सबसे पहले अण्डा सेवन बन्द करें। इससे सबसे ज्यादा यूरिक एसिड बनता है। आपका तो पहले से बढा है न !
दही बिलकुल बन्द। यह भारी ( अभिष्यन्दि) होता है। पाचन तंत्र तो पहले से गङबङ है जो लिमिट से ज्यादा यूरिक एसिड बना रहा। यानि पहले ही लङखङा कर चल रहा। भारी चीज कैसे सम्भालेगा ? यानि यूरिक एसिड जयादा बनेगा, दर्द बढ जायेगा।
यूरिक एसिड का ज्यादा बनना यानि मेटाबोलिज्म ( चयापचय) बिगङा है। बिगङा इस तरह कि जो चीजें पाचन के दौरान हवा ज्यादा छोङते उनका सामान्य पाचन नहीं हो रहा और उनसे ही यूरिक एसिड बनता है। अतः वे न खायें - मटर, पालक, दोनों गोभी। सामिष ( non-vegs) भी बन्द। आहार में तो यह सब परहेज है।
विहार :- वात रोग है यह, यूरिक एसिड का बढना, इससे बङे जोङों में दर्द होना। यानि शरीर से पुराना वात निकलना, नया आना, यह सही से नहीं हो रहा। वात का निर्माण, नियंत्रण बङी आंत करता है, जहां मल/पुरिष ( stool/latrine) बनता है। कब्ज जरूर रहता है ऐसे मरीजों को। शरीर की वात-पित्त-कफ प्रकृति के अनुसार कब्जनाशक का चुनाव करें। वैसे गर्म पानी से त्रिफला लेना तीनों प्रकृति में सही है।
इसी तरह पवनमुक्तासन सिरीज वन - 17 योगों का समूह, सभी वात रोगियों को सुबह करना चाहिए। इन्टरनेट से डाउनलोड कर लें, देखें, सीखें, करें।
सुबह की बात चली तो याद आया, आपका सुबह कितने बजे होता है ? दिन का पहला पहर , 2 से 5 बजे सुबह, वात काल है। यदि इस दरम्यान मल त्याग हेतु जाते हैं तो शरीर का वात यानि हवा दवाब बनाकर मलाशय को बढिया से खाली करने में मदद करेगा। इसके बाद के तीन घण्टे , आठ बजे तक के, कफ काल हैं, मल जमेगा, कफ की तरह। फिर ग्यारह बजे तक के तीन घण्टे तो पित्त काल हैं, गर्मी बढती है शरीर में, मल सूखने लगता है। सूख कर कङा हुआ मल निकल ने में दिक्कत करेगा। अतः 5 बजे या पहले मलत्याग करें। इससे गन्दा वात निकला, बङी आंत शुद्ध वात बनायेगी जो शरीर में गतिशील तत्वों यथा रक्त, पित्त को काम में मदद करेगा, यूरिक एसिड कम बनेगा। चाॅइस आपकी है, वात से लाभ लें या हानि।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (18-09-2020) को "सबसे बड़े नेता हैं नरेंद्र मोदी" (चर्चा अंक-3828) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर ज्ञानवर्धक लेख।
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