नालंदा
विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य आर्यभट की गणना गणित एवं ज्योतिर्विज्ञान के
मूर्द्धन्य विद्वानों में होती है। अनेक वर्षों के अनुसंधान के पश्चात आर्यभट ने ‘अस्माकतन्न’ एवं ‘आर्यसिद्धांत’ नामक दो गं्रथों
की रचना की, जिनमें समाहित
ज्ञान आज भी विशेषज्ञों को हतप्रभ कर देता है। प्लेस-वेल्यू सिस्टम, जिसने आधुनिक
गणित की नींव रखी, उसकी प्रथम
जानकारी आर्यभट की ही रचनाओं से मिलती है। फ्रेंच गणितज्ञ जाॅर्जेस इफराह के
अनुसार जिस ‘पाई’ का विश्लेषण करने
में पाश्चात्य विद्वानों को हजारों वर्ष लगे, उसका समुचित मूल्यांकन आर्यभट ने ‘असमाकतन्न’ के गणितपद में
अति सरलता से कर दिया है। इस ग्रंथ के शेष अध्याय भी त्रिकोणमिति और क्षेत्रमिति
के गूढ़ समीकरणों से भरे पड़ें हैं। बहुत से विद्वानों का ऐसा भी मानना है कि
अल-ख्वाजिमी द्वारा रचित बीजगणित, आर्यभट के ग्रंथों के अरबी अनुवाद पर ही आधारित है। इसी
प्रकार ‘आर्यसिद्धांत’ में आर्यभट
द्वारा विवेचित सूर्य व चंद्रग्रहणों की गणना, सूर्य व पृथ्वी की गति, दक्षांश, भूमध्यरेखा व सौरमंडल का विश्लेषण इतना सटीक था कि दक्षिण
एशिया के सभी प्रचलित पंचांगों की उत्पत्ति उनके प्रतिपादित सूत्रों के आधार पर ही
है। आचार्य आर्यभट उस लंबी भारतीय परंपरा के जगमगाते हीरे हैं, जिसने संपूर्ण
विश्व को ज्ञान और विज्ञान के अजस्त्र्ा अनुदान दिए।
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