भारत की भूमि पर अनेक ऋषियों का आशीर्वाद रहा है। इन्हीं में से एक कृपाहस्त महर्षि चरक का भी है। चरक मुनि आयुर्वेद विशारद के रूप में भी जाने जाते हैं। कहते हैं तत्कालीन राजा ने इन्हें किसी भी पौधे, फल या फूल पर अनुसंधान करने की खुली छूट दी हुई थी। इस कारण इन्हें कोई भी वनस्पति, कही से भी, बिना पूछे तोड़ लेने की स्वतंत्रता थी।
एक बार की बात है। एक बाग से गुजरते हुए महर्षि चरक को एक ऐसा फूल नजर आया, जो आज से पहले उन्होंने नहीं देखा था। एकाएक चरक मुनि ने अपने शिष्य से कहा- ‘यह फूल तो शोध का विषय है। यह भी हो सकता है कि इसके अध्ययन से ऐसी औषधि सामने आए, जिससे किसी असाध्य बीमारी का इलाज किया जा सके।’ इतना सुनना था कि शिष्य उत्साहित हो उठा और फूल को तोड़ने के दौड़ पड़ा। वह फूल पर लपकने वाला ही था कि चरक मुनि ने उसे वहीं रोक दिया। शिष्य ने पलटकर हैरानी से पूछा- ‘क्या हुआ ऋषिवर? अगर मैं फूल तोडँ़ूगा नहीं, तो हम इस पर शोध कैसे कर पायेंगे?’
महर्षि चरक- इस फूल को तोड़ने से पहले इस बाग के मालिक से अनुमति लेनी जरूरी है।
शिष्य- किंतु गुरुवर, आपको तो राजा से यह अधिकार प्राप्त है कि शोध हेतु आप कहीं से भी, कुछ भी तोड़ सकते हैं। फिर अनुमति लेने की क्या आवश्यकता है?
महर्षि चरक- देखो, यह बात अच्छे से समल लो। तुम्हें केवल वनस्पति विज्ञान पर ध्यान नहीं देना है, बल्कि हृदय के विज्ञान को भी समझना है। क्योंकि हृदय के विज्ञान का बहुत गहरा संबंध है हमारे शोध के साथ।
जरा सोचो! जिस माली ने इस फूल को उगाया है, उसका इसके साथ कितना जुड़ाव होगा! क्योंकि उसने दिन-रात इसकी देख-रेख की, इसका पालन-पोषण किया। बेशक हम माली से बिना पूछे फूल तोड़ सकते हैं। किंतु इससे माली दुःखी होगा। उसके दुःखी मन का स्पंदन वायुमंडल में तैरता हुआ हम तक पहुँचेगा और हमारे शोध में बाधा बनेगा। हमारा शोध सफल नहीं हो सकेगा। इसलिए आवश्यक है कि हम माली से फूल तोड़ने की आज्ञा लें। जब वह सहर्ष स्वीकृति देगा, तो हमारे लिए अपने शोध में सफलता प्राप्त करना सहज हो जाएगा। यही हृदय का विज्ञान है।
पाठकों, इस दृष्टांत से हमें यही प्रेरणा मिलती है कि कुछ भी करने से पहले हम दूसरों की भावनाओं का भी ध्यान रखें। किसी को आहत करके हम कभी भी पूर्ण सफलता नहीं पा सकते।
कुछ भी करने से पहले हम दूसरों की भावनाओं का भी ध्यान रखें। किसी को आहत करके हम कभी भी पूर्ण सफलता नहीं पा सकते।
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