दिशाओं दहको
दिशाओं दहको, दावानल आओ
धरती को अग्निकुंड बनाओ
बिजलियों कडको
अम्बर का सीना फट जाए
पिघलकर सब एक हो जाएँ
फिर से बन जाएँ कुंदन
कहाँ सोये हो, अरे ओ युग पुरुष ?
आज मैं तुम्हारा आव्हान करता हूँ
हमारी दंशित, सडी-गली आत्माओं की
आहुती दो
भाप बनकर खो जाए मन का खोट
फिर रचो तुम प्यार भरा संसार
पूजा आदमी की हो, पत्थरों की नहीं
भूल जाएँ हम
वासना, तृष्णा और ईर्ष्या
फूल खिलें होठों पर
आदमी, आदमी बनकर जिए
कहाँ हो तुम, अरे ओ युग-पुरुष
आज मैं तुम्हारा आव्हान करता हूँ |
- अशोक राठी
स
आत्मा स विज्ञेयः
वही है
वही है वह
जानना है जिसे
उस अक्षर,
अनिर्देश्य, अव्यक्त
अचिन्त्य की चिन्ता
में
अनित्य माया से नित्य संघर्षरत
कर्मों के फल को
प्राप्त हुआ मैं
अविद्या के द्वारा
विद्या की खोज
असीम को सीमा में
बांधता हुआ
कौन हूँ ? कौन हूँ ?
कौन हूँ ?
ज्ञानियों ने कहा है
वह वही, जो सोते हुओं में जागता है
एक अविभक्त, शुद्ध
सत्
वह जो पुरुष सब जगह
है, वही हूँ मैं
जो दिखाई देता है
और जो नहीं दिखाई देता
जो है और जो नहीं है
जो अनुभव किया गया
है और जो अनुभव नहीं किया गया है
वह सब है जो अब है ,
जो हुआ है
और जो अभी होने को
है
मन, वाणी और बुद्धि
से परे
वह सबको देखता है वह
सर्व है
सर्वत्र !
आश्चर्य है !!!
प्रकट होओ, मुझे
मेरा होने का अनुभव कराओ
तू ही मैं हूँ और
मैं ही तू
जानना है
वही जो जानने योग्य
है
ले चलो मुझे
असत् से सत् की ओर ,
तम से ज्योति की ओर, मृत्यु से अमृत्यु की ओर |
-
अशोक राठी
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