एक
बार यह गुरुकुल से चार युवक विद्या पूरी करने के उपरान्त अपने घर वापिस जा रहे थे।
मार्ग में एक जंगल था, जिसको
होकर वो गुजर रहे थे। उन चारों में तीन मेद्यावी छात थे व लौकिक विद्याओं में
पांरगत थे। चैथा आध्यात्मिक रुचि का था व प्रज्ञा चलु सम्पन्न था। जंगल में एक
स्थान पर उन्होंने देखा अस्थि पंजर, रक्त
मांस बिखरा पड़ा था। तीन मेधावी छात्रों के मस्तिष्क में विचार आया क्यों न हम
अपनी योग्यता का परीक्षण कर लें व जो जानवर मरा पड़ा है इसको संजीवनी विद्या से
जीवित करके देंखे। तीनों इस कार्य में जुट गए। चैथा विकर बैठ ध्यान करने लगा। तभी
वह चिल्लाया अरे यह क्या करने जा रहे हो। सम्भवतः किसी ने शेर को मारा हो, यदि ऐसा हुआ तो शेर जीवित हो जाएगा। तीनो अपनी
प्रतिभा के मद में चूर थे उन्होंने कुछ नहीं सुना व अपने कार्य में जुटे रहे। चैथा
व्यक्ति ने देखा कि वो तीनों उसकी बात नहीं सुन रहे है तो वह आस पास सुरक्षित जगह
देखने लगा। तभी उसे एक ऊँचा वृक्षा दिखायी दिया वह उस पर चढ़कर छुप गया। उसने देखा
कि तीनों के परिश्रम से जो जानवर जीवित हुआ वह शेर ही था। शेर जिन्दा हाोते ही
तीनों को खा गया। यह घटना हम सभी पर लागू होती है हम भौतिकवाद की विद्या में बहुत
श्रम कर रहे हैं तथा संसाधनो के अम्बार लगा रहे है। परन्तु इससे जो प्रदूषण व
भोगवाद रूपी दानव पल बढ़ रहा है एक दिन कहीं वो बड़ा होकर हम सबको न खा जाए। इसके
लिए दिव्यद्रष्टा, दार्शनिक, आध्यात्मवादी व प्रज्ञावान लोग शोर मचा रहे है।
परन्तु अपनी शक्ति के मद में चूर देशों को कुछ भी सुनायी नहीं दे रहा है। हम सोचते
हैं कि हमने बहुत प्रगति की परन्तु क्या आने वाली पीढ़ी हमें मूर्ख नहीं कहेगी कि
हम जानते हुए भी वो सब करे जा रहें है जो भारी विनाश को आमन्त्रित कर सकता है।
बहुत शिक्षाप्रद कहानी है जो वर्तमान की वास्तविकता को समेटे हुवे है।
ReplyDeleteNice
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