देशवासिओं के दुःख दूर हो सकें, मेरा आपसे यही निवेदन हैं| 


देवत्व  के फूलों से, धरती को सुगन्धित कर दो। 
करुणा की मूर्ति हो, अमृत से सिंचित कर दो। 
वासनाओ की होली जला, फिर से पवित्रता वरसा दो। 
तुम  हो गुणो की खान, मेरे भारत को स्वर्ग बना दो। 
शक्ति का हो अवतार, सिंह की हुंकार कर दो। 
विकारों से ग्रस्त मानवता, बुराइयों का दमन कर दो।  

युग ऋषि का जीवन संघर्ष और हमारी भूमिका

                युग निर्माण योजना के महान अभियान को पूरा करने के लि युग-ऋषि श्रीराम आचार्यजी द्वारा बड़े यत्न पूर्वक गायत्री परिवार की स्थापना की गई थी। गायत्री परिवार का विराट स्वरूप तो उभरा परन्तु आपेक्षित सफलता नहीं मिली। जो दावे हम सन् 2000 से पहले बड़े आत्मविश्वास के साथ करते थे वह सब आज देखने सुनने को नहीं मिलते। ऐसा किन कारणों से हुआ। इस विषय पर गायत्री परिवार को समर्पित परिजनों द्वारा व्यापक विचार मंथन आवश्यक है।
            युग निर्माण योजना की पूर्ति हेतु हमें आत्म निर्माण व लोककल्याण दो पक्षों को साथ लेकर चलना है परन्तु हम मात्र भवन निर्माण कर प्रसन्न हो गए। सन् 2000 से पूर्व हमें मिशन के प्रचार प्रसार की आवश्यकता थी इसके लिए बड़े पैमाने पर समयदान, अंशदान माॅंगा गया। तत्पश्चात् हमें सवा लाख लोगों का चयन कर उन्हें अनुकूल वातावरण देकर युग के विश्वामित्रों के रूप् में उभारना था। वह कार्य हमारा अधूरा रह गया। अनेक स्वार्थी, महत्वाकांक्षी, अहंकारी व्यक्तित्व मौका पाकर मिशन पर हावी होते चले गए व शक्तिपीठों व गोष्ठियों में बहुत तरह का वाद-विवाद बढ़ चला। आम जनता को गायत्री परिवार से बहुत आशाएॅं अपेक्षाएॅं रखती थी उनकी उम्मीदों पर हम खरे नहीं उतर पाए।

             जो परिजन मिशन की गौरव गरिमा को पुनः ऊपर उठाने के लिए कृत संकल्प हैं, युग निर्माण योजना के लिए अपने जीवन की आहुति समर्पित करना चाहते हैं वो यह पुस्तक अवश्य पढ़ें। उनके लिए ये पुस्तक एक प्रकाश स्तम्भ का कार्य कर रही है। गायत्री परिवार की रीति-नीति, अभियान के स्वरूप का व्यापक विश्लेषण किया गया है। यह पुस्तक गायत्री परिजनों की आवाज के रूप् में उभरेगी व रूके हुए कार्य को गति प्रदान कर देवात्मा हिमालय के संकल्प को पूर्ण करेगी यही हमारा विश्वास है।

Monday, April 6, 2015

Myths of Today (आज के युग की भ्रान्तियाॅं)

1. व्यक्ति के दुःख का मूल कारण मात्र उसके दुर्गुण हैं। जबकि व्यक्ति पूरी उम्र यह सोचता रहता है कि वह अमुक व्यक्ति अथवा अमुक कारण से परेशान हुआ। वास्तविकता यह है कि स्वयं की कमजोरी ही दुःखों का मूल कारण है।
2. युग निर्माण आन्दोलन को तेजी प्रदान करने के लिए हमें बड़ी संख्या में प्रचारक चाहिए। (X) यह उक्ति अब निरर्थक प्रतीत होती होने लगी है। सतयुगी वातावरण के धरती पर निर्मित करने के लिए हमें आत्म-निर्माणी, आत्मदानी चाहिएॅं। प्रचारकों की आवश्यकता मात्र सन् 2000 तक थी। गुरुदेव ने इसी कारण 2000 तक ही लोगों से समयदान की माॅंग की थी। क्योंकि आत्मनिर्माण जिनका होने लगता है उनसे समयदान नहीं माॅंगा जाता वो स्वयं समय दान स्वेच्छा से करते हैं। अपितु उनके जीवन का ध्येय ही मिशन होने लगता है। गुरुदेव ने अनेक संकेत देकर हमें यह बात समझाने का प्रयास किया है परन्तु हमारे जहन में प्रचार - प्रचार इतनी गहराई तक चला गया है कि आगे कुछ समझ में नहीं आता है। शताब्दी समारोह की विफलता का संकेत भी यही था कि व्यापक प्रचार अभियान पर रोक लगाकर आत्मनिर्माण की दिशा में सार्थक प्रयास करने प्रारम्भ किए जाएॅं।
3. भगवान की खुशी के लिए हमें पूजा पाठ करनी चाहिए (X)। भगवान उन व्यक्तियों से प्रसन्न होता हैं अथवा उन पर कृपा करते हैं जो सद्गुणों को धारण करने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। आरती, चालीसा, पाठ भी इसीलिए करते हैं ताकि देवताओं के महान गुणों को हम धारण करने लगें। परन्तु यदि यह मात्र गान तक सीमित रहे हमारे चरित्र का विकास न कर पाए तो इसका उचित लाभ नहीं मिल पाता। अतः सदैव श्रेष्ठ गुणों व शुद्ध
भावना के विकास के लिए प्रयत्नशील रहें।
4. स्वस्थ भारत के निर्माण के लिए हमें ।प्डै जैसे बड़े अस्पतालों की आवश्यकता है (X)। बड़े चिकित्सालयों के द्वारा हम भारत को रोग मुक्त नहीं बना सकते। इसके लिए सप्तधातुओं की पुष्टि का आयुर्वेद का विज्ञान समझना अनिवार्य है। समय साक्षी है कि आज से 25 वर्ष पूर्व कितनी डमकपबंस सुविधाएॅं थी परन्तु रोग बहुत कम थे। आज कितनी अधिक चिकित्सा सुविधाएॅं हैं परन्तु घर-घर में लोग रोग से पीडि़त हैं। इसके लिए पढ़े लेखक की अगली प्रकाशित होने वाली पुस्तक स्वस्थ भारत
5. सुख समृ(ि के लिए हमें विज्ञान की उन्नति करनी होगी (X)। विश्व में सुख, शान्ति, समृ(ि लाने के लिए हमें अध्यात्म एवं विज्ञान दोनों के समन्वय व सन्तुलन की आवश्यकता है। मात्र एक पक्ष विज्ञान पर जोर देने से धरती खुशहाल नहीं हो पाएगी। सुखी वही लोग हैं जो अपने जीवन में अध्यात्म एवं विज्ञान दोनों को समान रूप् से महत्व देकर चलते हैं। अध्यात्म को पीछे छोड़ने पर दुनिया में सद्गुणी व सेवा भावी व्यक्ति उत्पन्न नहीं हो पाएगा। इससे विज्ञान विकास के स्थान पर विनाश ही करेगा। विज्ञान के साथ यदि अध्यात्म न जुड़े तो अहंकारी व्यक्तित्वों के द्वारा युद्धों, आतंकवाद आदि के खतरे बढ़ते चले जाएॅंगे।
6. भारत के विकास के लिए बड़े शिक्षा संस्थानों को खोला जा रहा है इसकी बहुत आवश्यकता है (X)
            भारत का विकास तब तक नहीं होगा जब तक यहाॅं का धर्म तन्त्र व राजतन्त्र साफ-सुथरा व आदर्शवादी नहीं होगा। भारत में धर्मतन्त्र व राजतन्त्र दोनों ही जातिवाद, परिवारवाद, क्षेत्रवाद तथा भ्रष्टाचार से ग्रसित हैं। इसके लिए भारत की जनता दोषी है। जो भी धर्मतन्त्र व राजतन्त्र में लोग उच्च पदों पर आसीन हैं। उनके जयकारे लगाना, उनकी चापलूसियाॅं करना व उनसे निहित स्वार्थों की पूर्ति करना, यह यहाॅं के लोगों के खून में बस गया है। इसी कारण भारत के राजनेता व धर्मनेता मूल समस्याओं की ओर जनता को जागरूक न कर इधर-उधर की चीजों में लोगों का ध्यान भटकाते रहते हैं। यदि भारत की जनता इनसे प्रश्न पूछे?
            बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए धर्मतन्त्र, राजतन्त्र सामाजिक संस्थाएॅं कोई बड़ी मुहिम क्यों नहीं चलाती? बढ़ती जनसंख्या हमें पर्यावरण असन्तुलन, बेरोजगारी, गन्दगी, चोरी चकारी, भ्रष्टाचारी, भीड़-भाड़ वाले जीवन की ओर धकेल रही हैं। सभी समस्याओं का मूल है यह सभी जानते है इसके उपरान्त भी सभी चुप हैं? क्यों?
            समाज में बढ़ती अश्लीलता भारत की संस्कृति व सभ्यता पर सबसे बड़ा कलंक है परन्तु इसका विरोध करने का कोई अच्छा प्रयास नहीं हो रहा है क्यों? हम सभी मौन हैं, लाचार हैं?
            जब शेर, चीते हम पर आक्रमण कर रहे हों तो कुत्ते, बिल्लियों से लड़कर अपने को सामथ्र्यवान सिद्ध करना कहाॅं की समझदारी है। बड़ी विकट समस्याएॅं समाज के सम्मुख हैं परन्तु धर्मतन्त्र व राजतन्त्र उन पर चुप रहता है व छोटे-छोटे कर्म कर अपनी डींगें हाॅंकता है।
7. दरिद्र वह है जिसके पास पेट भर खाने को भोजन भी उपलब्ध न होता हो (X)। दरिद्र तो वास्तव में वह है जिसके पास भोजन तो है पर भूख नहीं है। धन तो है पर नींद नहीं है।
8. हे भगवान! हम सबको दीर्धायु प्रदान करें। भगवान से सदा उच्च जीवन लक्ष्य की प्रार्थना करें। जिसके जीवन का लक्ष्य ऊॅंचा होता है उसी का जीवन सार्थक होता है। निरर्थक जीवन चाहे छोटा हो या बड़ा उसका कोई लाभ नहीं होता अतः जीवन सदा उद्देश्य परक ही रहना चाहिए।
9. अमुक व्यक्ति के पास बहुत धन, गाड़ी, बंगला, सामाजिक पद-प्रतिष्ठा बहुत कुछ है वह बहुत सुखी है (X)। सुखी केवल वही रह सकता है जो आत्म साक्षात्कार के लिए प्रयत्नशील हैं। ऐसे व्यक्ति को श्रीमद् भगवद्गीता निम्न प्रकार परिभाषित करती है
 निर्मानमोहा जितसंगदोषा अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः। द्वन्द्वैर्विमुक्ता सुखदुःखसंज्ञैर्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।
जो झूठी प्रतिष्ठा, मोह तथा कुसंगति से मुक्त हैं, जो शाश्वत तत्व को समझते हैं, जिन्होंने भौतिक काम को नष्ट कर दिया है, जो सुख तथा दुख के द्वन्द्व से मुक्त हैं और जो मोहरहित होकर परम पुरुष के शरणगत होना जानते हैं, वे उस शाश्वत राज्य को प्राप्त होते हैं।

10. गीता का सन्देश है कर्म किए जा, फल की इच्छा न कर (X)।
            गीता का मुख्य सन्देश है कि मानवता व धर्म की स्थापना के लिए जो लोग युद्ध स्तर का प्रयास करते हैं स्वयं भगवान उनके जीवन का रथ हाॅंकने के लिए तत्पर हो जाते हैं। गीता वास्तव में विद्वानों का विषय नहीं है। जो आत्माएॅं अपने जीवन की आहुति देने के लिए संकल्पबद्ध होती हैं गीता उन्हीं के भीतर अवतरित होती है व उन्हीं को वास्तव में समझ आती है अन्य तो शब्दजाल में ही उलझे रहते हैं।