Monday, March 31, 2014

Apno se apni baat

     जीवन का मूल प्रयोजन साधना के द्वारा आत्मदान की राह पर आगे बढ़ना, आत्मदानी ब्रह्मकमलों को प्रोत्साहन देना एवं उनको एक छत्र के नीचे संगठित करना है। )षि परम्परा की रक्षा व )षि सविंधान को लागू करने के लिए जो अपने जीवन की आहुति देना चाहते हैं ऐसे लोग विश्वामित्र के रूप में उभर कर एक नयी सृष्टि की रचना में अपना योगदान दें। अभी तक अनेक मिशनों, संगठनों ने इस दिशा में अपनी ओर से श्रेष्ठ प्रयास किए परन्तु समाज में कुछ परिवर्तन नहीं ला पाए। इसका कारण है कि आध्यात्मिक पूर्णता को प्राप्त व्यक्तित्व नहीं उभर पाए। जब तक ऐसा नहीं हो पाएगा अभियानों में तेजी नहीं आएगी, उतार-चढ़ाव चलते रहेंगे। अतः जो भी राष्ट्र निर्माण के लिए इच्छुक हैं वो अपनी आध्यात्मिक उन्नति के प्रति अवश्य सजग रहें।
     जिस संस्था में रजोगुणी व्यक्तित्व बढ़ जाते हैं वह धीरे-धीरे करके झगड़ों व कलह का अड्डा बनने लगती है। अतः ब्रह्मतेज व क्षात्रतेज दोनों का अभ्युदय व समन्वय ही इस राष्ट्र का कायाकल्प कर सकता है। शिवाजी का क्षात्रतेज व समर्थ गुरु का ब्रह्मतेज मिला तो विशाल मुगल साम्राज्य भी उसका सामना न कर सका। सिक्ख गुरुओं के ब्रह्मतेज व क्षात्रतेज ने हिन्दू जाति की रक्षा का ऐतिहासिक कार्य किया।
     आज भारत में आध्यात्मिक पूर्णता अर्थात )षि स्तर पर पहुँचे व्यक्तित्व नगण्य हैं। यह हम सबके लिए बहुत ही दुखद है। इसीलिए हम जागरूक आत्माओं को पूरा ध्यान इस दिशा में केन्द्रित करना आवश्यक है। जिनकों साधना में अच्छे परिणाम मिल रहे हैं वो इसके लिए पूरी शक्ति झोंक दें। जिनकी मनोभूमि साधना की अभी नहीं बन पायी है वो तन-मन-धन से दूसरे साधकों की सहायता करें। धीरे-धीरे उनका भी साधना का क्रम बनने लगेगा। हम सभी को सम्मिलित प्रयासों से आने वाले कुछ वर्षों में 24,000 विश्वामित्र स्तर के तपस्वी समाज में उभर सकें, यही एकमात्र हमारा मुख्य अभियान है।

No comments:

Post a Comment