विवाहित जीवन के आरंभ होते ही
पति-पत्नी को एक मामले में विशेष रूप से सावधान रहना चाहिए कि वे किसी भी मामले
में अति न करें यानी दाम्पत्य जीवन का आरंभ अति के साथ न करें चाहे मामला कोई सा
भी क्यों न हो क्योंकि अति करने का परिणाम हमेशा बुरा ही होता है। अपनी क्षमता और
शक्ति के बल पर आप आज कोई अति कर भी लें और तत्काल कोई कष्ट या कोई रोग न भी हो पर
आज नही तो कल यह दुष्परिणाम होगा ही। इसमें देर हो सकती है पर अधेर नहीं हो सकती
यह धु्रव सत्य है। लगातार अति करने से ऐसी आदत पड़ जाती है, चस्का पड़ जाता है और ऐसा व्यक्ति बड़ी
मुसिबत में पड़ जाता है। महशुर शायर जनबा ’’बेखुद देहलवी‘‘ ने इस स्थिति के बारे में क्या खुब कहा
है कि-लज्जत कभी थी, अब तो मुसीबत सी हो गई । मुझ को गुनाह
करने की आदत सी हो गई। सोचने
वाली बात यह है कि आखिर आप कब तक, कितने
लम्बे समय तक अति करते रह सकते है। जैसे कोई पक्षी कितना ही उंचा उड़ जाए आखिर तो
नीचे उतरता ही है। शुरू-शुरू में तो जब तक सामथ्र्य और शक्ति रहती है तब तक तो कुछ
पता नहीं चलता क्योंकि उस वक्त तो आप वहां होते है जहां आपको खुद अपनी खबर नहीं
होती। भले ही मामला फैशन करने का हो, खामखा
शापिंग करने का हो, घर में सजावट का टीमटाम जुटाने पर खर्च
का हो, सैर सपाटा या आए दिन घर से बाहर लंच
ड़िनर खाने का हो या भोग विलास करने का मामला हो, हर मामले में यदि शुरू से ही सामान्य ढ़ग से चला जाए तो वह हमेशा
निभाया जा सकता है। ऐसा करना अच्छा नहीं कि घी घन, कभी मुठठी चना और कभी वह भी मना। अति करने का दुष्परिणाम हमेशा ’’वह भी मना’’ वाली स्थिति को भुगतना ही होता है।
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