गौ, गंगा, गीता, गायत्री, गुरु
साधक को अपनी साधना को पूर्णता तक पहुँचाने के लिए निम्न पाँच आधार स्तम्भों की आवश्यकता होती है। यदि इनमें से कोई भी एक भी कम होगा तो आशातीत सफलता नहीं मिल पाएगी। गौ से मिलता है सात्विक आहार। साधना में गौ दूध व सात्विक आहार लेना अनिवार्य है। दूध भी देसी गाय का होना चाहिए। कई बार साधना में कमजोरी बढ़ जाती है जो बिना गौ दूध के नहीं उभर पाती। कई बार साधना में ऊष्मा बढ़ जाती है जिसके शमन के लिए गौ घृत आवश्यक हो जाता है। जो व्यक्ति उच्चस्तरीय साधना की ओर बढ़ना चाहते हों उन्हें देसी गाय पालनी अथवा धन देकर किसी से पलवानी चाहिए। विभिन्न आश्रमों, मन्दिरों, शक्तिपीठों पर गाय की व्यवस्था होना जरूरी है। कई बार साधना में Negativity बढ़ जाती है जो साधक को बहुत कष्ट देती है इस अवस्था में गायों के सम्पर्क में जाते ही शान्ति पड़ती है। महात्मा बुद्ध एक बार साधना करते-करते बहुत कमजोर हो गए जीवन बचने की आशा न रही। इस समय एक महिला सुजाता को उन पर बड़ी दया आयी। वह उनको गाय का दूध व खीर खिलाने लगी जिससे उनके स्वास्थ्य में पुनः सुधार हो गया।
गंगा हमें सात्विक वातावरण प्रदान करती है। साधना में व्यक्ति का सूक्ष्म बहुत ही संवेदनशील होने लगता है जो आस पास के प्रभावों को शीघ्रता से ग्रहण कर लेता है। यदि वातावरण में वासना, क्रोध आदि भरा है तो साधक के अन्दर भी वही अवगुण उभरने लगते हैं। साधक यह देखकर हैरान होता है कि अचानक उसमें ये परिवर्तन (changes) कैसे आ गए। इस कारण साधक को यह निर्देश होता है कि साधना काल में अधिक इधर-उधर न जाए। मेरा अनुभव भी इसमें यही कहता है मैं अधिकतर घर के एक कमरे में अथवा आफिस के कमरे में रहता हूँ। ये देव सत्ताओं द्वारा संरक्षित है। यदि मैं इधर-उधर ज्यादा जाने लगूँ तो मेरी परेशानी बढ़ने लगती है।
गंगा तट से अधिक पवित्र वातावरण साधना के लिए कहाँ मिल सकता है। महाकाल ने चेतावनी भी दी है कि गंगा तट को साधना के लिए रहने दो यहाँ पर्यटक न आएँ। आने वाले समय में 24 लाख लोग साधना की दृष्टि से गंगा तट पर विचरण करेंगे। ऐसे में यदि भोगवादी, भौतिकवादी व्यक्ति अनावश्यक गंगा तट के प्रदूषित करेंगे तो महाकाल उनको उचित दण्ड देगा। अतः गंगा तट की पवित्रता को बनाए रखना हम सबका परम कत्र्तव्य है। श्रीमद भगवद् गीता व्यक्ति को निष्काम कर्म योग, आत्मा की अमरता व स्थितप्रज्ञता का सन्देश देती है। साधक के भीतर जो दैवीय और आसुरी तत्वों का युद्ध चलता है उसमें कैसे दैवीय पक्ष को विजयश्री हासिल हो यह जानने के लिए गीता माता की शरण में जाना पड़ता है।
दृश्य गंगा और अदृश्य गायत्री में कई दृष्टियों से समान है। गायत्री की शक्ति का नाम मंदाकिनी भी है। गंगा पवित्रता प्रदान करती है। पापकर्मों से छुटकारा दिलाती है। गायत्री से अंतःकरण पवित्र होता है। कषाय-कल्मषों के कुसंस्कारों से त्राण मिलता है। गंगा और गायत्री, दोनों का ही जन्म, जयंती एक है-ज्येष्ठ शुक्ल दशमी। दोनों को एक ही लक्ष्य का स्थूल एवं सूक्ष्म प्रतीक माना जा सकता है।
गंगा शरीर को पवित्र करती है, गायत्री आत्मा को, गंगा मृतकों को तारती है, गायत्री जीवितों को। गंगास्नान से पाप धुलते हैं, गायत्री से पाप-प्रवृति ही निर्मूल होती है। गायत्री उपासना के लिए गंगातट की अधिक महत्ता बताई गई है। दोनों का समन्वय गंगा-युमना संगम की तरह अधिक प्रभावोत्पादक बनता है। ऋषियों ने गायत्री-साधना द्वारा परमसि(ि पाने के लिए उपयुक्त स्थान गंगातट ही चुना था और वहीं दीर्घकालीन तपश्चर्या की थी। गायत्री के एक हाथ में जल भरा कमंडल है। यह अमृतजल गंगाजल ही है। उच्चस्तरीय गायत्री-साधना करने वाले प्रायः गंगास्नान, गंगाजल पान, गंगातट का सान्निध्य जैसे सुयोग तलाश करते हैं।
साधक को अपनी साधना को पूर्णता तक पहुँचाने के लिए निम्न पाँच आधार स्तम्भों की आवश्यकता होती है। यदि इनमें से कोई भी एक भी कम होगा तो आशातीत सफलता नहीं मिल पाएगी। गौ से मिलता है सात्विक आहार। साधना में गौ दूध व सात्विक आहार लेना अनिवार्य है। दूध भी देसी गाय का होना चाहिए। कई बार साधना में कमजोरी बढ़ जाती है जो बिना गौ दूध के नहीं उभर पाती। कई बार साधना में ऊष्मा बढ़ जाती है जिसके शमन के लिए गौ घृत आवश्यक हो जाता है। जो व्यक्ति उच्चस्तरीय साधना की ओर बढ़ना चाहते हों उन्हें देसी गाय पालनी अथवा धन देकर किसी से पलवानी चाहिए। विभिन्न आश्रमों, मन्दिरों, शक्तिपीठों पर गाय की व्यवस्था होना जरूरी है। कई बार साधना में Negativity बढ़ जाती है जो साधक को बहुत कष्ट देती है इस अवस्था में गायों के सम्पर्क में जाते ही शान्ति पड़ती है। महात्मा बुद्ध एक बार साधना करते-करते बहुत कमजोर हो गए जीवन बचने की आशा न रही। इस समय एक महिला सुजाता को उन पर बड़ी दया आयी। वह उनको गाय का दूध व खीर खिलाने लगी जिससे उनके स्वास्थ्य में पुनः सुधार हो गया।
गंगा हमें सात्विक वातावरण प्रदान करती है। साधना में व्यक्ति का सूक्ष्म बहुत ही संवेदनशील होने लगता है जो आस पास के प्रभावों को शीघ्रता से ग्रहण कर लेता है। यदि वातावरण में वासना, क्रोध आदि भरा है तो साधक के अन्दर भी वही अवगुण उभरने लगते हैं। साधक यह देखकर हैरान होता है कि अचानक उसमें ये परिवर्तन (changes) कैसे आ गए। इस कारण साधक को यह निर्देश होता है कि साधना काल में अधिक इधर-उधर न जाए। मेरा अनुभव भी इसमें यही कहता है मैं अधिकतर घर के एक कमरे में अथवा आफिस के कमरे में रहता हूँ। ये देव सत्ताओं द्वारा संरक्षित है। यदि मैं इधर-उधर ज्यादा जाने लगूँ तो मेरी परेशानी बढ़ने लगती है।
गंगा तट से अधिक पवित्र वातावरण साधना के लिए कहाँ मिल सकता है। महाकाल ने चेतावनी भी दी है कि गंगा तट को साधना के लिए रहने दो यहाँ पर्यटक न आएँ। आने वाले समय में 24 लाख लोग साधना की दृष्टि से गंगा तट पर विचरण करेंगे। ऐसे में यदि भोगवादी, भौतिकवादी व्यक्ति अनावश्यक गंगा तट के प्रदूषित करेंगे तो महाकाल उनको उचित दण्ड देगा। अतः गंगा तट की पवित्रता को बनाए रखना हम सबका परम कत्र्तव्य है। श्रीमद भगवद् गीता व्यक्ति को निष्काम कर्म योग, आत्मा की अमरता व स्थितप्रज्ञता का सन्देश देती है। साधक के भीतर जो दैवीय और आसुरी तत्वों का युद्ध चलता है उसमें कैसे दैवीय पक्ष को विजयश्री हासिल हो यह जानने के लिए गीता माता की शरण में जाना पड़ता है।
दृश्य गंगा और अदृश्य गायत्री में कई दृष्टियों से समान है। गायत्री की शक्ति का नाम मंदाकिनी भी है। गंगा पवित्रता प्रदान करती है। पापकर्मों से छुटकारा दिलाती है। गायत्री से अंतःकरण पवित्र होता है। कषाय-कल्मषों के कुसंस्कारों से त्राण मिलता है। गंगा और गायत्री, दोनों का ही जन्म, जयंती एक है-ज्येष्ठ शुक्ल दशमी। दोनों को एक ही लक्ष्य का स्थूल एवं सूक्ष्म प्रतीक माना जा सकता है।
गंगा शरीर को पवित्र करती है, गायत्री आत्मा को, गंगा मृतकों को तारती है, गायत्री जीवितों को। गंगास्नान से पाप धुलते हैं, गायत्री से पाप-प्रवृति ही निर्मूल होती है। गायत्री उपासना के लिए गंगातट की अधिक महत्ता बताई गई है। दोनों का समन्वय गंगा-युमना संगम की तरह अधिक प्रभावोत्पादक बनता है। ऋषियों ने गायत्री-साधना द्वारा परमसि(ि पाने के लिए उपयुक्त स्थान गंगातट ही चुना था और वहीं दीर्घकालीन तपश्चर्या की थी। गायत्री के एक हाथ में जल भरा कमंडल है। यह अमृतजल गंगाजल ही है। उच्चस्तरीय गायत्री-साधना करने वाले प्रायः गंगास्नान, गंगाजल पान, गंगातट का सान्निध्य जैसे सुयोग तलाश करते हैं।
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