Monday, March 3, 2014

ध्यान में मन क्यों नहीं लगता?

            इस विषय को उचित प्रकार से समझने के लिए हमंें कुछ परिभाषाओं को जानना आवश्यक है।
1. बर्हिमन (सामान्य)
2. अवचेलन मन
3. अतिचेतन
                        जिसे सामान्यतः मन कहा जाता है वह दैनिक क्रियाकलापों में बड़ी भूमिका निभाता है परन्तु इसकी जडें भीतर गहराई में अवचेतन मन से जुड़ी होती हैं। अवचेतन मन से ही बर्हिमन को पोषण प्राप्त होता है। जिस प्रकार का पोषण बर्हिमन को मिलता है उसी प्रकार की गतिविधियाँ मानव जीवन में चलती है। यदि स्वार्थ भरा पोषण मिल रहा है तो व्यक्ति स्वार्थी होगा, यदि आध्यात्मिक पोषण मिल रहा है तो व्यक्ति धर्म कर्म में रुचि लेगा। यह अवचेतन मन इसी कारण शक्तिशाली माना जाता है। ऋषि पतजंलि इसी को चित्त की संज्ञा देते है। दूसरे अर्थों में हम यह कह सकते हैं कि व्यक्ति में सत, रज, तम तीन प्रकार के संस्कार होते है। एक अन्य उच्चस्तरीय मन की सम्भावना मानव जीवन में विद्यमान है जिसको अतिचेतन अथवा सुपर चेतन के नाम से जाना जाता है। यह सर्वाधिक शक्तिशाली होता है। जिस व्यक्ति के भीतर इसका स्फुरण होता है सर्व प्रथम यह उसके अवचेतन मन की धुलाई सफाई करता है। कूड़ा करकट से फसी नाली को खोलना साफा करना सरल कार्य नहीं होता। गन्दे कपड़ों को द्देद-पीट कर रगड़-रगड़ कर साफ करने में काफी मेहनत करनी पड़ती हैं कपड़ा यदि कमजोर हो तो फटने का भी डर रहता है यही सिद्धान्त व्यक्ति पर भी लागू होता है। व्यक्ति देवसत्ताओं के पास जाकर कहता है कृपा करो! कठिनाई ये है कि निर्मल मन के बिना वह कृपा कैसे टिकेगी फूटे बर्तन में खीर डालने की मूर्खता कौन करेगा। यदि व्यक्ति अपने मन को निर्मल करने के लिए तत्पर हो तभी देव कृपा की आशा की जा सकती है मन को निर्मल करने के लिए निष्काय कर्म योग को सर्वोपरि मान गया है इसीलिए भगवत् गीता को निष्काय कर्म योग का सर्वोच्च ग्रन्थ कहा जाता है इसीलिए अवतारी सत्ताएँ अपने अनुचरों को पहले वर्षों निष्काय कर्म योग प्रर्वत करती है तत्पश्चात् ही व्यक्ति ध्यान की ऊँचाईया पाने में समर्थ होता है। एक बार स्वामी जी विवेकनन्द ध्यान के ऊपर प्रवचन दे रहे थे एक युवक उनके पास आया व स्वामी जी को अपने ध्यान कक्ष में ले जाने का आग्रह करने लगा स्वामी जी उसके ध्यान कक्ष में गए व उससे पूछा कि इस कक्ष में वो प्रतिदिन कितनी देर ध्यान करता है? उसने बताया कि 20 मिनट सुबह व 20 मिनट शाम इससे अधिक उसका मन नही लगता। स्वामी जी ने उससे कहा कि उसके घर के चारों तरफ जो झुग्गी-झोपडि़याँ है वहाँ जाकर सेवा कार्य करे तभी उसका ध्यान में अधिक मन लग पाएँगा।

                        आमतौर पर यह देखा जाता है कि व्यक्ति 10-15 मिनट सुबह 10-15 मिनट शाम पूजा-पाठ-जप आदि कर पाता है यदि लम्बे ध्यान की प्रक्रिया में सम्मिलित होना हो आध्यात्म में अच्छी उन्नति का उद्देश्य हो तो सुपर चेतन की आवश्यकता होती है सुपर चेतन की स्थिति में व्यक्ति प्रज्ञावाच बनता है अपने गुण-दोषों को भली-भाँति देख सकता है। सफाई का क्रम तेजी से चला सकता है इससे आध्यात्मिक उन्नति में तेजी आती है लाहिड़ी महाश्य इस प्रक्रिया को क्रिया-योग का नाम देते है परन्तु कभी-कभी यह प्रक्रिया कष्ट साध्य भी हो जाती है जैसे शरीर के अन्दर टयूमर हो जाए तो वचमतंजपवद करके उसको निकालना कष्टप्रद होता है। इसी प्रकार जन-जन्मान्तरों के पापों पूव्यों कर्मों का सफाया सरलता से नहीं हो जाता। श्री अरविन्द आश्रम की एक घटना है बहुत से देशी-विदेशी लोग वहाँ बैठ कर लम्बा ध्यान किया करते थे। आश्रम में पवित्र नाम का एक वाहन चालक था जो श्री मां से बार-बार निवेदन किया करता कि वह भी अपना आध्यत्मिक उन्नति व ध्यान साधना करना चाहता है श्री मां उसकी बात को टाल देती थी एक समय ऐसा आया ज बवह बहुत आग्रह करने लगा श्री मां ने उसकी चेतावनी दी कि यह प्रक्रिया उसके लिए खतरनाक भी साबित हो सकती है। उसके प्रारब्धों के अनुकूल नहीं है जब पवित्र हर प्रकार परिणाम झेलने के लिए तैयार हो गया तो श्री मां ने उससे आग्रह किया कि वो ध्यान बैठे। श्री मां की चेतना को अपने भीतर गहराई तक ले जाने का प्रयास करे। श्री मां की चेतना जब उसके भीतर पहुँची तो सन्चित कर्म बड़ी तेजी से कटने लगे तरह-तरह के उल्टे-सीधे लक्षण उसके शरीर पर उभरने लगे। इसमें एक लक्षण कैंसर का भी था परन्तु दूसरी ओर वह जिस बात की आशा करता था ध्यान के उस दिव्य आनन्द में डूब गया। आज का जो समय है उसमें ऋषियों के द्वारा विश्व-कुण्डलिनी जागरण का जो महाप्रयोग हो रहा है उसके अन्तरगत ये सभी प्रक्रियाएँ काफी सरल कर दी गई है पापी से पापी व्यक्ति भी इस प्रक्रिया से गुजर कर तीन वर्ष के अन्दर अपने को परोशोधित कर सकता है लेकिन यह तीन वर्ष क्योंकि उसके पुराने अनेक जन्मां के पाप धोएंगे अतः काफी कष्टप्रद भी सिद्ध हो सकते है। सामान्य व्यक्तियों के लिए यही ठीक है कि जितना सम्भव हो निष्काम कर्म योग एवं सात्विक वातावरण के द्वारा ध्यान के लिए उपजाऊ मनोभूमिक का निर्माण करे जिससे समय आने पर उनमें उच्च स्तरीय प्रयोगों की सम्भावना साकार हो सके।   

विस्तार से इस विषय में जानने के लिए लेखक की पुस्तक साधन समर पढ़े

No comments:

Post a Comment