एक दिन जब मैं प्रातःकाल घूमने निकला तो सामने से आते दो मजदूरों को देखा। सम्भवतः वे दोनों पति-पत्नी थे व लक्कड़ सिर रखकर चल रहे थे। दोनों कम ही उम्र के थे लेकिन इतने दुर्बल थे कि आदमी से तो ठीक से चला भी नहीं जा रहा था। प्रातःकाल उनकी दयनीय दशा देखकर मेरी आत्मा चीत्कार कर उठी व प्रश्न करने लगी - ‘स्वतन्त्रता के 65 वर्षों से अधिक बीत चुकें हैं परन्तु आज भी जगह-जगह लोग दीन-हीन तड़फती दशा में जीवन जीने को मजबूर हैं। इसका दोषी कौन?’
ये तो बेचारे अज्ञानी-मूर्ख हैं खाना कमाना - बच्चे पैदा करना इतना ही जानते हैं इससे अधिक समझ इनमें नहीं है। इनकी दयनीय अवस्था के लिए दोषी हैं हमारा धर्मतन्त्र, राजतन्त्र व प्रबुद्ध वर्ग।
यदि ये तीनों वर्ग स्वार्थी न होते तो आज भारत छमबामक न होता। मेरे मन में विचार आया क्या मैं ‘स्वार्थी भारत’ करके एक पुस्तक लिखूॅं जिसमें धर्मतन्त्र, राजतन्त्र व प्रबुद्ध वर्ग के लोगों के स्वार्थों, धोखाधड़ी व काले कारनामों को उजागर करूॅं। पुस्तक को प्रसिद्धि तो बहुत मिलेगी परन्तु समाज को लाभ क्या मिलेगा? फिर अपनी ऊर्जा इस ओर क्यों खपाऊॅं?
मैंने तुरन्त विचार बदला व ‘स्वस्थ भारत’ पुस्तक लिखने का मन बनाया। अपना देश भारत जिन समस्याओं से होकर गुजर रहा है उसमें सबसे बड़ी व महत्वपूर्ण समस्या है - स्वस्थ जीवन की।
आने वाले समय में यह समस्या और गम्भीर रूप् लेती प्रतीत हो रही है। कैंसर, ट्यूमर, मधुमेह, रक्तचाप, स्वाइन फलू न जाने कितने खतरनाक रोगों का खतरा मेरे भारत के ऊपर मण्डरा रहा है। परन्तु इस दिशा में हम क्यों जागरूक नहीं हैं यह भी एक यक्ष प्रश्न है।
एक बार एक अर्थ तन्त्र का बड़ा विशेषज्ञ भारत आया उससे पत्रकारों ने पूछा कि भारत की अर्थ व्यवस्था के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे? उसने कहा यहाॅं के उद्योगपति बहुत ही दमदार हैं। कभी सेल टैक्स कभी इन्कम टैक्स कभी प्रदूषण तो कभी बिजली विभाग। सभी का पेट पालते हैं परन्तु फिर भी कम्पीटिशन में अपने को मजबूती से टिकाए रखने का साहस करते हैं। यहाॅं सरकार जितनी सुस्त है जनता उतनी ही चुस्त है।
अर्थात जनता को ही ‘स्वस्थ भारत’ के संकल्प को साकार करने के लिए जागरूक करना होगा। अन्यथा कैसे यहाॅं वीर, पराक्रमी, बु(िमान, शोर्यवान नई पीढ़ी का उदय हो पाएगा। भारत की वीरता, तेजस्विता, बु(िमता, परिश्रम करने की क्षमता का लोहा पूरा विश्व मानता है परन्तु कमी एक ही है वह है जागरूकता। जब प्यास लगती है तभी गड्डा खोदा जाता है।
अब तो सारी हदें पार होती जा रही हैं अतः भारत की जनता को स्वस्थ भारत के अभियान के लिए जुटना होगा यही हमारा विनम्र निवेदन है।
No comments:
Post a Comment