जो धर्म के नाम पर शोषण व उत्पीड़न करते हैं, उनके लिए अपने तुलसी बाबा की रामायण में एक चैपाई है-‘उघरहिं अंत न होइ निबाहू। कालनेमि जिमि रावन राहू’û अर्थात जब धर्म का ढोंग करने वाले अधर्मीजनों की पोल खुलती है, तो उनका कहीं निर्वाह नहीं होता, उन्हें कहीं ठिकाना नहीं मिलता। उनका वही हाल होता है, जो सन्यासी बनकर भिक्षा माँगने वाले रावण का हुआ। वह अपने परिवार सहित दुर्गति को प्राप्त हुआ। जो हाल साधु बनकर रामनाम जप का आडंबर करने वाले कालनेमि असुर का हुआ। वह महावीर हनुमान के हाथों मारा गया। और जो हाल राहु का हुआ। देवता बनने का स्वांग भरने वाले इस असुर को अपना सिर कटवाना पड़ा। आगे भी ऐसे ढोंगियों का हाल तो यही होता रहेगा,
तरह-तरह की बेतुकी बातें कर साधु-बाबा अपनी मूर्खता का प्रदर्शन करते हैं। डबलरोटी-समोसे-जूते आदि को कर्म-चक्र से जोड़कर ये अपनी अविकसित सोच का प्रमाण देते हैं। परंतु दुर्भाग्य की बात तो यह है कि अशिक्षित ही नहीं, बल्कि शिक्षित वर्ग भी आज उनकी इन उल-जलूल बातों में फंसकर उनका भक्त बन रहा है। उनके चरणों में बैठकर श्र(ा और विश्वास के पुष्प चढ़ाता है आँख मूँद कर वही करता है, जो वे उससे करने को कहते हैं। इस कारण अंत में गति क्या होती है, वही जो इस प्रसंग में व£णत शिष्यों की हुई। एक बार एक ढोंगी गुरु ने अपने सभी शिष्यों से कहा-”मैं तुम्हें परमात्मा के साम्राज्य तक पहुँचा दूँगा, बशर्त तुम मेरी बात का अक्षरशः पालन करो। बिना प्रश्न किए मेरी आज्ञा मानो! क्या तुम ऐसा वायदा करने को तैयार हो? क्या तुम मेरा अनुसरण करने को तैयार हो? सभी शिष्यों ने एक स्वर में हामी भर दी। अब ढोंगी गुरु ने अपना पहला आदेश शिष्यों को दिया-सीधे बैठो! करीब 200 शिष्यों का एक साथ स्वर उभरा-सीधे बैठो! ढोंगी गुरु ने हैरानी से चारों ओर दृष्टी घुमाई। आज्ञाकारी शिष्यों ने भी हैरानी से चारों ओर दृष्टी घुमा दी। परेशान हुए ढोंगी गुरु ने गुस्से में कहा- तुम वो करो, जो मैं कह रहा हूँ। फिर 200 शिष्य चीखे-तुम वो करो, जो मैं कह रहा हूँ।
ढोंगी-मूर्खों! चुप रहो! मेरी नकल मत करो।
200 शिष्य-मूर्खों! चुप रहो! मेरी नकल मत करो।
ढोंगी गुरु जो-जो कहता गया, जैसा-जैसा करता गया, उसके शिष्य ठीक वैसा-वैसा कहते गए, करते गए। आखिरकार ढोंगी गुरु ने झुंझलाकर सामने बैठे एक शिष्य के मुख पर तमाचा जड़ दिया। बस, अब क्या था! पूरा वातावरण तमाचों के शोर से गूँज उठा। सब एक-एक तमाचा उस ढोंगी के चेहरे पर जड़ने लगे। अब वह ढोंगी जान-बचाकर वहाँ से भागा। उसके शिष्य भी उसके पीछे-पीछे दौड़ पडे़। इस भागदौड़ में गुरु कुएँ में जा गिरा और उसके पीछे-पीछे वे 200 शिष्य भी कुएँ में कूद पड़े। इस तरह सब एक साथ ईश्वर के साम्राज्य में पहुँच गए!!
तरह-तरह की बेतुकी बातें कर साधु-बाबा अपनी मूर्खता का प्रदर्शन करते हैं। डबलरोटी-समोसे-जूते आदि को कर्म-चक्र से जोड़कर ये अपनी अविकसित सोच का प्रमाण देते हैं। परंतु दुर्भाग्य की बात तो यह है कि अशिक्षित ही नहीं, बल्कि शिक्षित वर्ग भी आज उनकी इन उल-जलूल बातों में फंसकर उनका भक्त बन रहा है। उनके चरणों में बैठकर श्र(ा और विश्वास के पुष्प चढ़ाता है आँख मूँद कर वही करता है, जो वे उससे करने को कहते हैं। इस कारण अंत में गति क्या होती है, वही जो इस प्रसंग में व£णत शिष्यों की हुई। एक बार एक ढोंगी गुरु ने अपने सभी शिष्यों से कहा-”मैं तुम्हें परमात्मा के साम्राज्य तक पहुँचा दूँगा, बशर्त तुम मेरी बात का अक्षरशः पालन करो। बिना प्रश्न किए मेरी आज्ञा मानो! क्या तुम ऐसा वायदा करने को तैयार हो? क्या तुम मेरा अनुसरण करने को तैयार हो? सभी शिष्यों ने एक स्वर में हामी भर दी। अब ढोंगी गुरु ने अपना पहला आदेश शिष्यों को दिया-सीधे बैठो! करीब 200 शिष्यों का एक साथ स्वर उभरा-सीधे बैठो! ढोंगी गुरु ने हैरानी से चारों ओर दृष्टी घुमाई। आज्ञाकारी शिष्यों ने भी हैरानी से चारों ओर दृष्टी घुमा दी। परेशान हुए ढोंगी गुरु ने गुस्से में कहा- तुम वो करो, जो मैं कह रहा हूँ। फिर 200 शिष्य चीखे-तुम वो करो, जो मैं कह रहा हूँ।
ढोंगी-मूर्खों! चुप रहो! मेरी नकल मत करो।
200 शिष्य-मूर्खों! चुप रहो! मेरी नकल मत करो।
ढोंगी गुरु जो-जो कहता गया, जैसा-जैसा करता गया, उसके शिष्य ठीक वैसा-वैसा कहते गए, करते गए। आखिरकार ढोंगी गुरु ने झुंझलाकर सामने बैठे एक शिष्य के मुख पर तमाचा जड़ दिया। बस, अब क्या था! पूरा वातावरण तमाचों के शोर से गूँज उठा। सब एक-एक तमाचा उस ढोंगी के चेहरे पर जड़ने लगे। अब वह ढोंगी जान-बचाकर वहाँ से भागा। उसके शिष्य भी उसके पीछे-पीछे दौड़ पडे़। इस भागदौड़ में गुरु कुएँ में जा गिरा और उसके पीछे-पीछे वे 200 शिष्य भी कुएँ में कूद पड़े। इस तरह सब एक साथ ईश्वर के साम्राज्य में पहुँच गए!!
No comments:
Post a Comment