हे )षि सत्ताओं! मेरे कठोर
प्रारब्धों को काटने में आपने जो मेरी सहायता की वह सद्ज्ञान दे कर मुझपर जो उपकार
किया, उस )ण को चुकाने हेतु मैने इस पुस्तक को लिख कर अपनी ओर से
समाज में धर्म संस्ड्डति के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया। पुस्तक प्रकाशित करने
के उपरान्त समाज में जो भी प्रतिक्रिया होगी, जो भी
मान-अपमान मिलेगा व मैं आपको अ£पत करता हूँ। आप इस पवित्र
ग्रन्थ को जिन बच्चों तक पहुँचना चाहते हैं, इसके माध्यम से
जिसको जो सीख देना चाहते हैं, वैसी प्रेरणा वैसी व्यवस्था
करते रहना।
अगली भूमिका में हमें आप आत्मज्ञान
प्रदान करें जिससे हम आत्मदान कर मानव जीवन को सार्थक कर सकें। ऐसी 24000 आत्मदानी
विश्वामित्र रूपी ब्रह्मकमलों के माध्यम से धरती पर स्वर्गीय व सकारात्मक वातावरण
विन£मत हो तथा धरती माँ पीड़ा पतन के इस विषम दौर से शीघ्र मुक्त
हो जाए हम यही प्रार्थना करते हैं।
जीवन में कभी-कभी ऐसे प्रसंग घटित
होते हैं जो जीवन का पूर्ण रूपान्तरण कर देते हैं। ऐसा एक सुयोग एमिली जैन के जीवन
में आया, जो पहले अपने बचपन में कूड़ा-करकट बीनती थी और बाद में विश्व
विख्यात फिल्म अभिनेत्री बन गयी। उसकी जीवन कथा ॅवदकमत न्चूंतके के लेखक जेम्स
एलविन का कहना है कि एमिली जब छोटी थी, एक बच्चों के दल के
साथ कूड़ा-करकट से कुछ बीन रही थी। मनोरंजन के लिए बच्चे मिलकर नाचने लगे। तभी
वहाँ से फिल्म निर्माता अनविन रोजर्ट का गुजरना हुआ। रोजर्ट ने बच्चों के बीच
नाचती एमिली को देखा तो देखते रह गए। उन्होंने उसको बुलाकर कहा कि प्यारी बच्ची
तुममें कला व सौन्दर्य का अद्वितीय मिश्रण है। तुम बहुत कुछ कर सकती हो। तत्पश्चात्
एमिली का जीवन एक नये आयाम की ओर बढ़ने लगा।
इस पुस्तक का लेखन मेरे जीवन में
एक अद्भुत संयोग लेकर आया एवं साधना में उन्नति के द्वार खुले। यह पुस्तक पाठकों
के जीवन में एक ऐसा सुन्दर सुयोग लेकर आएगी कि वो बाधाओं को दूर करके ऊँचे सोपानों
पर बढ़ते चले जाएँगे ऐसा हमारा विश्वास है।
मुझे पुस्तक लिखने पर बहुत
आत्म-संतोष हुआ कि मैने अपनी जीवन यात्रा के एक उच्च उद्देश्य को पुरा कर लिया।
जिन चरणों में मैने अपने आपको सम£पत किया है उनके उत्तरदायित्व को
निभाने का एक प्रयास किया है। आज मैं साधक संजीवनी रूपी )षियों की यह विरासत आप
सभी तक पहुँचा रहा हूँ। इस पुस्तक के माध्यम से उनका पावन स्नेह, दिव्य संरक्षण, मार्गदर्शन आप सभी को मिलता रहेगा।
निर्गुण सगुण सत्य अविनाशी।
सद्गुरु सत्ता अन्तः मनवासीû
धरि धीरज चित्त ध्यान लगाऊँ।
सद्गुरु ड्डपा अमरपद पाऊँû
मनोबल
राजा सुकीर्ति के पास एक
लौहश्रुन्घ नामक हाथी था। राजा ने कई यु(ों में उस पर चढ़ाई करके विजय पायी थी।
बचपन से ही उसे इस प्रकार से तैयार किया गया था कि यु( में शत्रु सैनिकों को देखकर
वो उन पर इस तरह टूट पड़ता कि देखते ही देखते शत्रु के पाँव उखड़ जाते। पर जब वो
हाथी बुढ़ा हो गया। तो वह सिर्फ हाथीशाला की शोभा बन कर रह गया। अब उस पर कोई
ध्यान नहीं देता था। भोजन में भी कमी कर दी गयी। एक बार वो प्यासा हो गया तो एक
तालाब में पानी पिने गया पर वहा कीचड़ में उसका पैर फस गया और धीरे-धीरे गर्दन तक
कीचड़ में फस गया।
अब सबको लगा कि ये हाथी तो मर
जाएगा। इसे हम बचा ही नहीं पायेंगे। राजा को जब पता चला तो वे बहुत दुःखी हो गए।
पूरी कोशिश की गयी पर सफलता ही नहीं मिल रही थी।
आखिर में एक चतुर सैनिक की सलाह से
यु( का माहौल बनाया गया। वाद्ययंत्र मंगवाए गए। नगाड़े बजवाये गए और ऐसा माहौल
बनाया गया कि शत्रु सैनिक लौहश्रुन्घ की ओर बढ़ रहे हैं और फिर तो लौहश्रुन्घ में
एक जोश आ गया। गले तक कीचड़ में धस जाने के बावजूद वह जोर से चिंघाड़ लगाकर
सैनिकों की ओर दौड़ने लगा। बड़ी मुश्किल से उसे संभाला गया। ये है एक मनोबल बढ़
जाने से मिलने वाली ताकत का कमाल। जिसका मनोबल जाग जाता है वो असहाय और अशक्त होने
के बावजूद भी असंभव काम कर जाता है।
यह पुस्तक हम सभी साधकों का आत्मबल, मनोबल बढ़ाने में संजीवनी का काम करेगी ऐसा हमारा विश्वास है।
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