Wednesday, September 30, 2020

कर्तव्य बनाम अधिकार

एक गाँव में चार बहुत ही गरीब लोग रहते थे। गरीब होने के साथ-साथ वे मूर्ख और स्वार्थी भी थे। एक बार उन चारों व्यक्तियों को राजा ने दया करके एक गाय भेंट स्वरूप दे दी। यही सोचकर कि उस गाय से उन चारों का कुछ भला हो जायेगा। किन्तु पहले ही दिन उन चारों में उस गाय को लेकर लड़ाई छिड़ गई। तब एक विद्वान ने आकर उन्हें समझाया- ‘आप चारों बारी-बारी से एक-एक दिन गाय का दूध निकाल लें।’ चारों ने इस परामर्श को स्वीकार किया और गाय का दूध निकालने लगे। किन्तु कुछ समय बाद गाय ने दूध देना बंद कर दिया। जानते हैं क्यों? क्योंकि चारों गाय पर अधिकार तो जमाना जानते थे, पर कर्तव्य निभाना नहीं। सारे अपनी-अपनी बारी पर दूध तो निकाल लेते थे, पर कोई भी गाय को चारा नहीं खिलाता था। किसी ने यदि उन्हें चारा डालने को कहा भी, तो उनका जवाब होता था कि मेरी बारी तो तीन दिन बाद आएगी, ऐसे में गाय को चारा डालने से मुझे क्या फायदा होगा?
यही गलती तो आज हम सब कर रहे हैं। चाहे हमारा घर हो, दफ्तर हो या देश ही क्यों न हो, हमें सिर्फ अपने अधिकार चाहिए होते हैं। हम भूल जाते हैं कि अधिकार के साथ हमारे कुछ कर्तव्य भी हैं। और इसी स्वार्थ के कारण अंत में हम सब कुछ खो बैठते हैं। ऐसा न हो, इसीलिए पाठकों, अपने कर्तव्यों को भी पूर्ण निष्ठा से निभायें। 

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