Sunday, September 30, 2012

उत्तम स्वास्थ्य हेतु वसा की प्रकृति (Nature of Fats for Good Health)


वसा (Fat)                                                                                                                                    
वसा (चिकनाई) के बिना भोजन खाना तो दूर, कल्पना करना भी मुशिकल हैं। परन्तु वसा के बारे में भ्रान्तियाँ है। कई लोग सोचते हैं, जो माँ करें, पेयो करें, जो करें घेयो, यानि जो काम माँ नहीं करती, पिता नहीं करता, वह घी करता है। जबकि कई लोग सोचते हैं कि यह जहर के समान हैं। वास्तव में चिकानाई यदि सही गुणवत्ता  की, सही मात्रा में ली जाए तो स्वास्थ्य के लिये बहुत लाभदायक है, परन्तु यदि अनुचित मात्रा में अथवा बिना गुणवत्ता  का ध्यान रखकर ली जाये तो बहुत हानिकारक है। इस लेख में यही दर्शाया गया है कि किस व्यक्ति को कितनी मात्रा में कौन सा घी तेल लेना चाहिये।

लाभ:- कार्बोहाइड्रेट की तरह, चिकनाई शरीर को उष्णता प्रदान करती है। त्वचा के नीचे इसकी परतें, अवरोध के रूप में काम करती है। हृदय, गुर्दे आदि के चारों ओर वसा की परतें, इन्हें चोट झटकों से बचाती है। चिकानाई शरीर को चिकना बनाती है। इसकी कमी से शरीर में रूखापन, होठ फठना, बाल झड़ना जैसी समस्यायें हो जाती है। वसा शक्ति तथा प्रतिरोधक क्षमता बढ़ानें में लाभकारी है। विटामिन A, D, E, K तथा कुछ एंटी-आक्सीडैंट, वसा में ही घुलते है, अत: यदि हम घी, तेल बिल्कुल नहीं लेगें तो हमारे शरीर में इनकी कमी हो जाएगी, जिससे अनेक रोग हो आएगें। वसा के पचने में अधिक समय लगता है, अत: यह अमाशय में देर तक रहती है और भूख को सन्तुष्ट करती है।

हानियाँ:- अधिक मात्रा में अथवा अनुचित गुणवत्ता  के घी, तेल लेने से इतने रोगा हो सकते है कि उनका वर्णन करना भी कठिन है, जैसे मोटापा, उच्च रक्त चाप, हृदय रोग, पथरी। चिकनाई युक्त भोजन स्वाद के कारण भूख से अधिक खाया जाता है, जो कि हानिकारक है।

स्त्रोत:- वसा को  प्राप्त करने के मुख्य दो प्रकार के स्त्रोत है:-
1-पशु जन्य (Animal Source):- यह हमें गाय, भैंस आदि के दुध से प्राप्त होती है। इसमें क्रीम, मक्ख्न, घी आदि आते है।
2-वनस्पति जन्य (Plant Source):-यह वनस्पति अर्थात् पेड़ पौधों से प्राप्त होती है, जैसे सरसों, तिल, जैतुन(Olive) सूरजमुखी, नारियल, मूँगफली, अलसी, पाम। रिफाइण्ड तेल:-जब किसी भी तेल को इस तरह की पक्रिया से निर्मित किया जाये कि उसका मूल रूप ही समाप्त हो जाये और देखने, सूंघने से मालूम चले कि कौन सा तेल है, उसे उसे रिफाइण्ड़ तेल कहते है।

वसा के प्रकार:- अलग-अलग प्रकार की वसा का हमारे स्वास्थ्य पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। यह मुख्यत चार प्रकार की होती है:
1: वसा (Mono unsaturated fat) यह अंसतृप्त वसा बहुत लाभदायक है। इसके खाने से टोटेल कोलेस्ट्राल, खराब कोलेस्ट्राल(LDL),Triglycerides तथा मोटापा कम होते है, जबकि अच्छा कोलेस्ट्राल (HDL) बढ़ाता है। इसकी कमी से जोड़ो घुटनों का दर्द हो सकता है।

स्त्रोत:-यह सरसों, जैतून (Olive), कैनोला, रेपसीड, मूँगफली और कुछ सूखे मेवों (बादाम, अखरोट आदि) से बनता है।

2: पुफा(Poly unsatursted fat) यह असंतृप्त वसा दो प्रकार की है और लाभदायक है
() omega 3 poly unsaturated fat यह हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है इससे मोटापा, triglycerides कम होते है, अच्छा कोलेस्ट्राल (HDL) प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, हृदय रोग पक्षाघात से बचाव होता है। यह सूजन(Inflamation) बाय, गठिया (Arthirites) से बचाता है तथा Depression कम करता है। यह बच्चों की बौद्धिक स्तर बढ़ाता है। अमेरिका में एक खोज से पता चलता है कि यह एकाग्रता बढ़ाता है।

स्त्रोत:-यह पटसन (Jute) अलसी (Linseed) में होता है तथा मूँगफली, तिल, पालक फूलगोभी, पत्तागोभी, सलाद अखरोट आदि में बहुत थोड़ी मात्रा में होता है यह शाकाहारी भोजन से बहुत कम मात्रा में प्राप्त होता है अत: इसे अलग से लेना आवश्यक है।

()omega 6 poly unsaturated fat:- यह असंतृप्त वसा भी अच्छी मानी जाती है, क्योंकि इससे टोटल कोलेस्ट्राल, खराब कोलेस्ट्राल Triglycerides तथा कम होने के साथ-साथ अच्छा कोलेस्ट्राल बढ़ता है लेकिन इसकी अधिकता कैंसर जैसे रोगों को बढ़ाती है।

स्त्रोत:-यह लगभग सभी वनस्पति जन्य तेल, अनाज तथा सूखे मेवों में होता है। यह दूध, माँस में भी होता है। यह सभी जंक फुड में पाया जाता है omega 3 तथा omega 6 ठीक अनुपात में लेने चाहिए, नही तो उपाचय (Metabolic systeem) खराब हो जाता है। इसका आदर्श अनुपात है 1:2, जबकि भारत में अधिकतर लोग इसे 1:30 तक के अनुपात में लेते है। यह अनुपात तभी संभव है अगर Saturated fat तथा Trans fat कम से कम लिये जायें, नही तो Omega हमारा शरीर ग्रहण नहीं करेगा।

3: संतृप्त वसा (Saturated fat):- यह संतृप्त वसा अच्छी नहीं मानी जाती है क्योंकि इससे टोटल कोलेस्ट्राल तथा खराब कोलेस्ट्राल दोनों बढ़ते है। इसमें इसमें अच्छी बात यह है कि Triglycerides कम होते है तथा अच्छा कोलेस्ट्राल बढ़ता है। यह हमारी कोशिकाओ(cells)को बनाने तथा उनके रखरखाव के लिये अच्छी है। बच्चों में इससे मस्तिष्क का विकास होता है। अत: थोड़ी मात्रा में यह हमारे लिये विशेषकर बच्चों, युवा वर्ग शारीरिक परिश्रम करने वालों के लिये आवश्यक हैं।

4: Trans fat :-यह प्रकृति में बहुत थोड़ी मात्रा में होता है। अधिकतर यह वनस्तति वसा में Hydrogen मिलाने से बनती है। ऐसा करने से वसा ठोस हो जाती है और जल्दी खराब नहीं होती। Trans fat  से चीजें कुरकरी स्वादिष्ट बनती हैं।

इसलिये सामान्यतया  विशेषकर व्यवसायिक रूप से समोसे, कचोड़ी, मठियाँ, नमकपारे, भटूरे, आलु टिक्की, चाट, मिठाइयाँ, केक, बिस्कुट, मांसाहार, Trans fat से बनाये जाते है।Trans fat स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। इससे टोटल कोलेस्ट्राल, सजून (inflamation) बढ़ते है और अच्छा कोलेस्ट्राल कम होता है यह मोटापा, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, जोड़ों का दर्द आदि का मुख्य कारण है। दुभार्गय की बात यह है कि भारत Trans fat वनस्पति तेलों में 40 प्रतिशत तक होता है, जबकि यह 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। इस श्रेणी में डालडा, रथ, पनघट, मारग्राइन आते है। के देशी घी में यह 5 प्रतिशत तक हो  सकता है।

निष्कर्ष:- उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट है हमें वसा बिल्कुल बन्द नहीं करनी चाहिये। आयु तथा शारीरिक परिश्रम के अनुसार 15-25 ग्राम तेल या घी लेने चाहियें। अधिक मात्रा में सभी तेल, घी हानिकारक है।

प्रश्न यह उठता है कि कौन सा तेल, घी सबसे अच्छा है? इसका उतर यह है कि कोई भी तेल, घी सम्पूर्ण नहीं है अत: किसी भी तेल, घी को सबसे अच्छा नहीं कह सकते। व्यक्ति को अपनी आवश्यकतानुसार सभी अच्छे तेल, घी बारी-बारी से या मिलाकर लेने चाहियें, क्योंकि इनमें हमारे स्वास्थ्य के लिये अलग-अलग गुण है। इनमें मूफा तथा पूफा (Omega 3) प्रधान, संतृप्त वसा कम तथा Trans fat बहुत कम, के बराबर होने चाहियें। बच्चों को तथा शारीरिक परिश्रम करने वालों को संतृप्त वसा विशेषकर देसी घी, नारियल का तेल पर्याप्त मात्रा में लेने चाहिये।

नोट:-
1-जिनकी धमनियों में बहुत अधिक रूकावट हो, ऐसे व्यक्तियों के लिये, ठीक होने तक वसा का प्रयोग बन्द करना अच्छा है। 
2-गर्मियों में तेल, घी का प्लास्टिक फूड ग्रेन को छोड़कर के कन्टेनर में नहीं रखना चाहिये। ऐसा करने से वसा में हानिकारक तत्व सकते है।
3-तलने से भोजन में हानिकारक कैमिकल जाते है। अगर बचे हुये तेल, घी को फिर से तलने के लिये प्रयोग किया जाये तो वह बहुत ज्यादा हानिकारक हो जाता है और उससे मोटापा, हृदय रोग आदि की सम्भावना बढ़ जाती है। अत: तलने के बाद बचा हुआ तेल, घी प्रयोग करें तो बहुत अच्छा है, अन्यथा उसे दोबारा तलने के लिये प्रयोग करके केवल छौंक मे प्रयोग करें।
4-वसा की आवश्यकता ग्रीष्म ऋतु की अपेक्षा शीत ऋतु में अधिक होती है क्योंकि यह हमारे शरीर को उष्णता प्रदान करती है।
5-सामान्यत: किसी भी तेल, घी में सभी प्रकार के फैट होते है, कुछ बहुत अधिक, कुछ बहुत कम। इस लेख में मुख्य प्रकार के फैट्स का वर्णन किया गया है। अधिक जानकारी हेतु प्रमुख खाद्य तेल, घी का विवरण उल्लिखित है।

1-कैनोला/रेपसीड (Canola /Rapeseed) :-इसमें संतृप्त वसा बहुत कम तथा असंतृप्त वसा-ओमेगा-3 की मात्रा बहुत अधिक होती है जो कि जैतून के तेल से लगभग 10 गुना है। दिल के लिये बहुत अच्छा हैं। इसमें जलन कम करने की विशेषता है और अधिक तापमान पर जल्दी खराब नहीं होता। इसकी महक के लिये कई लोग इसे पसन्द नहीं करते।

2-नारियल का तेल (Coconut oil) :-यह संतृप्त वसा होने के बावजूद कोलेस्ट्राल नहीं बढ़ता। इसमें एन्टी बैक्टीरियल गुण होते है। यह जलन कम करता है अत: एसिडिटी/अल्सर वालों से लिये अच्छा है। असमय शरीर पर झुर्रियाँ पड़ने पर इसकी मालिश लाभदायक है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसे सही मात्रा में लेने पर इसकी, इन्सुलिन की ठीक मात्रा बनाये रखता हे अत: मधुमेह टाईप -2 की संभावना कम होती है। जले हुये भाग पर लगाने से, क्षतिग्रस्त टिशुज जल्दी ठीक होते है। हृदय के लिये तथा कफ प्रधान व्यक्तियों के लिये अच्छा नहीं है। इसे कम मात्रा में दूसरे तेलों के साथ लेना ठीक है।

3-देशी घी (Desi Ghee) :-इसमें संतृप्त वसा बहुत होती है, अत: यह हृदय कोलेस्ट्राल के लिये अच्छा नहीं है। अच्छी बात यह है कि इसमें मूफा, पूफा तथा विटामिन भी होते है। अत: यह शारीरिक परिश्रम करने वाले बच्चों कम प्रतिरोधक शक्ति वाले व्यक्तियों के लिये अच्छा है। इसकी खुशबु स्वाद अच्छे है। गाय के दूध का घी, भैंस के दूध के घी की तुलना मे बहुत अच्छा है। इसमें तलना या दोबारा गर्म करना हानिकारक है। इसे चपाती पर लगाकर खाना ठीक है।

4-सरसों का तेल (Mustard Oil):-यह एकमात्र तेल है जिसमें मूफा बहुत मात्रा में होने के साथ पूफा ओमेगा-3 ओमेगा-6 पर्याप्त मात्रा में होते है। यह टोटल कोलेस्ट्राल, खराब कोलेस्ट्राल को कम करता है तथा अच्छे कोलेस्ट्राल को बढ़ाता है अत: हृदय रोग, मोटापा आदि अधिकतर रोगों में लाभदायक है। अगर मसुड़ों पर अच्छी तरह से मला जाये तो उन्हें मजबूत करता हैं। यह सस्ता भी है और तलने के लिये भी अच्छा है। इसकी गन्ध तथा स्वाद कई लोगों को पंसद नहीं आता और कई खाने भी इससे नहीं बन सकते। गर्म तासिर के कारण पित्त् प्रवृति वालों को इसे कम खाना चाहिये। इसे लम्बे समय तक प्रयोग करने से युरिक एसिड बढ़ सकता है।

5- जैतून का तेल (Olive Oil):- इसमें मूफा और पूफा ओमेगा-3 बहुत होता है और संतृप्त वसा बहुत ही कम होती हैं। अत: हृदय रोग, ब्रैस्ट कैंसर, कोलन कैंसर, मधुमेह, ओस्टयोपोरोसिस बालों के लिये अच्छा है। यह पेट की चर्बी कम करता है। अधिकतर लोग इसके लाभ स्वाद के कारण इसे पूरे विश्व में पसन्द करते है। यह सब्जी बनाकर भी और कच्चा भी ,खा सकते है, विशेषकर सलाद पर डालकर यह बहुत मंहगा है और कुछ लोग इसकी गन्ध पसन्द नहीं करते। यह तलने के लिये अच्छा है, परंतु इसका स्मोकिगं पोपंट कम होने के कारण, इसमें तलना पसन्द नहीं किया जाता। यह चार किस्म का होता है, जिसमें एक्ट्रा विजर्शन सबसे अच्छा होता है।

6-पाम तेल/घी (Plam Oil):-इसमें 85 प्रतिशत संतृप्त वसा है। अत: यह हृदय रोग, मोटापा आदि के लिये बहुत हानिकारक है। यह सस्ता है और इसमें विटामिन  कई होता है जो कि लाभदायक है।

7-मूँगफली का तेल (Pea nut oil):-देश में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला तेल है। सेहत  के लिये ठीक है। खराब कोलेस्ट्राल कम करता है और अच्छा कोलेस्ट्राल का स्तर सामान्य रखता है। इसमें मूफा और सतृप्त वसा होता है। तलने के लिये अच्छा है।

8-राइस ब्रान का तेल(Rice bran oil):- यह अच्छा है क्योंकि इसमें मूफा  बहुत होता है इसमें संतृप्त वसा पूफा-6 भी पर्याप्त मात्रा में होते है। इसके सेवन से खराब कोलेस्ट्राल कम होता है। इसमें प्राकृतिक विटामिन  भी पाया जाता है त्वचा के लिये अच्छा है।
इसमें पूफा ओमेगा-3 बहुत कम होता है अत: इसे सरसो के तेल के साथ मिलाकर लेना चाहिये। तलने के लिये ठीक है। मूँगफली के तेल की तुलना में लगभग 15 प्रतिशत कम साखो जाता है यह जापान आदि में बहुत प्रसिद्ध है। परन्तु भारत में यह रिफाइण्ड मिलता है, जो कि बिना रिफाइण्ड मूल तेल जैसा अच्छा नहीं होता।

9-तिल का तेल(Sesame oil):-तिल के तेल में औषधीय गुण बहुत है। इसका स्वाद गन्ध रूचिकार हैं। वात/कफ वालों के लिये खाने और मालिश के लिये अच्छा है। इसके प्रयोग से जठराग्नि तीव्र होती है। इसकी तासीर बहुत गर्म है,अत: पित्त् वालों के लिये अच्छा नहीं है और उबलता बहुत ज्यादा तापमान पर है। इसे कच्चा भी खा सकते है।

10-करंड़ी (Saffola Safflower):-इसमें पूफा बहुत होता है। इसमें कैल्शियम भी बहुत होता है। हृदय के लिये अच्छा है क्योंकि खराब और अच्छे कोलेस्ट्राल में सन्तुलन बनाये रखता है।

11-सूरजमुखी (Sunflower):-इसमें पूफा ओमेगा-6 तथा विटामिन बहुत होता है। अत: कैनोला, रार्इसब्रान, जैतुन, सरसों के तेल के साथ थोंड़ी मात्रा में प्रयोग करना ठीक है क्योंकि यह भारत में दूसरे खाने के स्त्रोत से मिल जाता है और इसकी अधिकता बहुत हानिकारक है। किन्तु एलर्जी में लाभदायक है।