1. व्यक्ति के दुःख
का मूल कारण मात्र उसके दुर्गुण हैं। जबकि व्यक्ति पूरी उम्र यह सोचता रहता है कि
वह अमुक व्यक्ति अथवा अमुक कारण से परेशान
हुआ। वास्तविकता यह है कि स्वयं की कमजोरी ही दुःखों का मूल कारण है।
2. युग निर्माण
आन्दोलन को तेजी प्रदान करने के लिए हमें बड़ी संख्या में प्रचारक चाहिए। (X) यह उक्ति
अब निरर्थक प्रतीत होती होने लगी है। सतयुगी वातावरण के धरती पर निर्मित करने के
लिए हमें आत्म-निर्माणी, आत्मदानी चाहिएॅं।
प्रचारकों की आवश्यकता मात्र सन् 2000 तक थी। गुरुदेव ने इसी कारण 2000 तक ही लोगों से
समयदान की माॅंग की थी। क्योंकि आत्मनिर्माण जिनका होने लगता है उनसे समयदान नहीं
माॅंगा जाता वो स्वयं समय दान स्वेच्छा से करते हैं। अपितु उनके जीवन का ध्येय ही
मिशन होने लगता है। गुरुदेव ने अनेक संकेत देकर हमें यह बात समझाने का प्रयास किया
है परन्तु हमारे जहन में प्रचार - प्रचार इतनी गहराई तक चला गया है कि आगे कुछ समझ
में नहीं आता है। शताब्दी समारोह की विफलता का संकेत भी यही था कि व्यापक प्रचार
अभियान पर रोक लगाकर आत्मनिर्माण की दिशा में सार्थक प्रयास करने प्रारम्भ किए
जाएॅं।
3. भगवान की खुशी के
लिए हमें पूजा पाठ करनी चाहिए (X)। भगवान उन व्यक्तियों से प्रसन्न होता हैं अथवा उन
पर कृपा करते हैं जो सद्गुणों को धारण करने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। आरती, चालीसा, पाठ भी इसीलिए
करते हैं ताकि देवताओं के महान गुणों को हम धारण करने लगें। परन्तु यदि यह मात्र
गान तक सीमित रहे हमारे चरित्र का विकास न कर पाए तो इसका उचित लाभ नहीं मिल पाता।
अतः सदैव श्रेष्ठ गुणों व शुद्ध
भावना के विकास
के लिए प्रयत्नशील रहें।
4. स्वस्थ भारत के
निर्माण के लिए हमें ।प्डै जैसे बड़े अस्पतालों की आवश्यकता है (X)। बड़े चिकित्सालयों
के द्वारा हम भारत को रोग मुक्त नहीं बना सकते। इसके लिए सप्तधातुओं की पुष्टि का
आयुर्वेद का विज्ञान समझना अनिवार्य है। समय साक्षी है कि आज से 25 वर्ष पूर्व
कितनी डमकपबंस सुविधाएॅं थी परन्तु रोग बहुत कम थे। आज कितनी अधिक चिकित्सा
सुविधाएॅं हैं परन्तु घर-घर में लोग रोग से पीडि़त हैं। इसके लिए पढ़े लेखक की
अगली प्रकाशित होने वाली पुस्तक ‘स्वस्थ भारत’।
5. सुख समृ(ि के लिए
हमें विज्ञान की उन्नति करनी होगी (X)। विश्व में सुख, शान्ति, समृ(ि लाने के लिए हमें अध्यात्म एवं विज्ञान दोनों के
समन्वय व सन्तुलन की आवश्यकता है। मात्र एक पक्ष विज्ञान पर जोर देने से धरती
खुशहाल नहीं हो पाएगी। सुखी वही लोग हैं जो अपने जीवन में अध्यात्म एवं विज्ञान
दोनों को समान रूप् से महत्व देकर चलते हैं। अध्यात्म को पीछे छोड़ने पर दुनिया
में सद्गुणी व सेवा भावी व्यक्ति उत्पन्न नहीं हो पाएगा। इससे विज्ञान विकास के
स्थान पर विनाश ही करेगा। विज्ञान के साथ यदि अध्यात्म न जुड़े तो अहंकारी व्यक्तित्वों
के द्वारा युद्धों, आतंकवाद आदि के
खतरे बढ़ते चले जाएॅंगे।
6. भारत के विकास के
लिए बड़े शिक्षा संस्थानों को खोला जा रहा है इसकी बहुत आवश्यकता है (X)।
भारत का विकास तब
तक नहीं होगा जब तक यहाॅं का धर्म तन्त्र व राजतन्त्र साफ-सुथरा व आदर्शवादी नहीं
होगा। भारत में धर्मतन्त्र व राजतन्त्र दोनों ही जातिवाद, परिवारवाद, क्षेत्रवाद तथा
भ्रष्टाचार से ग्रसित हैं। इसके लिए भारत की जनता दोषी है। जो भी धर्मतन्त्र व
राजतन्त्र में लोग उच्च पदों पर आसीन हैं। उनके जयकारे लगाना, उनकी चापलूसियाॅं
करना व उनसे निहित स्वार्थों की पूर्ति करना, यह यहाॅं के लोगों के खून में बस गया है। इसी कारण भारत के
राजनेता व धर्मनेता मूल समस्याओं की ओर जनता को जागरूक न कर इधर-उधर की चीजों में
लोगों का ध्यान भटकाते रहते हैं। यदि भारत की जनता इनसे प्रश्न पूछे?
बढ़ती जनसंख्या
को रोकने के लिए धर्मतन्त्र, राजतन्त्र सामाजिक संस्थाएॅं कोई बड़ी मुहिम क्यों नहीं
चलाती? बढ़ती जनसंख्या
हमें पर्यावरण असन्तुलन, बेरोजगारी, गन्दगी, चोरी चकारी, भ्रष्टाचारी, भीड़-भाड़ वाले
जीवन की ओर धकेल रही हैं। सभी समस्याओं का मूल है यह सभी जानते है इसके उपरान्त भी
सभी चुप हैं? क्यों?
समाज में बढ़ती
अश्लीलता भारत की संस्कृति व सभ्यता पर सबसे बड़ा कलंक है परन्तु इसका विरोध करने
का कोई अच्छा प्रयास नहीं हो रहा है क्यों? हम सभी मौन हैं, लाचार हैं?
जब शेर, चीते हम पर
आक्रमण कर रहे हों तो कुत्ते, बिल्लियों से लड़कर अपने को सामथ्र्यवान सिद्ध करना कहाॅं
की समझदारी है। बड़ी विकट समस्याएॅं समाज के सम्मुख हैं परन्तु धर्मतन्त्र व
राजतन्त्र उन पर चुप रहता है व छोटे-छोटे कर्म कर अपनी डींगें हाॅंकता है।
7. दरिद्र वह है
जिसके पास पेट भर खाने को भोजन भी उपलब्ध न होता हो (X)। दरिद्र तो वास्तव में वह है
जिसके पास भोजन तो है पर भूख नहीं है। धन तो है पर नींद नहीं है।
8. हे भगवान! हम
सबको दीर्धायु प्रदान करें। भगवान से सदा उच्च जीवन लक्ष्य की प्रार्थना करें।
जिसके जीवन का लक्ष्य ऊॅंचा होता है उसी का जीवन सार्थक होता है। निरर्थक जीवन
चाहे छोटा हो या बड़ा उसका कोई लाभ नहीं होता अतः जीवन सदा उद्देश्य परक ही रहना
चाहिए।
9. अमुक व्यक्ति के
पास बहुत धन, गाड़ी, बंगला, सामाजिक
पद-प्रतिष्ठा बहुत कुछ है वह बहुत सुखी है (X)। सुखी केवल वही रह सकता है जो आत्म
साक्षात्कार के लिए प्रयत्नशील हैं। ऐसे व्यक्ति को श्रीमद् भगवद्गीता निम्न
प्रकार परिभाषित करती है
निर्मानमोहा जितसंगदोषा अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः। द्वन्द्वैर्विमुक्ता सुखदुःखसंज्ञैर्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।
निर्मानमोहा जितसंगदोषा अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः। द्वन्द्वैर्विमुक्ता सुखदुःखसंज्ञैर्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।
जो झूठी प्रतिष्ठा, मोह तथा कुसंगति से मुक्त हैं, जो शाश्वत तत्व को समझते हैं, जिन्होंने भौतिक काम को नष्ट कर दिया है, जो सुख तथा दुख के द्वन्द्व से मुक्त हैं और जो मोहरहित होकर परम पुरुष के शरणगत होना जानते हैं, वे उस शाश्वत राज्य को प्राप्त होते हैं।
10. गीता का सन्देश
है कर्म किए जा, फल की इच्छा न
कर (X)।
गीता का मुख्य
सन्देश है कि मानवता व धर्म की स्थापना के लिए जो लोग युद्ध स्तर का प्रयास करते
हैं स्वयं भगवान उनके जीवन का रथ हाॅंकने के लिए तत्पर हो जाते हैं। गीता वास्तव
में विद्वानों का विषय नहीं है। जो आत्माएॅं अपने जीवन की आहुति देने के लिए
संकल्पबद्ध होती हैं गीता उन्हीं के भीतर अवतरित होती है व उन्हीं को वास्तव में
समझ आती है अन्य तो शब्दजाल में ही उलझे रहते हैं।
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