Friday, April 3, 2015

हृदय रोग - कारण व निवारण

           भारत में हृदय रोगियों की सॅंख्या तेजी से बढ़ रही है। सन् 1960 में 60 वर्ष से ऊपर ही हार्ट अटैक आता था। सन् 1990 में यह आयु घटकर 40 वर्ष आ गई। सन् 2000 में 30 वर्ष से ऊपर के व्यक्ति भी हृदय रोग से ग्रस्त हैं। आने वाले समय में ऐसा अनुमान है कि लगभग 20-25 वर्ष के युवा को भी हार्ट अटैक हो सकता है।
            यदि हम जीवन में छोटी-छोटी सावधानियाॅं रखें तो हम हृदय रोगों की चपेट से बच सकते हैं। वैसे तो मेरे भारत मेें लोगों के पास ज्ञान बहुत है बहुत सारी दवाईयाॅं व काम की बातें लोग बताते हैं परन्तु इसके उपरान्त भी हमारे यहाॅं समस्याएॅं विकराल रूप् धारण करती चली जा रही हैं। इसका कारण है उचित ज्ञान व उसको जीवन में उतारने का अभाव। यहाॅं कुछ इस प्रकार तर्क सम्मत समझाया जा रहा है कि हृदय रोगों के कारण जानने व उनसे छुटकारा पाने में बहुत लाभ व्यक्ति को मिलेगा। इसके लिए आवश्यक मनन करने योग्य बिन्दु निम्न हैं।

  1.   एक स्वस्थ व्यक्ति का दिल प्रति मिनट 72 बार धड़कता है अर्थात् इतनी बार फेलता व सिकुड़ता है। एक धड़कन का अर्थ है कि एक बार सिकुड़ना व एक बार फैलना। एक धड़कन में लगा समय = 60/72 = .85 Second इस .85 Second में हृदय .35 Second काम करता है व .5 Second आराम करता है। चिकित्सकों के अनुसार धड़कन 60 से 90 तक हो सकती है। यदि 90 से ऊपर जाती है तो इस रोग को टैकीकार्डिया (Techycardia) कहते हैं और यदि धड़कन 60 से कम होती है तो इसे ब्रेडीकार्डिया (Breadycardia) कहते हैं। जैसे जैसे व्यक्ति के दिल की धड़कन बढ़ती है, प्रति धड़कन समय कम होता जाता है। उदाहरण के लिए यदि प्रति मिनट धड़कन 100 हो जाती है तो प्रति धड़कन समय 60/100 = .6 Second इसमें .35 Second हृदय कार्य करेगा व .25 Second ही हृदय आराम कर पाएगा। यदि आराम का समय कम कर दिया जाए तो व्यक्ति पर बोझ बढ़ जाता है ऐसे ही हृदय पर भी बोझ बढ़ने लगता है। यह हृदय के धड़कन कब बढ़ती है जब हम गुस्सा करते हैं, भयग्रस्त होते हैं, ईष्र्या द्वेष करते हैं, जल्दबाजी के आवेश में रहते हैं अथवा वासनाग्रस्त होते हैं। अतः हृदय के उत्तम स्वास्थ्य के लिए हमें इन दुर्गुणों से बचना होगा तथा शान्त व प्रसन्न रहना सीखना होगा।
  2.             हृदय को अपना कार्य करने के लिए करंट (Electric Pulse Signals) चाहिए व शुद्ध रक्त चाहिए। हृदय से नीला अशुद्ध रक्त फेफड़ों में जाता है व वहाॅं से शुद्ध होकर पुरे शरीर की सत्तर हजार बिलियन कोशिकाओं तक पहुॅंचाया जाता है। जो व्यक्ति गहरी सायं नहीं लेते उनका रक्त शुद्ध नहीं हो पाता। क्योंकि रक्त का अधिकतर शोधन फेफड़ों के निचले हिस्सों से होता है अतः वहाॅं तक वायु का संचार आवश्यक है। मानसिक रूप् से अशान्त व्यक्ति जल्दी-जल्दी साॅंस भरता है व उथली साॅंस लेता है। अतः गहरी साॅंस लेने का अभ्यास करें।
  3.             मानसिक उत्तेजना से हृदय को जो स्नायु तन्त्र (Nervous) करंट भेजती हैं उसमें Disturbance आ जाती है। जैसे यदि Electric Signals में Fluctuations होने लगे तो बल्ब पंखें आदि मशीनों के जलने का खतरा बढ़ जाता है वैसे ही हृदय की विकृति का खतरा बढ़ जाता है। यह तो अच्छा है कि भगवान ने शरीर में Auto-Healing का System बना रखा है जिससे टूट-फूट स्वतः भरती हैं। परन्तु यदि आवेश उत्तेजना अथवा कोई मनोविकार व्यक्ति पर हावी होने लगे तो यह खतरनाक हो सकता है।
  4.             अगला महत्वपूर्ण बिन्दू है कोलेस्ट्राॅल के सम्बन्ध में। कोलेस्ट्राॅल रक्त में एक बहुत ही आवश्यक तत्व है जो अन्तः स्त्रावी ग्रन्थियों (Endocrine Glands) के हारमोन्स के निर्माण में काम आता है। यह तो एक प्रकार का Raw Material है जो प्रत्येक Cells तक पहुॅंचाना अनिवार्य है। रक्त में तीन-चार प्रकार के कोलेस्ट्राॅल होते हैं
1. High Density (HDL/Good Cholesterol / High density Lipoproteins )  
2. Low Density (LDL/ Bad Cholesterol/ Low density Lipoproteins)
                    The function of LDL is to deliver cholesterol to cells, where it is used in membranes,
3. Tri glyceroids   etc.
           इसमें HDL की मात्रा 40-45 से अधिक व LDL की मात्रा 100 से कम होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त इनका अनुपात LDL/HDL <= 3 होना चाहिए। ट्राई ग्लिसारायड 140 से नीचे होने चाहिए। LDL जंक फूड से तला पूरी, पराठा, पापड़ आदि से आता है व HDL अनाजों, फलों, सब्जियों से आता है। इसके अतिरिक्त कोलेस्ट्राॅल के निर्माण में लीवर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि हमारा व्यक्तित्व व दृष्टिकोण सकारात्मक रहता है तो HDL का निर्माण अधिक होता है और यदि हम गलत व घटिया कोष में संलग्न होते हैं तो LDL का निर्माण अधिक होता है। अतः हमारे कर्मों, विचारों, भोग अर्थात् व्यक्तित्व का सीधा प्रभाव हमारे हृदय पर पड़ता है। क्योंकि यदि LDL बढ़ जाए तो यह शीघ्र ही हृदय की धमनियों में जमने लगता है व blocks आने लगते हैं। इन blocks को हटाना दुष्कर कार्य हैं। लोकी का रस, अर्जुन चूर्ण आदि अनेक उपायों को लम्बे समय तक अपनाने पर भी उचित परिणाम नहीं निकल पाते। परन्तु यदि HDL बढ़ जाए तो यह स्वतः ही Blocks को तोड़ने में सहायक होता है
Excess cholesterol is eliminated from the body via the liver, which secretes cholesterol in bile or converts it to bile salts. The liver removes LDL and other lipoproteins from the circulation. HDL (or really, the HDL precursor) is synthesized and secreted by the liver and small intestine. It travels in the circulation where it gathers cholesterol to form mature HDL, which then returns the cholesterol to the liver via various pathways.
5.  आयुर्वेदिक दवाओं में अर्जुन चूर्ण अथवा खमीरों का प्रयोग हृदय के लिए श्रेष्ठ माने गए हैं। इसका विस्तारपूर्वक बाद में वर्णन किया जाएगा।
   6.    हृदय में तीन मुख्य धमनियाॅं होती हैं यदि एक या दो धमनी में 50% Blocks आ जाए तो भी व्यक्ति का कार्य सुचारू रूप् से चलता रहता है। समस्या तब होती है जब क्रोध, भय अथवा अन्य Negative Emotions के समय धमनियाॅं सिकुड़ जाती हैं तो रक्त दबाव बढ़ने से धमनियों का फ्रेक्चर होकर Clotting शुरू हो जाती है। Angioplasty Test के द्वारा ही यह पता चल पाता है कि कितनी blocks है व कितनी clotting हुई है। अतः अवश्यक्ता इस बात की है कि व्यक्ति शान्त मन, सात्विक भोजन व Positive Emotions को Develop करने को प्रयास करें जिसमें उसका हृदय स्वस्थ रहे।
          7.     हृदय की माॅंसपेशियों को बल देने के लिए प्रतिदिन घूमना व व्यायाम आवश्यक है। जितना व्यक्ति शारीरिक श्रम करता है उतना स्वस्थ रहता है।
  8.   यदि व्यक्ति के हृदय में blockage आया है तो सीढ़ी चढ़ने अथवा अन्य श्रम वाले कार्यों से छाती में दर्द होना प्रारम्भ होता है इसको एन्जाइना पेन कहते हैं। जिसके निवारण के लिए blockage वाली जगह पर स्टंट डालते हैं इस प्रक्रिया को angioplasty कहते हैं।

9.    हृदय के अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्यक्ति उदार हो, श्रमशील हो, क्षमा धैर्य जैसे गुणों को धारण करने वाला हो व ब्रह्मचर्य को अधिक से अधिक पालन करें।
Niacin (Nicotinic Acid)
You may know of niacin as an essential nutrient of the vitamin B complex. At high doses (much higher than required for its role as a vitamin), niacin increases HDL levels and decreases triglyceride and LDL levels. The mechanism of action of niacin is not fully defined, but it appears to inhibit an enzyme in the liver that is involved in triacylglycerol synthesis, causing a decrease in VLDL production.  Another effect in the liver is to prolong the half-life of HDL particles by preventing HDL breakdown.  



            हृदय रोग के कारणों पर यदि विचार किया जाए तो आहार-विहार से अधिक मानसिक स्थिति जिम्मेदार है। लेखक द्वारा दो ऐसे व्यक्तियों का जिक्र यहाॅं पर बहुत स्टीक बैठता है। एक व्यक्ति प्रतिदिन शराब पीता है खान-पान में संयम भी नहीं करता। वजन 90KG से भी ऊपर है पर्याप्त मोटा है परन्तु प्रसन्न रहता है व दूसरों को भी प्रसन्न रखता है उसका LDL/HDL ratio जाॅंच के दौरान सदैव सही पाया जाता है। दूसरा व्यक्ति धार्मिक स्वभाव का है खान-पान, नियम-संयम, जप-तप सभी कुछ करता है, सात्विक जीवन जीता है परन्तु प्रारब्ध वश उसके जीवन में संघर्ष व विपरीत परिस्थितियों द्वारा मानसिक अशान्ति आती रहती है उसका LDL/HDL ratio कई बार बिगड़ जाता है। इस प्रकार यह निर्णय निकलता है कि व्यक्ति को लम्बा जीवन जीने के लिए व हृदय के अच्छे स्वास्थ्य के लिए मानसिक तनाव से सदा बचने का प्रयास करना चाहिए।

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