कहते हैं कि घुन जिस कपड़े में लग जाता है, दीमक जिस लकड़ी में लग जाती है
भीतर ही भीतर उसको खाकर खत्तम करती चली जाती है, अन्दर ही अन्दर वह
खोखला होता चला जाता है। ऐसे ही हमारे समाज में पाॅंच ऐसे Killer घुस चुके हैं जो
हमारे स्वास्थ्य को भीतर ही भीतर नष्ट कर रहे हैं। पता हमें तब चलता है जब बहुत
देर हो चुकी होती है। व्यक्ति न जीने लायक रहता है न ही शान्ति से मर पाता है ऐसे
जटिल रोगों की उत्पत्ति हो जाती है कि वह तड़फ-तड़प कर अपना शेष जीवन गुजारने के
लिए मजबूर हो जाता है। अतः जितना शीघ्र हो सके इन Silent
Killers के बारे में समाज में जागरूकता फेलाना
आवश्यक है। ये 5 Killers हैं-
1.
High B.P. उच्च
रक्तचाप
2. Diabetes मधुमेह
3. Liver Disorder लीवर की विकृति
4. Anxiety and Depression उत्तेजना अथवा निराशा
5.
Pornograghic Scenes कामुकता-अश्लीलता का प्रचलन
1.
उच्च रक्तचाप - रक्तचाप अधिक होना व्यक्ति को अतिरिक्त
ऊर्जा देते प्रतीत होता है। जैसे शराब पीने से अधिक उत्तेजना, ताकत महसूस होती है वैसे ही अधिक रक्तचाप भी व्यक्ति को सहायक नजर आता है।
जैसे यदि शराबी को शराब न मिले जो शरीर टूटा-टूटा लगता है काम में मजा नहीं आता
ऐसे ही यदि दवा देकर रक्तचाप को कम कर दिया जाए तो व्यक्ति स्वयं का ऊर्जाहीन व
थका थका अनुभव करता है। जवानी में व्यक्ति जैसे शराब की परवाह नहीं करता वैसे ही
रक्तचाप की भी परवाह नहीं करता। परन्तु उम्र बढ़ने के साथ अर्थात् 40 पार करते ही व्यक्ति की माॅंसपेशियाॅं, हृदय, गुदा की माॅंसपेशियाॅं कमजोर होने लगती है व धीरे-धीरे करके नर्वस सिस्टम से
सम्बन्धित जटिल रोगों का जन्म होने लगता है। अतः जैसे ही व्यक्ति का B.P. 140 व 90 के पार करे तुरन्त व्यक्ति को सावधान हो जाना चाहिए। अपनी जीवनचर्या व
खान-पान में परिवर्तन कर इसको नियन्त्रण करना चाहिए। जैसे अधिक उम्र में हड्डी
नहीं जुड़ती वैसे ही उम्र बढ़ने पर इसके द्वारा होने वाले नुक्सान की भरपाई करना
कठिन हो जाता है। अतः Early Stage पर ही इसको रोका जाए।
2.
मधुमेहः बढ़ता मधुमेह हमारे समाज के लिए घोर अभिशाप है। यह
रोड़ा धीरे-धीरे करके शरीर के विभिन्न अंगों को कमजोर करता चला जाता है। ऐसा देखा
गया है कि जो लोग शारीरिक श्रम से जी चुराते है उनको यह अधिक घेरता है। मजदूरों
में यह रोड़ा बहुत ही कम पाया जाता है जबकि वो लोग बहुत मीठा खाते हैं। अतः
व्यक्ति पसीना बहाने की आदत अवश्य डालें। कोई भी खेल-कूद अथवा ऐसी Activity अवश्य करें जिससे
पसीना बह जाए। इसके बारे में शोधकार्य आवश्यक है।
3. Liver Disorder लीवर हमारे शरीर का बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है।
शरीर में खून में जो भी कुछ खराब है उसके बाहर निकालने का कार्य करता है व पूरे metabolism को control करता है। हमारी गलत
खान-पान की आदतों से लीवर पर भार पड़ता है व धीरे-धीरे इसकी कार्य क्षमता कम हो
जाती है। कहते हैं कि व्यक्ति का लीवर यदि 60% भी काम कर रहा है तो शरीर में कोई
परेशानी महसूस नहीं देता। परन्तु हम यदि सचेत रहें तो लीवर 80-90% तक सही कार्य कर सकता है। इससे हमारे प्रत्येक अंग में शुद्ध रक्त जाएगा व
पाचन तन्त्र उचित कार्य करेगा। अतः लीवर की कार्यप्रणाली व उसके स्वास्थ्य के
सम्बन्ध में जानकारी होना बहुत जरुरी है।
4.
Anxiety & Depression: कुछ व्यक्तियों को
जल्दबाजी व हड़बड़ी में कार्य करने की आदत होती है। इस कारण को नाभि तक साॅंस न
लेकर उथली साॅंसे लेते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने जीवन, कार्य व सफलता से सदा
असन्तुष्ट रहते हैं इस कारण उनका मूलाधार चक्र कमजोर पड़ता जाता है। जितना व्यक्ति
के लिए जोश में काम करना जरुरी है उतना ही विश्राम भी आवश्यक है। परन्तु कई बार
कुछ महत्वकांक्षाएॅं अथवा परिस्थितियाॅं ऐसी विनिर्मित हो जाती हैं कि व्यक्ति चिन्तित
व उत्तेजित रहने लगता है। इस अवस्था को Anxiety कहते हैं यह हृदय की धड़कन बढ़ाता है जिससे हृदय पर भार पड़ता है व हृदय की
माॅंसपेशियाॅं कमजोर हो जाती हैं व व्यक्ति जल्दी ही हृदय रोगों की चपेट में आने
लगता है। इसको मापने के लिए व्यक्ति धड़कन अवश्य नोट करें यदि धड़कन 80-85 से ऊपर चलती है तो यह ठीक नहीं है। इसी प्रकार जो लोग प्रसन्न नहीं रहते, Negative
energy अधिक होने के कारण जल्दी निराश हो जाते हैं वो Depression के शिकार हो जाते हैं।
यह रोग प्राणमय कोष व मनोमयकोष से सम्बन्धित है परन्तु इसका उपचार Anti-Depressant दवाइयाॅं देकर
हम अन्नमय कोष पर करते हैं। अन्धे को आॅंख तो नहीं मिल पाती हाॅं लाठी का सहारा
जरूर मिल जाता है।
5ण् अश्लीलता-कामुकताः यह प्रतीत तो बड़ा आनन्ददायी होता है परन्तु है बड़ा
खतरनाक क्योंकि शरीर की सातवीं धातु से सीधा सम्बन्ध रखता है। वह धातु जो शरीर के
पोषण व विकास के सर्वाधिक महत्वपूर्ण है मूत्र के साथ घुल-घुल कर बाहर बहने लगती
है। इसी प्रकार महिलाओं में भी ल्यूकोरिया नामक भयानक रोग की उत्पत्ति हो जाती है।
महिलाओं के कमर व छाती की माॅंसपेशियों ढीली पड़ती चली जाती है और मासिक धर्म के
चक्र बिगड़ जाते हैं। इस प्रकार उनकी स्थिति और दयनीय हो जाती है। इस विष के
प्रभाव से आज बहुत ही कम ऐसे युवक देखने को मिलते हैं जिनमें वास्तव में कुछ दम है
अन्यथा चारों ओर नपुंसकता छाई पड़ी है कोई अपने बालों से परेशान है तो कोई अपनी
आॅंख के चश्में से, किसी के सिर का दर्द नहीं छूट रहा तो किसी को स्वप्नदोष ने मार रखा है। वीर
अभिमन्यु, तात्याॅं टोपे, राणा प्रताप, लक्ष्मी बाई जैसे जवानी तो आज कहीं देखने को भी नहीं मिलती। जिन पर माॅं भारती
को कुछ करने की आशा हो।
कामुकता का विष हमारे युवाओं की जवानी ही खा गया और हम लुटे-बैठे हैं। जब
हमारे हथियार ही छिन गए तो लड़ेंगे कैसे? हमारी प्रतिरोध करने की क्षमता ही
मिट गई है तो आत्मसमर्पण स्वयं ही हो जाएगा। पहले अंग्रेजों के गुलाम थे अब विषय
विकारों व विदेशी सभ्यता के दास बनकर अपनी दुर्गति भोग रहे हैं। अन्तर इतना है कि
आजादी से पहले हमारे युवाओं के पास मन्यु था अर्थात् संघर्ष की क्षमता थी अब वह भी
नहीं रही। वासना में अन्धें समाज को कुछ नजर नहीं आता जिनको थोड़ा बहुत दिखता है
उनमें प्रतिरोध की क्षमता नहीं बची। इतने खतरनाक दलदल में हम धंसते जा रहे हैं
जहाॅं से उबरना बहुत ही कठिन व वेदनापूर्ण है।
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