Sunday, August 17, 2014

लघु कथाएँ



ऐसे भी होते है शिष्य
 एक आश्रम में एक गुरु जी अपने शिष्यों के साथ रहते थे, जिनमें से कुछ शिष्य बहुत परिश्रमी थे, जबकि कुछ बहुत बातूनी भी थे। एक दिन गुरु जी ने नये शिष्य से कहा कि बेटा, जाओ कुएं से पानी भर लाओ। शिष्य ने जवाब दिया कि गुरु जी एक ही बाल्टी है, यदि यह कुएं में गिर गई तो काम बिगड़ जायेगा।
          गुरुजी ने थोड़ी देर बाद उसी शिष्य से कहा कि जाओ जंगल से लकड़ी काट लाओ। शिष्य ने बड़ी नम्रता से कहा कि गुरु जी अभी यहाँ पर मेरे सिवा और कोई नहीं है, यदि मैं जंगल चला गया तो आपकी देखरेख कौन करेगा? कुछ समय पश्चात् गुरु जी ने फिर कहा कि बरसात होने की संभावना है, जाओ छत के ऊपर चढ़कर देख लो सब कुछ ठीक तो है। इस पर शिष्य ने फटाक से उत्तर दिया कि यह तो घोर अपराध होगा, मैं ऊपर छत पर चढूँ और आप नीचे रहें, मैं पापी कहलाऊँगा।
 सायंकाल गुरु जी ने उसी शिष्य को अपने पास बुलाकर कहा कि बेटा जाओ खाना खा लो। शिष्य ने विनम्र भाव से हाथ जोड़कर कहा कि गुरु जी आपने सुबह से तीन काम बताये, वह मैंने नहीं किये, यदि चैथा काम भी नहीं किया तो आप नाराज़ हो जायेंगे। यह काम मैं जल्दी ही कर लेता हँू। आजकल अधिकतर ऐसे ही कामचोर शिष्य मिलते हैं, जो अपनी बातों से गुरुजनों को भी समझाने का प्रयास करते हैं। और यह सोचते हैं कि मैंने अच्छा गुरु जी को मूर्ख बनाया। शायद वे यह नहीं जानते कि गुरु से किसी के मन का भाव छिपा हुआ नहीं है। ऐसा कर वे औरों को नहीं, बल्कि अपने आपको धोखा दे रहे हैं। ऐसा करने से वे कभी सच्चे साधक नहीं बन सकते और वे जीवन में भटकाव के अतिरिक्त और कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते।

आलोचना
 एक नवविवाहित जोड़ा नए घर में रहने पहँुचा। उनके घर की मुख्य खिड़की में शीशे लगे हुए थे, जिससे दूसरे घर की छत दिखाई देती थी। अगली सुबह पत्नी ने पति से कहा, देखो, सामने वाली छत पर कितने मैले कपड़े फैलाए हुए है लगता है उन्हें कपड़े साफ करना भी नहीं आता। पति ने उसकी बात अनसुनी कर दी। कुछ दिन बाद पत्नी ने फिर यही बात कही। पति ने इस बार भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। जब भी पत्नी सामने की छत पर कपड़े फैले देखती, वह सामने वालों को कोसने लगती।
           कुछ दिनों बाद वे दोनों खिड़की के पास बैठे नाश्ता कर रहे थे। पत्नी की नज़र हमेशा की तरह सामने वाली छत पर गई और वह चहक उठी, ‘अरे, आज सूरज पश्चिम से उग आया है क्या? लगता है आज किसी और ने कपड़े धोए हैं। कितने साफ कपड़े धोए हैं।पति बोला, ‘उनके कपड़े जैसे पहले धुलते थे, वैसे ही धुले हैं। दरअसल, हमारी खिड़की का शीशा ही गंदा था, जिसे आज सुबह उठकर मैंनें साफ कर दिया।




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