युग निर्माण योजना के महान अभियान को पूरा करने के लि युग-ऋषि श्रीराम ‘आचार्य’ जी द्वारा बड़े यत्न पूर्वक गायत्री परिवार की स्थापना की गई थी। गायत्री
परिवार का विराट स्वरूप तो उभरा परन्तु आपेक्षित सफलता नहीं मिली। जो दावे हम सन् 2000 से पहले बड़े आत्मविश्वास के साथ करते थे वह सब आज देखने सुनने को नहीं
मिलते। ऐसा किन कारणों से हुआ। इस विषय पर गायत्री परिवार को समर्पित परिजनों
द्वारा व्यापक विचार मंथन आवश्यक है।
युग निर्माण योजना की पूर्ति हेतु हमें आत्म निर्माण व लोककल्याण दो पक्षों को
साथ लेकर चलना है परन्तु हम मात्र भवन निर्माण कर प्रसन्न हो गए। सन् 2000 से पूर्व हमें मिशन के प्रचार प्रसार की आवश्यकता थी इसके लिए बड़े पैमाने पर
समयदान, अंशदान माॅंगा गया। तत्पश्चात् हमें सवा लाख लोगों का चयन कर उन्हें अनुकूल
वातावरण देकर युग के विश्वामित्रों के रूप् में उभारना था। वह कार्य हमारा अधूरा
रह गया। अनेक स्वार्थी, महत्वाकांक्षी, अहंकारी व्यक्तित्व मौका पाकर मिशन पर हावी होते चले गए व शक्तिपीठों व
गोष्ठियों में बहुत तरह का वाद-विवाद बढ़ चला। आम जनता को गायत्री परिवार से बहुत
आशाएॅं अपेक्षाएॅं रखती थी उनकी उम्मीदों पर हम खरे नहीं उतर पाए।
जो परिजन मिशन की गौरव गरिमा को पुनः
ऊपर उठाने के लिए कृत संकल्प हैं, युग निर्माण योजना के लिए अपने जीवन की
आहुति समर्पित करना चाहते हैं वो यह पुस्तक अवश्य पढ़ें। उनके लिए ये पुस्तक एक
प्रकाश स्तम्भ का कार्य कर रही है। गायत्री परिवार की रीति-नीति, अभियान के स्वरूप का व्यापक विश्लेषण किया गया है। यह पुस्तक गायत्री परिजनों
की आवाज के रूप् में उभरेगी व रूके हुए कार्य को गति प्रदान कर देवात्मा हिमालय के
संकल्प को पूर्ण करेगी यही हमारा विश्वास है।
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