Natures response to environmental vibrations
इंसान ने भले ही जबरदस्त तकनीकी प्रगति ;तरक्कीद्ध कर ली हो लेकिन यह सच्ची प्रगति नहीं है। शक्ति का प्रयोग मानवता के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए ना कि व्यक्तिगत लाभ और ना ही नकारात्मक उद्देश्यों के लिए। अच्छाई के मूलाधार प्रेम, निस्वार्थता व मैत्री अब पृथ्वी से समाप्त होते जा रहे हैं, यह प्रगति के नहीं पतन के संकेत हैं। जब मनुष्य बुरी राह पर चलते हैं तो उनके कर्मों द्वारा नकारात्मक सपंदन उत्पन्न होते हैं क्योंकि प्रड्डति इस ऊर्जा के प्रति संवेदनशील होती है अतः ये नकारात्मक सपंदन प्रड्डति द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं। जब मनुष्य लगातार गलत मार्ग का अनुसरण करता है तो बड़ी मात्रा में नकारात्मक ऊर्जा संचित होने लगती है, परिणामस्वरूप प्रड्डति की प्रतिक्रिया नकारात्मक होती है। इस कारण भूकम्प, बाढ़, सुनामी जैसी प्राड्डतिक आपदाएँ पृथ्वी पर बढ़ जाती हैं। यह प्रड्डति का अपना तरीका है मनुष्य को चेतावनी देने, उसे रोकने, सोचने को मजबूर करने और बदलने का। यदि हम सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करेंगे तो प्रड्डति इसे शान्ति एवं सामन्जसय के रूप में परव£तत कर देगी। इस समय मनुष्य भले मार्ग से भटक कर इतनी दूर निकल गया है कि प्रड्डति संकेत देने लगी है। ईश्वर के नियम कुछ इस तरह बनाएँ गए है कि जब मनुष्य एक सीमा से आगे बढ़ जाता है, जब अच्छाई के साथ मनुष्य का साम्वन्य टूट जाता है और एक बड़ा असंतुलन पैदा होता है तब प्रड्डति उन्हें चेतावनी देती है कि वे गलत रास्ते पर चल रहें है। यदि मनुष्य बदलाव की ओर नहीं बढ़ता तो प्रड्डति इस असंतुलन को शु(िकरण प्रक्रिया के जरिए बदलती है। क्योंकि आखिरकार ईश्वर की रचना ;मनुष्य तथा प्रड्डति दोनोंद्ध को अपने अभिष्ट रूप में शु(, उदार व शान्तिप्रिय हो कर रहना है। इस शान्ति को फिर से स्थापित किए जाने से पहले नकारात्मक ऊर्जाओं को हटाना होगा। पृथ्वी को फिर से ऐसे स्थान के रूप में विकसित होना होगा जहाँ मनुष्य प्रेम-भाव और प्रड्डति से साथ सामन्जसय बिठा कर जीएँ और सर्वशक्तिमान ईश्वर के लिए कार्य करें।
From:-The laws of the spirit world
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