Friday, September 21, 2012

मोबाइल से हानियाँ



मोबाइल आज हमारी जिन्दगी का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। मोबाइल के बिना आज कोर्इ अपनी जिन्दगी की कल्पना भी नहीं कर सकता और उसे हमेशा अपने नजदीक ही रखना चाहता है। निश्चित रूप से मोबाइल द्वारा पारिवारिक, सामाजिक संपर्क बढ़ है और इसके माध्यम से लोग अपनी भावनाओं को अभिवयक्त करने में अधिक सहज हुए है। सही कारण है कि वर्तमान की आधुनिक जीतन शैली में मोबाइल का एक महत्पूर्ण स्थान है, लेकिन जहाँ इससे अनेक फायदें है, वहीं कुछ नुकसान भी है। अनावश्यक बातचीत-घंटों मोबाइल से बातें करते रहने की आदत से एक ओर तो व्यकित कीमती समय नष्ट होता है। वहीं कर्इ तरह की शारिरीक  स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ भी पैदा होती है, जिसमें सबसे अधिक श्रवण शक्ति का प्रभावित होना, हाथ की मांसपेशियों में तनाव होना व मस्तिष्क का प्रभावित होना मुख्य है।
निश्चित रूप से मोबइल के माध्यम से लोगों के मध्य की दूरियाँ कम हुर्इ है और अपने प्रिय जनों से अधिक संपर्क बढ़ा है, लेकिन इसे हमेशा नजदीक रखने के कुछ नुकसान भी है, जिन्हें जानना अत्यंत आवश्यक है। वैज्ञानिक शोध निष्कर्षो में ऐसा पाया है कि मोबइल फोन और इसके टावर से निकलने वाली रेडिएशन व्यक्ति की पाचन शक्ति को कमजोर कर सकती है और उसके कारण ठिक से नींद ना आने की बीमारी और एकाग्रता की कमी हो सकती है। अक्सर लोग सोते समय मोबाइल को अपने तकिए के नीचे वाइब्रेटर या साइलेंट मोड पर करके सो जाते है, लेकिन मोबाइल को इस तरह रखने का तरीका स्वास्थ्य को अधिक नुकसान पहुँचा सकता है। यूनिवर्सिटी ऑफ केलिफोर्निया के एक शोध के अनुसार मोबाइल को वाइब्रेशन मोड पर ज्यादा देर तक इस्तेमाल करने से कैंसर का खतरा अधि होता है। इसका कारण यह है कि मोबाइल के सिग्नल के लिए जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें आती है, वे दिमाग की कोशिकाओं की वृद्धि को प्रभावित करती है और इससे टयूमर विकसित होने की संभावना अधिक होती है। कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉक्टर शलभा गुप्ता के अनुसार- मोबाइल टावर से मोबाइल फोन को जोड़ने के लिए जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें निकलती है वे मस्तिष्क की कोशिकाओं के विकास को प्रभावित करती है। चूँकि मस्तिष्क के भीतर भी सुचनाओं का आदान-प्रदान इलेक्ट्रोमैग्नंटिक तरंगों के माध्यम से होता है, अत: मोबाइल को तकिए के पास रखने से दिमाग की प्रकृतिक तरंगें प्रभावित होती है। इसके कारण शरीर में कैंसर सहि त कर्इ तरह की परेशानियाँ बढ़ने का खतरा है। मस्तिष्क की प्रकृतिक तरंगों में बाधा पहुँचाने के कारण इसकी कोशिकाओं का स्वाभिक विकास रूक जाता है और वे पुर्ण विकसित होने से पहलें ही विभाजित होने लगती है एवं टयुमर बना लेती है।
मोबाइल फोन, लैंड़ लाइन, या फिर पब्लिक फोन आदि सूचना क्रांति की महत्वपूर्ण सौगात है और इसकी किसी न किसी रूप में आवश्यकता पड़ती ही रहती है। लेकिन इसके माध्यम से कर्इ तरह के छुत के रोग फैलते है। सर्वेक्षण अध्ययन यह बताते है कि फोन पर पाए जाने वाले रोगाणुओं आम बीमारियों जैसे- सरदी, जुकाम, खाँसी आदि के रोगाणु काफी अधिक संख्या में मौजुद रहते है और इनकी सबसे अधिक संख्या माउथपीस में मौजुद होते है। यह बात पुरी तरह से स्पष्ट है कि वर्तमान परिस्थितियों में संचार क्रांति की इस महत्त्वपूर्ण तकनिकी प्रगति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और इसका प्रयोग करने से भी स्वंय को रोकना ठिक नहीं है।
लेकिन कुछ सावधानीयों पर यदि ध्यान दिया जा सके तो इन के प्रयोग से होने वाले दुष्परिणमों से आसानी से बचा जा सकता है, जैसे फोन पर अनावश्यक बात-चीत न करें यदि व्यक्ति बीमार है तो यथासंभव फोन का इस्तेमाल ने करें। टेलीफोन को प्रयोग करने से पूर्व एवं उसकी सफार्इ करें और मोबाइल की भी समय-समय पर सफार्इ अवश्य करें। मोबाइल फोन का प्रयोग लम्बे समय तक एक साथ ने करें। मोबाइल फोन को सिर के काफी करिब न रखें, न उसे सिर के पास रखकर सोएँ, लेटे हुए देर तक मोबाइल से बातचीत न करें। यदि बात करना अतयन्त जरूरी है तो बातचीत के बीच में थोंड़ा विश्राम भी लेना अच्छा है। मोबाइल फोन के इस्तेमाल से सेहत पर पड़ने वाले प्रभाव को जानने के लिए जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में चुहों पर परीक्षण किया गया। इसके लिस एक प्रोजेक्ट को इंडियन काउन्सिल ऑफ मेडिकल रिचर्स (आर्इसीएमआर) और काउन्सिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिचर्स (सीएमआर्इआर) द्वारा प्रयोजित किया गया। इस परिक्षण में निम्न बातें सामनें आर्इ- (1)- लंबे समय तक रेडियोफ्रिक्वेन्सी रेडियशन के प्रभाव में रहनें के कारण द्विगुणित डीएनए स्पर्श कोशिकाओं में टुट जाते है, जिससे व्यक्ति की वीर्य गुणवत्त् और प्रजन्न क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। (2)- माइक्रोवेव रेडिएशन की वजह से मानव कोशिकाओं के एंटीऑक्सीडेन्ट डिफेन्स मैकेनिज्म क्षमता पर असर देखा गया है। कोशिकाओं की प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण शरीर में हृदय रोग, कैंसर, आर्थराइटिज व अल्जाइमर जैसे रोगों के पनपने की संभावना रहती  है।
(3)-मोबाइल से उत्सर्जित विद्युत चुंम्बकीय तरंगों से सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
(4)- रेडियशन का व्यक्ति के शरीर पर पड़ने वाला प्रभाव, उसके इस्तेमाल किए जाने वाले मोबाइल फोन की क्वालिटी, उसकी उम्र और उसके प्रयोग करने के तरीके व समय पर भी निर्भर करता है। चूँकि मोबाइल फोन का प्रचलन बहुत बढ़ गया है और हर स्तर के व्यक्ति मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने लगें है तथा बाजार में ऐसे फोन उपलब्ध होने लगें है जिनसे कर्इ तरह के कार्य एक साथ संभव है, जैसे- इंटरनेट का प्रयोग एवं इससे जुड़े हुए सभी तरह के कार्य, रिकाडिऱ्ग, फोटों खीचना, गाने सुनना, फिल्म देखना, मनपसंद टी वी सिरयल देखना आदि, इसलिए जीतनी सुविधाओं से युक्त फोन होते है उनकी कीमत भी उतनी ही अधिक होती है। अत: उनके इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति के अंदर उनके गुम हो जाने का डर भी एक नए रोग के रूप में पनप रहा है, जिसे ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने नोमोफोबियाका नाम दिया है। इससे संबंधित शोध अध्ययन के  अनुसार- दिन भर मोबाइल फोन के अत्याधिक इस्तेमाल से व्यक्ति की नींद प्रभावित हो रही है। उसका फोन कहीं गुम न हो जाए, कहीं खराब न हो जाए, कहीं सिग्नल न चला जाए जैसे डर आज युवाओं को मानसिक रोगी बना रहे है। शोध के अनुसार यह रोग 17 से 24 वर्ष के युवाओं में अधिक पनप रहा है और इसके कारण  78 प्रतिशत युवा नोमोफोबिया हो चुके है। ब्रिटेन की एक संस्था सिक्योर एन्वाय द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार- नोमोफोबिया रोग से ग्रसित महिलाओं की संख्या पुरूषों से अधिक है। जहाँ 70 प्रतिशत महिलाएँ नोमोफोबिया है वहीं 62 प्रतिशत पुरूषों में यह रोग देखा गया है फोन कहीं खो न जाए, इस डर से अब लोग दो या इससे ज्यादा फोन सेट अपने पास रखने लगे है।  आज के दौर में व्यक्ति अपने  मोबाइल की रिंगटोन सुनने के इतने अभ्यस्त हो चुके है कि रिंगटोन न बनजे पर भी उसकी धुन उन्हें सुनार्इ देती है और बार-बार उन्हें भ्रम होता है कि उनका मोबाइल फोन बज रहा है इसके कारण वे उसे कर्इ बार देखते है और चेक करते है यह स्थिति ‘‘सूड़ो पैरानायड सिजोफे्रनिया’’ है, जो मस्तिष्क की तंत्रिकाओं में शिथिलता आ जाने के कारण उत्पन्न होती है। जो व्यक्ति अपने पास एक या उससे अधिक फोन रखते है, वे इस रोग से ग्रसित पाए गए है। इस रोग के दौरान व्यक्ति अकसर गहरी निद्रा से यह सोचकर जाग उठते है कि  फोन बज रहा है लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ नहीं होता। मोबाइल फोन या अन्य किसी भी तरह के फोन पर व्यक्ति की अत्याधिक निर्भरता हानिकारक है, क्योंकि इसके कारण भी कर्इ तरह की शारिरीक व मानसिक विकृतियाँ व्यक्ति के जीवन में प्रवेश कर रही है। अत: इस ओर ध्यान देते हुए मोबाइल का सिमित एवं अत्यावश्यक प्रयोग ही करना चाहिए और ध्यान देना चाहिए कि जीवन में फोन की वजह से सामान्य जीवनशैली प्रभावित तो नहीं हो रही है। यदि ऐसा है तो इससे संबंधित आवश्यक सावधानियों को अपनाना चाहिए।
(From Akhand Jyoti Aug12)

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