आयुर्वेद के गंथों की रचना करने के
पश्चात महार्षि चरक के मन में विचार उठा कि प्रवास पर निकला जाए और परखा जाए कि
स्वास्थ्य के सूत्रों को जन-जन तक पहुचाने का उनका प्रयास सफल हुआ या नहीं। महर्षि
वेश बदलकर वैद्यो की एक सभा में पहुँचे और सबके समक्ष एक प्रश्न रखा कि ‘ को·रूक?’ अर्थात रोगी कौन नहीं है? एक वैद्य ने उतर दिया की स्वस्थ वह है, जो नित्य च्यवनप्राश खाता है। कोई बोला कि स्वस्थ वह है, जो शिलाजीत का सेवन करता है। किसी ने
लवण भास्कर को श्रेय दिया तो किसी ने चंद्रप्रभा वटी को समग्र गुणें की खान बताया।
उनके उतरो को सुन महार्षि का मन क्षोभ से
भर उठा। वे सोचने लगे की इन्होंने तो मनुष्य शरीर को औषधियों का संग्रहालय बना
दिया, मेरी वर्षो की तपस्या विफल हो गई ।
इन्हीं विचारों में मग्न महार्षि चरक वैद्य वाग्भट के सामने से गुजरे। मन में
असंतोष तो था, पर तब भी आशावश उनने यही प्रश्न वाग्भट
महाराज से किया। वाग्भट ने उतर दिया- ‘हितभुक् मितभूक् ऋतभूक’। अर्थात स्वस्थ वह है, जिसका आहार मित है, ऋतुओं के अनुसार है और शरीर के लिए
हितकार हो, वाग्भट का उत्त्ार सुनकर महार्षि का मन
प्रसन्नता से भर उठा।
उपरोक्त प्रंसग में मानव को स्वस्थ
रखने के लिए एक बहुत गहरा संदेश छिपा हुआ है। मनुष्य में यह दुर्बलता पायी जाती है
कि वह अपनी बिगड़ी आदतों के कारण अपने आहार विहार को ठिक नहीं करता अपितु अपने रोग
मुक्ति के लिए भाँति-भाँति की दवाइयाँ खोजता फिरता है। ऋषि का स्पष्ट आदेश है कि
स्वस्थ वही रह सकता है। जिसका आहार विहार सही हो चाहे वो कितनी ही बढिया से बढिया
दवा क्यों न खा ले।
हितभुक- अर्थात वह आहार-विहार अपनाए जो उसके
लिए हितकारी हो। आहार अर्थात भोजन, विहार
का अर्थ है आचरण रहन-सहन। बच्चे के लिए पौष्टिक भोजन हितकारी है तो बड़ो के लिए
संयमित भोजन। वात प्रधान व्यक्ति के लिए एक प्रकार का भोजन व इन्द्रिय संयम आवश्यक
है। तो पित्त प्रधान व्यक्ति के लिए क्रोध
न करना व शीतलता प्रदान करने वाले पदार्थ उपयुक्त हैं।
ऋतभुक-आहार-विहार ऋतुओं के अनुसार बदलना
चाहिए। गर्मी की ऋतु में हल्के वस्त्र पहनना, शीतल
जल में स्नान लाभदायक हो सकता है, परन्तु
शीत ऋतु में उनी वस्त्र पहनना, व
हल्के गर्म पानी में स्नान करना हितकारी है। ऋतुओं को ध्यान में रखते हुए अनुकूल
आहार-विहार करना चाहिए।
मितभुक- व्यक्ति को मिताहारी रहना चाहिए। यह
तपस्वी जीवन की ओर, संयमी जीवन की ओर ऋषियों का संदेश है।
जितना भूख है उससें थोडा कम खाए, समय
पर खाए, अनावश्यक ठूसाँ-ठाँसी न करें। इसी
प्रकार अधिक के लालच में न पड़े, अपरिग्रही
बनें कृत्रिम जीवन से बचने का प्रयास करें। प्रकृति वातावरण में रहें। Luxurious life भाँति-2 के रोगों को आमन्त्रित करती है
जैसे मधुमेह व मोटापा आदि। अत: आवश्यकता से अधिक सुख के साधन घरो में एकत्र न
करें। जो जितना अपरिग्रही रह सकें, दिखावों
से बच सकें, बच्चों की भाँति सरल निष्कपट रह सकें
वही स्वस्थ जीवन जी सकता है।
(अधिक जानकारी के लिए पढ़ें- सनातन
धर्म का प्रसाद)
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