व्रतराज नामक ग्रन्थ में
लगभग 112 तरह के व्रतों का वर्णन है। इन व्रतों द्वारा रोगों से मुक्ति के उपाय बताए गए हैं। जैसे-एकादशी के व्रत रखने से वात-पित्त-कफ सन्तुलित रहते हैं। चतुर्दशी के उपवास से मानसिक विकार नहीं होते। पंचमी को व्रत रखने से आत्मविश्वास एवं मनोबल बढ़ता है। अष्टमी के व्रत से सिद्धियां आती हैं। चतुर्थी के व्रत से ज्ञान-बुद्धि तेज होती है।
भारत की अनेकों महिलाएं अपने पति व परिवार की खुशी के लिए निर्जल और निराहार व्रत रखती हैं। जैसे-निर्जला ग्यारस, करवा चौथ, तीजा व्रत आदि इसीलिए भारत में महिलाएं कम बीमार रहती हैं।
अब वैज्ञानिकों की खोजे जाने-
जर्मनी के 4 वैज्ञानिक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में रहकर शोध किया कि व्रत का क्या प्रभाव है। इनकी टीम में से 2 लोगों ने 7 दिन का व्रत रखा और 2 लोगों ने नहीं। जांच करने पर पाया कि जिन्होंने व्रत किया उनकी इम्युनिटी काफी बेहतर थी, वे ऊर्जा से भरा महसूस कर रहे थे।
व्रत-उपवास के फायदे पर एक रिसर्चर जपानी वैज्ञानिक योशीनोरी ओसुमि को नॉबेल पुरस्कार मिला था। जापान में लम्बे जीने वाले सर्वाधिक लोग हैं। ये लोग 7 दिन में एक बार पूरी तरह निराहार रहते हैं।
उपवास से शरीर को फायदा—बीमार होने पर भोजन के बीच लम्बा अंतराल रखें। कोशिश करें कि केवल पानी पीकर ही काम चल सके। कुछ लोगों पर व्रत का यह प्रयोग कराया गया, उनकी सभी दवाएं बन्द करनी पड़ी, क्यों कि वे पृरी तरह स्वस्थ्य थे।
व्रत है-कैंसर से बचाव का श्रेष्ठ जरिया-
व्रत करने से व्यक्ति का मनोबल बढ़ता है। भारत के वैज्ञानिकों ने कैंसर से जूझ रहे चूहों के दो समूह बनाये। एक ग्रुप को व्रत कराया, दूसरे को नहीं। 10 दिन बाद जांच करने पर पता चला कि व्रत वाले चूहों की कैंसर कोशिकाएं रुक गईं, वे तेजी से ठीक होने लगे। कुछ समय बाद उनका कैंसर लगभग जा चुका था। बिना व्रत वाले लम्बे समय तक जीवित नहीं रह सके।(दैनिक भास्कर, ग्वालियर से साभार)रोगप्रतिरोधक क्षमता की कमी, कमजोरी के कारण ही देह में कैंसर जैसे असाध्य रोग पैदा होते है।
नियमित उपवास करे। हम सभी के शरीर में कैंसर की कोशिकाएं होती हैं, जिनको शरीर स्वयं नष्ट करता है उपवास करने से यह गतिविधि जिसको ऑटो-फैगी के नाम से जाना जाता है, यह गतिविधि बढ़ जाती है। किंतु इस उपवास को धार्मिक उपवास की तरह ना समझें। जापान के प्रसिद्ध कैंसर विशेषज्ञ वैज्ञानिक जिनको अपनी रिसर्च के लिए नोबेल पुरस्कार 2016 में मिला था। उन्होंने अपने रिसर्च में यह पाया, खाने में 12 घंटे का अंतराल नियमित रूप से रखने और हर 15 दिन में एक बार 24 घंटे बिना खाए रहने से ऑटो-फैगी की प्रक्रिया कैंसर के मरीजों में पुनः शुरू हो जाती है। इस उपवास के समय अंतराल के बीच केवल पानी पीना उचित है और कुछ नहीं।
इस उपवास को भारतीय लोग एकादशी के उपवास की तरह कर सकते हैं। जिसमें कुछ भी खाना वर्जित है |
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