नौंवा कदम है श्रद्धा उच्च आदर्शों को ढृढ़तापूर्वक पकड़ने का प्रयास करें, डगमगाएँ नहीं, शास्त्रों के प्रति, भारतीय संस्कृति के सिद्धांतों के प्रति अपने मन में
अटूट विश्वास पैदा करें इस भाव को श्रद्धा कहते हैं।
दसवाँ कदम है शुचिता, अपने चारों ओर स्वच्छ
वातावरण बनाएँ, गन्दगी न पनपने दें, गलत संगति, गलत मानसिकता के लोगों से सदा उचित
दूरी बनाएँ रखें।
ग्याहरवाँ कदम है सन्तोष! अपनी
परिस्थितियों, कठिनाईयों, प्रारब्धों को लेकर विचलित न हो भगवान् ने जो कुछ दिया है उसमें सन्तोष
करें। अपने आस-पड़ोस के वातावरण से
प्रभावित होकर व्यर्थ की लिप्साएँ न बढ़ाएँ।
अगले गुण सहृदयता का अर्थ है उदार
हृदय रखना। हमें दूसरों की कमियों को क्षमा करना सीखना चाहिए। सबका सहयोग, सबकी सहायता करने की भावना
अपने हृदय में रखनी चाहिए। सत्य अर्थात सच्चे और अच्छे रास्ते पर चलने का सदा
प्रयास करें जिससे आत्मबल की वृद्धि हो। पराक्रम का अर्थ है चुनौतीपूर्ण कार्यों को
करने में आनन्द का अनुभव करें ऊँचे और कठिन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सदा तत्पर रहें। जीवन में सरसता बनाएँ नीरस
और चिड़चिड़ा जीवन जीने की बजाय हँसमुख और सरस जीवन जीने की भावना रखें।
व्यक्ति स्वावलम्बी बनें अर्थात
दूसरों से धन माँगने की बजाय अथवा दूसरों पर निर्भर न रहकर अपना जीवनयापन स्वयं
करने को स्वावलम्बन कहा जाता है। छोटी-छोटी चीजों के लिए दूसरों पर निर्भर न रहें।
साहस की वृद्धि का अर्थ है - एक सैनिक की भाँति निडरतापूर्वक आगे बढ़ने का
संकल्प अपने अन्दर जगाएँ। अगले गुण ऐक्य का अर्थ है जिस भी वातावरण में जिस भी
परिस्थिति में हो एकजुट हो करके कार्य
करें। सबसे सामंजस्य बिठाने का गुण हमारे भीतर विकसित हो। अच्छे और बुरे हर प्रकार के व्यक्ति से हम अपना तालमेल बिठा सके । अगले गुण संयम का अर्थ है जहाँ भी आवश्यकता प्रतीत हो वहाँ हम नियन्त्रण करना
सीखें।
सहकारिता- श्रेष्ठ समाज के निर्माण के लिए सहयोग एवं सहकार एक अनिवार्य गुण है। श्रमशीलता हेतु प्रत्येक Work is Worship के नियम का पालन करे। व्यक्ति
आलसी नहीं मेहनती बने। खाली बैठकर व्यर्थ की गपशप में समय नष्ट न करे। खून पसीने के द्वारा अपना लक्ष्य हासिल करे।
सादगी भरा सीधा-साधा जीवन बहुत ही
सुखदायी होता है। अतः आडम्बर त्यागकर सादगी भरा जीवन जीएँ। अगले गुण शील हेतु
व्यक्ति शीलवान बने अर्थात गलत कार्यों में, गलत आदतों में शर्म व संकोच का अनुभव करें। जीवन में समन्वय
का बहुत महत्व है ऊँचा उद्देश्य प्राप्त करने के लिए समन्वित प्रयास ही सार्थक होते हैं। अपनी आध्यात्मिक व भौतिक उन्नति
में समन्वय बैठा कर चलें।
गुण विकास एवं एकादशी साधना
24 गुणों की वृद्धि के लिए एक विशेष परन्तु
सरल प्रयोग दिया जा रहा है। एक वर्ष में सामान्यतः 24 एकादशी आती हैं। इन
एकादशियों का हिन्दू धर्म में अपना एक विशेष महत्व है व धर्मप्रेमी व्यक्ति एकादशी
पर उपवास रख कर साधना करता है। इनमें से प्रत्येक एकादशी को एक विशेष सद्गुण उतरता
है उस एकादशी से लेकर अगले 14 दिन हम यह भावना करें कि हमारे भीतर उस गुण का विकास
हो रहा है अथवा सहस्त्रार के माध्यम से
वह गुण ब्रह्मांडीय चेतना के साथ हमारे
भीतर अवतरित हो रहा है तो इस प्रकार वर्ष में हर गुण के लिए 15 दिन की साधना की जा सकती है नीचे जो
सद्गुण जिस एकादशी को विशेष रूप से अवतरित होता है उसका विवरण दिया गया है। इस
विषय की अधिक जानकारी के लिए श्री
इन्द्रजीत शर्मा, Zonal Coordinator गायत्री शक्तिपीठ, वाराणसी से सम्पर्क करें। (Email :- mukhyanand@gmail.com)
ईसाई धर्म की मान्यताओं के अनुसार सहस्त्रारचक्र के चारों ओर चैबीस देवशक्तियों का फैलाव प्रतीक
रूप में बना रहता है। इन्हीं की आराधना का विधान उनके धर्म में वर्णित है। हिन्दू धर्म में मुंडन संस्कार की परंपरा इसलिए
संपन्न की जाती है कि उन शक्तियों को विकसित करके व्यक्ति अपने जीवन-लक्ष्य को प्राप्त कर सके।
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