गाँव में एक गरीब महिला ने अपनी सहेली को बहुत सुन्दर चूड़ा पहने देखा। वह चूड़ा इतना आकर्षक था कि गाँव की सभी औरतें उस चूड़े की तारीफ करती नहीं थक रही थीं। तब उस गरीब महिला के भीतर भी चाह उठी कि वह भी वैसा ही मनमोहक चूड़ा पहने और सारे उसके चूड़े की वाह-वाही करें। इस भाव को लिए वह दौड़ी-दौड़ी अपने पति के पास गई और बोली कि उसे एक चूड़ा खरीदना है। पति ने बहुत समझाया कि हमारे पास धन का अभाव है। पर पत्नी के हठ के आगे पति की कहाँ चलने वाली थी! सो, कर्ज लेकर चूड़ा खरीदा गया।
महिला बड़े चाव से चूड़ा पहनकर चौपाल पर गई। वहाँ जान-बूझकर हाथ उठा-उठा कर सभी स्त्रियों से बातें करने लगी। किन्तु किसी का भी ध्यान उसके चूड़े की तरफ नहीं गया। फिर उसने बातों-बातों में चूडे़ की बात छेड़ी। लेकिन सब ने वह बात भी नजरअंदाज कर दी। उसने लाख कोशिशें की, पर किसी ने भी उसके चूड़े की तारीफ नहीं की। गुस्से में तमतमाती हुई वह घर लौटी। रात भर उसे नींद नहीं आई। करवटें बदलती हुई वह यही सोचती नही कि कैसे उसे लोगों की प्रशंसा मिल सकती है! प्रशंसा के लालची कान और मन उसे बेचैन किए हुए थे। तभी उसके दिमाग में एक फितूर उठा। उसने केरोसीन से भरा कनस्तर उठाया, अपने घर पर डाला और आग लगाकर अपने ही घर को जला डाला। अड़ोसी-पड़ोसी आग बुझाने के लिए दौड़े-दौड़े आए, किन्तु तब तक घर स्वाह हो चुका था। गाँव वालों ने सहानुभूति भरे शब्दों में कहा- ‘अरे बहन! तुम्हारा तो बहुत ज्यादा नुकसान हो गया। सारा सामान जल गया।’ इस पर वह महिला तुरन्त बोली- ‘नहीं-नहीं, सबकुछ नहीं जला। देखो, आप सब देखो! यह चूड़ा तो अभी भी मेरे हाथों में ही है। यह बच गया है। है न यह चूड़ा अति मनमोहक?’
पाठकगणों! इस दृष्टांत को पढ़कर आपको लग रहा होगा कि यह तो हद की बेवकूफी है। जरा सी प्रशंसा पाने के लिए भला अपने घर को कौन जलाता है? ऐसा हकीकत में तो कभी हो ही नहीं सकता! पर अगर हम इस दृष्टांत की गहराई में जायें तो पायेंगे कि हममें से अधिकतर का स्वभाव उस महिला के जैसा ही है। अपने बॉस या अपने दोस्तों से प्रशंसा सुनने का हममें इतना पागलपन होता है कि हम अपना सब कुछ उसके लिए स्वाह कर देते हैं। अपने नैतिक मूल्य, अपने आदर्श, अपना परिवार, अपने रिश्ते... सब प्रशंसा की लोलुपता की अग्नि में झोंक देते हैं। इसलिए यह दृष्टांत हमें चेता रहा है कि हम ऐसी मूर्खता न करें।
महिला बड़े चाव से चूड़ा पहनकर चौपाल पर गई। वहाँ जान-बूझकर हाथ उठा-उठा कर सभी स्त्रियों से बातें करने लगी। किन्तु किसी का भी ध्यान उसके चूड़े की तरफ नहीं गया। फिर उसने बातों-बातों में चूडे़ की बात छेड़ी। लेकिन सब ने वह बात भी नजरअंदाज कर दी। उसने लाख कोशिशें की, पर किसी ने भी उसके चूड़े की तारीफ नहीं की। गुस्से में तमतमाती हुई वह घर लौटी। रात भर उसे नींद नहीं आई। करवटें बदलती हुई वह यही सोचती नही कि कैसे उसे लोगों की प्रशंसा मिल सकती है! प्रशंसा के लालची कान और मन उसे बेचैन किए हुए थे। तभी उसके दिमाग में एक फितूर उठा। उसने केरोसीन से भरा कनस्तर उठाया, अपने घर पर डाला और आग लगाकर अपने ही घर को जला डाला। अड़ोसी-पड़ोसी आग बुझाने के लिए दौड़े-दौड़े आए, किन्तु तब तक घर स्वाह हो चुका था। गाँव वालों ने सहानुभूति भरे शब्दों में कहा- ‘अरे बहन! तुम्हारा तो बहुत ज्यादा नुकसान हो गया। सारा सामान जल गया।’ इस पर वह महिला तुरन्त बोली- ‘नहीं-नहीं, सबकुछ नहीं जला। देखो, आप सब देखो! यह चूड़ा तो अभी भी मेरे हाथों में ही है। यह बच गया है। है न यह चूड़ा अति मनमोहक?’
पाठकगणों! इस दृष्टांत को पढ़कर आपको लग रहा होगा कि यह तो हद की बेवकूफी है। जरा सी प्रशंसा पाने के लिए भला अपने घर को कौन जलाता है? ऐसा हकीकत में तो कभी हो ही नहीं सकता! पर अगर हम इस दृष्टांत की गहराई में जायें तो पायेंगे कि हममें से अधिकतर का स्वभाव उस महिला के जैसा ही है। अपने बॉस या अपने दोस्तों से प्रशंसा सुनने का हममें इतना पागलपन होता है कि हम अपना सब कुछ उसके लिए स्वाह कर देते हैं। अपने नैतिक मूल्य, अपने आदर्श, अपना परिवार, अपने रिश्ते... सब प्रशंसा की लोलुपता की अग्नि में झोंक देते हैं। इसलिए यह दृष्टांत हमें चेता रहा है कि हम ऐसी मूर्खता न करें।
No comments:
Post a Comment