Saturday, September 19, 2020

अम्लपित्त (हाइपर एसिडिटी) कारण और निवारण

             लक्षण अम्लपित्त का  अर्थ है-  पित्त में खट्टेपन को उपस्थिति।

            हमारे शरीर में वात-पित्त और कफ जब साम्य अवस्था में होते हैं, तब ये धातु कहलाते हैं अर्थात शरीर को धारण करने योग्य होते हैं. परंतु जब इनका संतुलन बिगड़ जाता है। जब वे कुपित हो जाते हैं। तब वात-पित्त-कफ दोष कहलाते हैं।

            जब पित्त-विकार पैदा होता है या पित्त कुपित हो जाता है। तब वह अम्ल रस हो जाता है; तव इसे अम्लपित्त कहते हैं। अम्ल विदग्धं च तत्पित्तं अम्लपित्त। इस रोग में बेचैनी, घबराहट, गले में जलन, खट्टी डकार आना, हाथ-पैरों के तलवों में जलन होना, कब्ज होना, अपच, गैस, सिरदरद तथा दस्त के सामान्य रूप से लक्षण देखने को मिलते हैं। जब यह रोग बढ़ जाता है, तब पेप्टिक अल्सर या ड्यूडेनम अल्सर भी हो सकता है। रोग बढ़ने पर भोजन करने तुरंत बाद उलटी हो जाती है।

अम्लपित्त से 40 प्रकार के विकार पैदा होते हैं।

(1) शरीर के सभी अंगों में जलन।

(2) शरीर के किसी एक स्थान पर जलन।

(3) पूरे शरीर में तेज गरमी का एहसास।

(4) नेतर आदि नदियों में जलन, हृदय की महक अनियमित होना। 

(5) गैस उतना।

(6) आंतरिक जलन, हृदय शूल, खट्टी डकार। 

(7) हाथ-पैरों में विविध प्रकार की जलन।

(8) आंखों में जलन।

(9) किसी विशेष अवयव में जलन।

(10) शारीरिक तापमान में वृद्धि होना। 

(11) पसीना अधिक आना।

(12) किसी अंग विशेष में अधिक पसीना। 

(13) किसी विशेष प्रकार की गंध का आना। 

(14) किसी अंग में टूटने के समान दरद होना।

(15) रक्त पतला, काला, दुर्गंधमय होना। 

(16) मांस का काला दुर्गधमय होना।

(17) बाहरी त्वचा में जलन।

(18) मांस में जलन।

(19) बाहरी त्वचा का फटना।

(20) त्वचा के विभिन्न विकार। 

(21) खून के चकते उठना।

(22) रक्तपित्त व्याधि (नकसीर, शीतपित्त, खूनी बवासीर, रक्तप्रदर इत्यादि)।

(23) शरीर पर गोल लाल मंडल बनना। 

(24) शरीर का हरा-पीला रंग हो जाना। 

(25) शरीर का हलदी के समान रंग हो जाना।

(26) मुँह पर काले दाग होना। 

(27) कांख बिलाई होना (बगल में मांस फटना)

(28) पोलिया होना।

(29) मुँह का स्वाद कड़वा रहना। 

(30) मुख से दुर्गंध आती।

(31) प्यास का बढ़ना (तृषा)। 

(32) भोजन अधिक कर लेने पर भी अतृप्त रना।

(33) मुख में छाले पड़ना।

(34) गले में छाले होना।

(35) आँखों का पकना।

(36) मुदा का पानी।

(37) मुड़ का पकना। 

(38) रक्त को साफ होना।

(39) चक्कर आना, अधिकार का आभास। 

(40) , मूत्र-मल हरा-नीला ही जाना। 

            उपरोक्त लक्षणों से पित्त विकार जाना जाता है। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार आमाशय में प्रोटीन के पाचन के लिए हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का स्राव होता है। जब वो अधिक सांप (तीत्) हो जाता है. तब अम्लपित्त (हाइपर एसिडिटी) के लक्षण दिखाई देते हैं।

            महर्षि कश्यप के अनुसार-मल का खंडित होकर थोड़ा-थोड़ा प्रवृत होना, उदर में भारीपन, मुख मैं खट्टा पानी आना सिर में पीड़ा, पेट फूलना, आंतों में आवाज होना, कंठ एवं छाती में जलन होना. रोंगटे खड़े होना अम्लपिन के सामान्य लक्षण हैं।

अम्लपित्त के कारण - आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने भी स्वीकार

            किया है कि ईर्ष्या, द्वेष, चिंता, भय, तनाव, क्रोध, मानसिक श्रम तथा गरिष्ठ, बासी, खट्टे, नमकीन पदार्थों का सेवन, भोजन में गरम मसालों का अधिक प्रयोग, तले भुने खाद्यों का सेवन करने से इस रोग की उत्पत्ति होती है।

            इस रोग के कारण अँगरेजी में 'हरी, वरी और करी' शब्दावली के रूप में प्रचलित हैं।

(1) हरी अर्थात - जल्दबाजी। भोजन करते समय ठीक से न चबाना तथा मन में सदैव उतावलापन (जल्दबाजी) होने से यह रोग पैदा होता है।

(2) वरी अर्थात-चिंता करना। चिंता निरंतर करने से हमारे शरीर के अनैच्छिक संस्थान पर बुरा प्रभाव पड़ता है। जिससे शारीरिक कार्यप्रणाली अस्त-व्यस्त हो जाती है। अशांत मन से तनाव होता है, जो क्रोध एवं उत्तेजना बढ़ाता है।

(3) करी अर्थात-अधिक मिर्च-मसालों का प्रयोग। पेट में अम्लता को ये मसाले बढ़ाते हैं । इसी कारण अम्लपित्त रोग पैदा हो जाता है। गरम मसालों से लिवर की कार्यविधि पर बुरा असर पड़ता है।

            एक बार भोजन करने के तीन घंटे से पूर्व भोजन न करें तथा छह घंटे से अधिक देरी न हो। अन्य कारण भी हैं जैसे

(1) भोजन के समय पानी पीने से।

(2) भोजन करते समय बातचीत करने से।

(3) भोजन के समय मन को शांत न रखने से।

(4) भोजन के तुरंत बाद पानी पीने से।

(5) अनेक प्रकार के, अनेक स्वाद के व्यंजन एक साथ खाने से।

(6) भोजन के साथ नीबू का सेवन करने से।

(7) भोजन खड़े-खड़े करने से।

(8) भोजन कम समय में जल्दी-जल्दी करने से।

(9) भोजन के समय अखबार या पुस्तक पढ़ने या टीवी देखते हुए भोजन करने से।

(10) खट्टे और दाहकारक (जलन करने वाले) पदार्थों का सेवन।

(11) फास्ट फूड, जंक फूड, पूरी-परांठे, कचौड़ी, समोसा, नमकीन आदि का अधिक सेवन करने से अम्लता बढ़ती है।

उपचार

आहार (पथ्य)

(1) आंवले का सेवन भोजन के साथ या औषध के रूप से करना अम्लपित्त रोगी के लिए अधिक हितकर है।

(2) छिलका रहित जौ, अड़सा और आंवला का क्वाथ बना उसमें दालचीनी, तेजपत्ता, इलायची और शहद मिलाकर पिलाने से अम्लपित्त जनित वमन तत्काल नष्ट होती है।

(3) मिर्च-मसालों का कम-से-कम प्रयोग करें। सब्जियों में कच्चे पपीता की सब्जी, लौकी, तुरई, गिलकी, टिंडा, बथुआ इत्यादि की सब्जी उत्तम पथ्य है।

(4) अंकुरित अनाज, ताजे मीठे फल, गाजर का रस, सलाद तथा दूध, गोघृत का सेवन करें।

(5) छिलका सहित मूंग की दाल, पुराना शालि (तैलीय) चावल, चोकरयुक्त आटे की रोटी का सेवन करना चाहिए।

(6) भोजन ताजा हो, लेकिन अधिक गरम तथा अधिक ठंढा भी न हो।

(7) सफेद नमक की जगह सेंधा नमक कार में लाना हितकारक होता है।

(8) गन्ने का रस, नारियल पानी, अंजीर, मुनक्का, और, खजूर, चीकू, पपीता, केला, आम, सीताफल आदि फल।

(9) करेला, ककोड़ा, आँवला, जी, हरी मटर मूंग, मसूर आदि भी पथ्य हैं।

(10) उबालकर ठंडा किया पानी पीना चाहिए।

(11) काली हरड़ (छोटी हरड़) को घृत में भूनकर रख लें। भोजन के बाद मुख में रखकर चूसते से।

(12) नाश्ते में मीठे फल है केला-दूध खाए।

विहार

(1) सुबह-शाम एक-एक घंटा चलना चाहिए।

(2) मन को शांत रखने के लिए ध्यान तथा उपासना साधना, ईश्वर प्रार्थना का भी नियमित अम बनाएँ।

(3) क्रोध को अलविदा कहें।

(4) भोजन शांत मन से प्रश्न चित्त होकर ग्रहण करें।

(5) भोजन के घंटे पहले तथा 1 घंटे बाद ही पानी पिएँ। भोजन के साथ पानी पीने से पाचन शक्ति (जठराग्नि) मंद हो जाती है।

(6) 7-8 घंटे की गहरी नींद लें।

(7) चिंता एवं तनाव से बचें।

(8) नकारात्मक सोच से बचें

(9) आशा, उत्साह, प्रसन्नता को जीवन में स्थान दें।

(10) अम्लीय खाद्य पदार्थों से बचें।

(11) शवासन, शिथिलीकरण के आसन तथा शीतली, शीतकारी प्राणायाम भी लाभप्रद होता है।

(12) दिन में सोना, धूप घूमना हानिकारक है।

(13) उलटी के वेग को रोकना नहीं चाहिए।

परहेज

(1) बासी खाद्य पदार्थ, गरिष्ठ, तले एवं मैदा से बने खाद्य।

(2) अचार

(3) कोल्ड ड्रिंक्स

(4) चाय, कॉफी

(5) सफेद नमक

(6) फास्ट फूड

(7) विस्कुट, मैदा, बेसन

(8) नमकीन, पराठा, तले पदार्थ

(9) इमली, आम की खटाई

(10) खट्टे टमाटर

(11) सूखी भुनी मूंगफली अधिक मात्रा में ।

(12) उड़द, अरबी, आलू, मद्य

(13) अधिक मात्रा में कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन। मल-मूत्रादि के वेगों को रोकना।

(14) भोजन के साथ नीबू का प्रयोग न करें।

(15) नया अन्न, तिल एवं खट्टे दही का प्रयोग न करें।

चिकित्सा

      इस रोग में जल्दी चिकित्सा प्रारंभ करनी चाहिए, अधिक समय व्यतीत हो जाने पर रोग कष्टसाध्य अथवा असाध्य-सा हो जाता है।

      एलोपैथिक चिकित्सा में अम्लरोधी (एंटासिड) देते हैं, परंतु प्रतिक्रियास्वरूप रोग में तुरंत लाभ तो होता है, स्थायी लाभ नहीं होता है।

      आहार-विहार, पथ्य-परहेज का पूरा ध्यान रखकर आसानी से धैर्यपूर्वक मन को शांत रखकर घरेलू चिकित्सा से इस रोग पर पूर्णतः काबू पाया जा सकता है।

(अ) ऊर्ध्वगामी अम्लपित्त होने पर वमन अर्थात कुंजल क्रिया प्रतिदिन प्रातःकाल 15 दिनों तक करना चाहिए। तत्पश्चात 3 दिनों में एक बार, फिर 7 दिनों बाद, अंत में 15 दिनों में एक बार कुंजल क्रिया से रोग नियंत्रण में आ जाता है। योग-चिकित्सा की देख-रेख व मार्गदर्शन में ही कुंजल क्रिया करें।

(ब) अधोगामी अम्लपित्त होने पर मृदु विरेचन (कब्ज निवारण के लिए किए गए साम्य प्रयोग)-

(1) अमलतास फल की मज्जा 5 ग्राम एक गिलास पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर दें।

(2) कैस्टर ऑयल (अरंडी का मेडिकेटेड तेल) 10 से 20 ग्राम लेकर गरम पानी या दूध में मिलाकर शाम को सोते समय दें।

(3) रात को हरड़ (हरीतकी) चूर्ण 3 ग्राम गरम पानी से दें।

(4) बेल का शरबत बनाकर दिन में 2 बार दें।

(5) बिल्व चूर्ण 3 ग्राम, ताजे दही में बूरा या मिश्री के साथ दें।

अम्लपित्त की घरेलू निरापद चिकित्सा

(1) मुलेठी चूर्ण, आँवला (आमलकी) चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर 3 ग्राम चूर्ण शहद के साथ प्रात:-सायं खाली पेट चटाएँ।

(2) 3-3 घंटे के अंतर से ठंडा किया मीठा दूध धरे-धरे पिलाएँ।

(3) 2 ग्राम गिलोय चूर्ण को शहद के साथ चटाएँ।

(4) भोजन के बाद हरड़ का चूर्ण शहद या मुनक्का के साथ सेवन करें।

(5) नारियल की गिरी को जलाकर भस्म बनाकर रखें तथा 3-3 आम दिन में 2 बार पानी के साथ दो से लाभ हा है।

(6) प्रात: नाश्ते दूध के साथ 1-2 पके केला मिलाकर खाने से लाभ होता है।

(7) प्रातः सायं नित्य 50 ग्राम मुनक्का (10 घंटे पानी में भिगोए हुए) सेवन करें तथा मुनक्का जिस पानी में भिगोएँ, उस पानी को भी पिलाएँ। मुनक्का का बीज न खाएँ।

      मुनक्का 50 ग्राम और सौंफ 5 ग्राम (दोनों को औकात कर) 200 ग्राम पानी में रात्रि को भिगो दें। सुबह मसल-छानकर 10 ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से अम्लपित्त में लाभ होता है।

(8) प्रात: मीठे फल जैसे-खजूर, छुआरे, मुनक्का, अंजीर, चीकू, केला (खूब पका हुआ चित्तीदार हो।), मीठे आम, अनार, सीताफल, तरबूज खरबूजा आदि मीठे फल।

(9) मीठे संतरे का रस, जीरा 2 ग्राम भुना हुआ तथा सेंधा नमक मिलाकर पीने से लाभ होता है।

(10) नारियल का पानी लाभप्रद होता है।

(11) भोजन के बाद छोटी बाल हरड़ को मुख में रखकर चूसना चाहिए।

(12) सौंफ को थोड़ा भून (सेंक) लें तथा बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर चूर्ण बनाकर भोजन के बाद 3 ग्राम चूर्ण मुख में रखकर चूसते रहें।

(13) त्रिफला एवं कुटकी का चूर्ण बराबर मात्रा में मिश्री या शहद मिलाकर सेवन कराएँ।

(14) ईसबगोल की भूसी 50 ग्राम में अविपत्तिकर चूर्ण 50 ग्राम मिलाकर रखें तथा यह मिश्रण 10 ग्राम दोपहर व रात्रि को भोजन के बाद गाय के उबले हुए अंडे मीठे दूध में मिलाकर लाभ होने तक प्रतिदिन सेवन कराएँ।

(15) नित्य 5 ग्राम खाने का चूना रात को पानी में घोलकर रख दें। प्रातः 10 ग्राम चूने का पानी निथारकर दूध में मिलाकर लाभ होने तक पिलाएँ।

(16) प्रातः आधा नीबू का रस एक गिलास पानी में निचोड़कर उसमें 2 ग्राम खाने का सोडा (सोडियम बाई कार्बोनेट) तुरंत डालकर 40 दिन तक पीने से अतिअम्लता से छुटकारा मिलता है।

(17) चिरायता का 2 ग्राम चूर्ण 100 ग्राम पानी में भिगो दें: प्रात: मसल-छानकर पिला दें यह प्रयोग 2-3 माह तक चलाएँ।

(18) सफेद जीरा के साथ बराबर मात्रा में धनिया के बीजों का चूर्ण लेकर उतनी ही मात्रा में मिश्री पीसकर मिला दें। इस चूर्ण को 5 ग्राम मुँह में रखकर चूसते रहने से लाभ होता है।

(19) नीम के पत्तों का रस, अडूसा के पत्तों का रस 10-10 ग्राम लेकर शहद मिलाकर चाटने से लाभ होता है।

(20) पिप्पली का चूर्ण 3 ग्राम मिश्री के साथ नित्य सुबह-शाम 40 दिनों तक सेवन करने से लाभ होता है।

(21) मिश्री के साथ नारियल 10-20 ग्राम नित्य खाने से लाभ होता है।

(22) इलायची 1 नग तथा लौंग 1 नग भोजन के बाद चबाने से लाभ होता है।

(23) भोजन के पूर्व तथा बाद में 1-1 चम्मच जैतून का तेल (ओलिव ऑइल) पीने से लाभ होता है।

(24) प्राकृतिक आरोग्य केंद्रों में जहाँ पर 'दुग्धकल्प' कराया जाता है; 50 दिनों तक उपचार लेने से रामबाण के समान लाभ होता है।

(25) गिलोय, नीम के पत्ते और कड़वा परवल के पत्ते समान मात्रा में लें इकट्ठा पीसकर शहद मिलाकर दिन में दो बार देने से अम्लपित्त में लाभ होता है।

युग निर्माण योजना जुलाई-2018

            रोगों की अधिक जानकारी के लिए पढ़े स्वस्थ भारत भाग -1 एवं भाग-2

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