एक बात का निवेदन मैं आपसे और करना चाहता हँू कि आज हमें जीवन के हर क्षेत्र में सावधान रहने की आवश्यकता है, अपनी बु(ि लगाने की आवश्यकता है। मान लीजिए हम किसी डाॅक्टर के पास इलाज के लिए जाते हैं तो हमें आँख बंद करके दवा नहीं खा लेनी चाहिए। यदि हम ।दजपइपवजपब खा रहें हैं तो यह जाँचना जरूरी है कि जरूरत से ज्यादा खुराक तो नही ले रहें हैं अथवा इसका विपरीत असर हम पर तो नही पड़ रहा है। क्योंकि जरूरत से अधिक दवाईयों का सेवन हमारी जीवनी शक्ति को नुक्सान पहँुचा सकता है अथवा समअमत खराब कर सकता है। दूसरी ओर यदि हम किसी तथाकथित वैद्य के पास जाते हैं तो यह परखना जरूरी है कि आयुर्वेदिक दवाओं में स्टरीयड ;ेजतवपकमद्ध तो नहीं मिला रखा है।
इसी तरह यदि हम किसी वकील के पास जाते हैं तो यह देखना जरूरी है कि उसने पैसे लेकर हमारे विरोधी पक्ष से तो हाथ नही मिला लिया है। समाज के हर क्षेत्र में विड्डति फैली हुई है तो धर्म का अध्यात्म का क्षेत्र भी इससे कैसे अछूता रह सकता है। मेरे एक मित्र हैं जो काफी अमीर हैं व उन्हें समाजसेवा का भी शौक है। वो अपने जीवन काल में अनेकों सन्तों के साथ रहे हैं व उनके घर पर अक्सर बहुत तरह के सन्त ठहरते रहते हैं। एक बार हम लोग बैठकर चर्चा कर रहे थे कि इस समय समाज में अच्छे सन्त कौन-कौन है वो तपाक से बोले कि उन्हें तो अधिकतर बाजीगर ही दिखाई दिए है सच्चा सन्त तो कभी-कभी ही देखने को मिलता है। कहने का तात्पर्य यह है कि आँख बन्द करके किसी पर विश्वास करने का समय नहीं है। आज ऐसे अनेक बाजीगर ;मदारीद्ध बिखरे हुए हैं जो लोगों के दुःख दूर करने के नाम पर अपना व्यापार चला रहे हैं। मदारी भीड़ एकत्रित करता है उसमें एक दो व्यक्ति अपने छोड़ देता है तमाशे में लोगों का ध्यान भटकाता है परन्तु मूल प्रयोजन लोगों की जेब काटने का होता है। इसी प्रकार यदि साधु-सन्त के वेष में उपस्थित व्यक्ति का मूल प्रयोजन धन-उर्पाजन का है तो उससे साधना अथवा आध्यात्मिक उन्नति जैसा उच्च मार्गदर्शन कैसे मिल सकता है।
समाज में सामान्य वेशभूषा में उच्च कोटि के साधक एवं उच्च कोटि के साधकों की मान्यता लिए भूखे भेडि़ए एवं लोभी ठग मौजूद हैं। थोड़ा सा विश्लेषण करते ही असलियत सामने आ जाती है। महिलाओं से विशेष निवेदन है कि एकान्त में साधना अथवा भाग्योदय के लालच में साधकों के पास न जाएँ। वैसे तो श्रेष्ठ साधक सदैव मर्यादा का ध्यान रखते हैं व एकान्त में महिलाओं को आने के लिए प्रेरित नहीं करते। यदि साधक के पास जाना है तो दो चार के समूह में जाएँ यह नारी जाति की मर्यादा निभाना जरूरी है।
किसी बात भेड़-चाल में न फंसे। भेड़-चाल के चलते भारत में अनेक तरह के व्यक्ति प्रसि(ि पा जाते हैं, व धन कुबेर बन जाते हैं। एक बार हम कहीं नौ कुण्डी यज्ञ कर रहे थे। वहाँ मंच से आवाहन् हुआ कि मध्य वाले कुण्ड पर दीपक जलाएँ। गलती से वहाँ बैठी महिला ने दीपक के स्थान पर कुण्ड में अग्नि प्रज्वल्लित कर दी। देखा देखी अन्य कुण्डों पर भी अग्नि जलने लगी। पूछने पर उन्होंने बताया कि मध्य वाले कुण्ड की अग्नि को देखकर उन्होंने आग जला दी जबकि वो जानते थे कि अभी हवन की अग्नि का समय नहीं हुआ है। ैीवतज बनज के चक्कर में बहुत लोग इधर-उधर दौड़ते हैं अपना धन नष्ट करते हैं साथ-साथ आसुरी शक्तियों के चंगुल में भी उलझ जाते हैं। जितने धरती पर श्रेष्ठ साधक हैं नकली भी उससे कम नहीं हैं। इसलिए कच्चे लालच में व्यक्ति का बेवकूफ बन जाता है। इस विषय में बहुत सावधानी की जरूरत है।
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