Thursday, April 16, 2015

पुष्प से वार्ता

            किसी पुष्प से कहा, ‘कल तुम मुरझा जाओगे, फिर क्यों मुस्कुराते हो? व्यर्थ में यह ताजगी किसलिए लुटाते हो?’
फूल चुप रहा।
इतने में एक तितली आई, क्षणभर आनन्द लिया, उड़ गई।
एक भौंरा आया, गान सुनाया, चला गया, सुगन्ध बटोरी, आगे बढ़ गया।
खेलते हुए एक बालक ने स्पर्श सुख लिया, रूप लावण्य ;फूल की सुन्दरताद्ध को निहारा, फिर खेलने लग गया।
तब फूल बोला, ‘मित्र, क्षणभर को ही सही, मेरे जीवन ने कितनों को सुख दिया है, क्या तुमने कभी ऐसा किया है? कल की चिन्ता में आज के आनन्द में विराम क्यों करूॅं? माटी ने जो रूप, रस, गन्ध और रंग दिया है, उसे बदनाम क्यों करूॅं?
मैं हॅंसता हूॅं क्योंकि हॅंसना मुझे आता है, खिलना मुझे सुहाता है,
मैं मुरझा गया तो क्या
कल फिर एक नया फूल खिलेगा,
न कभी मुस्कान रुकी है, न सुगन्ध
जीवन तो एक सिलसिला है, वह इसी तरह चलेगा, इसी तरह चलेगा।,

सारः जो आपको मिला है उसमें खुश रहिए और कुदरत का शुक्रिया अदा कीजिए। क्योंकि आप जो जीवन देख रहे हैं, वो जीवन कई लोगों ने देखा तक नहीं है। खुश रहिए, मुस्कुराते रहिए और अपनों को भी खुश रखिए।

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