Sunday, February 9, 2014

Appeal to Luminous Souls-2

मैं अपनी लिखी पुस्तकों को पढ़ता हुँ।  तो मुझे स्वयं आश्चर्य होता है कि क्या यह मैंने लिखी है? यदि दोबारा मुझे कोई कहे कि आप कुछ ऐसा लिख दो तो मैं ऐसा नहीं कर पाऊँगा। महाभारत का युद्ध  समाप्त हुआ, अर्जुन किसी जंगल से गुजर रहे थे उन्होंने देखा कि कुछ भील एक महिला को परेशान कर रहे हैं। अर्जुन ने उनको चुनौती दी, भीलों ने अर्जुन पर आक्रमण कर दिया। अर्जुन उनसे परास्त हुए व जान बचाकर भागे। अर्जुन बड़े दुःखी हुए कि यह गाण्डीव जिसने बड़े-बड़े वीरों के छक्के छुड़ा दिए आज क्यों नहीं कामयाब रहा? मित्रों यह दैवी आवेश होता है जो व्यक्ति में शक्ति और प्रेरणा भरता है। यह आवेश बड़ी सँख्या में लोगों के ऊपर उतरने जा रहा है लगभग 24 लाख आत्माएँ तेजपुँज बनने जा रही हैं।       
मेरा अपने परिजनों से निवेदन है कि वो अन्तःकरण की पुकार को सुनें। परिस्थितियों के दबाव से डर कर उस पुकार को अनसुनी न करें, आगे बढ़ें। भविष्य के भय को अपने ऊपर हावी न होने दें। जो विश्वास करता है साहस से काम लेता है वही कुछ अच्छा कर पाने में सफल होता है। अन्यथा ढ़र्रे पर जीवन चलता रहता है। चाहे वो समाज हो या आश्रम। आश्रमों में भी व्यक्ति एक ढ़र्रे पर जी रहा होता है, कुछ नया करने की सामथ्र्य अपने अन्दर नहीं जुटा पाता। अन्तर इतना है जो बाहर है वह सोचता है कि आश्रम में जीवन बढि़या है यहाँ रहकर अच्छा किया जा सकता है। जो आश्रम में आया है वह सोचता है कि यहाँ क्या सोचकर आए थे? आए तो थे युवा चेतना जगाने पर पदाधिकारियों के दबाव में खुद की चेतना सो गयी, इससे तो बाहर ही अच्छे थे, कम से कम अपने मन से कुछ तो अच्छा कर लेते थे। सभी लोग अपनी-अपनी परिस्थितियों में स्वयं को विवश महसूस कर रहे हैं। आश्रम वाले सोचते हैं कि क्षेत्र से कुछ सामूहिक चेतना ; Collective Consciousness उभरेगी व सुधार होगा। क्षेत्र वाले सोचते हैं कि इतने विषाक्त व भौतिकवादी वातावरण से स्वयं को बचाकर कैसे आत्मकल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ें। क्षेत्र में कुछ करने का प्रयास करते हैं तो हंसी के पात्र बनने लगते हैं। 
दोनों ओर कठिनाई है, क्षेत्र में अपनी तरह की उलझने हैं व आश्रमों में अपनी तरह की समस्याएँ हैं। जो साधना के द्वारा आत्मबल उत्पन्न करेगा, अपने ऊपर पड़ने वाले पारिवारिक, सामाजिक दबावों का सामना करेगा वही विजेता बनेगा। मित्रों आप जहाँ भी हैं, जिस भी परिस्थिति में हैं उसको दोष न दें अपितु वहीं रहकर कुछ अच्छा करने कुछ नया करने का प्रयास करें। आपके इस प्रयास से आपकी आत्मा व परमात्मा दोनों प्रसन्न होंगे व आप एक उच्च साधक के रूप में उभरकर एक महान कार्य करने में सक्षम होंगे।
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सब जग ईश्वर रूप है, भलो बुरो नहिं कोय। 
जाकी जैसी भावना, तैसो ही फल होय।।
इस भाव से हम सबको प्रणाम करते हैं। 
बार बार बर मागउँ हरषि देहु श्री रंग। 
पद सरोज अनपायनी भगति सदा सत्संग।। 

हे प्रभु, आपसे एक ही विनती है आप अपने चरणों को आसरा देकर अपनी भक्ति ओर साधको सज्जनों की संगति प्रदान करें। 

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