आचार्य रजनीश जब छोटे थे तो तीव्र बुद्धि के धनी थे। वो दो लोगों से बहुत प्रेम करते थे। एक अपने दादा जी से व दूसरे अपनी चचेरी बहन शशी से। परन्तु पहले उनके दादा जी की मृत्यु हुयी तत्पशचात 15 वर्ष की आयु में उनकी बहन की। इससे उनको गहरा आघात लगा व उनमे वैराग्य भाव उत्पन्न हुआ व जीवन में सत्य की खोज प्रारम्भ हुयी। उन्होंने भारतीय दर्शन को अपना विषय चुना व गहराई में उतरते चले गए। अपने विधार्थी जीवन में ही हजारो ग्रंथो का अध्ययन कर ज्ञान का अनुपम भण्डार एकत्र कर लिया।
एक बार की घटना है जब वो M.A. के विधार्थी थे उस समय विश्वविधालय में गौतम बुद्ध जयन्ती बड़ी धूमधाम से मनायी गयी। एक अवसर पर वाइस चांसलर महोदय ने वरिष्ठ विद्यार्थियों की एक सभा को सम्बोधित करते हुए कहा "काश आज महात्मा बुद्ध जीवित होते तो हम भी उनके चरणो में बैठकर ध्यान की गहराइयों में प्रवेश कर पते।" तभी विद्यार्थी चन्द्र मोहन (आचार्य रजनीश का असली नाम) ने उनको बीच में ही टोका "बिलकुल गलत, श्री रमन बुद्ध के सामान ही उच्च कोटि के महापुरुष आपके समय में हुए। आप कितनी बार उनके पास गए जरा बताइए।" यह सुनकर वाइस चांसलर महोदय सन्न रह गए व अपनी गलती पर शर्मिंदा हुए।
यही बात हम सभी के साथ है। स्वर्णिम अवसर हम सबके जीवन में आता है द्वार खटखटाता है परन्तु हम अपनी मूर्खता वश वह द्वार नहीं खोलते। समय चुकने पर भगवान या भाग्य से शिकायत करते है कि ऐसा हमारे साथ भी हुआ होता तो हमारा जीवन धन्य हो गया होता।
अब धरती पर सन 2011 से महावतार की लीला प्रारम्भ हो चूका है जो अगले 40 वर्षों तक धरती पर नवयुग की रचना करने में अपनी महान भूमिका निभाएगा। क्या हम उस हेतु अपना मानस बना पा रहे है। महावतार एक ऐतिहासिक घटना है जो युगों-युगों में कभी घटित होती है। अर्थात हजारो अवतारी सताएँ इस समय धरती पर युग परिवर्तन के कार्य को अन्जाम देने का महान कार्य करने जा रही है। जागेगा वही जिसकी आत्मा जिसके कर्म श्रेष्ट होंगे बाकी तो यों ही पशुवत जीवन जीकर दुनिया से चले जाएँगे।
लेखक - विश्वामित्र राजेश
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