वैद्यकीय जगत में ‘अर्जुन छाल चूर्ण’ अति प्रशंसनीय
रहा है। पित्त से होने वाले रक्त स्त्राव रोगों की रामबाण औषधि होने के साथ-साथ
हृदय में होता हुआ अंजाइना (शूल) कोरोनरी, इन्सफीसीयसी, आर्टीरीओस्केलोरोसीस, वात प्रकोप से होता हुआ कोरोनरी ब्रान्यमां स्पाक्षम,
हृदय को कम रक्त मिलने से होता हुआ शूल और हृदय की मांस
पेशियों को सुदृढ़ करने के लिए ‘अर्जुन छाल चूर्ण’ अत्यन्त उपयोगी है। हृदय रोग के अलावा अन्य रोगों में भी
उपयोगी है।
सेवन विधि - आधा
गिलास दूध और आधा गिलास पानी लेकर उसमें आधा चम्मच पाउडर डालकर उबाल लें। जब यह
आधा रह जाए तो छानकर रख लें। गुनगुना रह जाने पर एक छोटा चम्मच शहद अथवा मीठा
मिलाकर पी लें। इसे खाली पेट लें और एक घंटे तक कुछ न खाएं।
कुछ प्रयोग-रोगों
परः 1. ‘अर्जुन छाल चूर्ण
’ बड़ी हरड़ें, रासना, कचुरो, पीपर, सौंठ, पुष्कर मूल सभी
सम भाग में यमात्रा मेंद्ध लेकर बारीक चूर्ण करें। इसमें मृगश्रृंग और जवाहर
मोहरापिष्टी 1/2 मात्रा में
मिक्स करें। ये चूर्ण 1 से 2 भाग मधु या
अच्छी प्रकार के च्यवनप्राश के साथ सुवह शाम लेना चाहिए।
हृदयशाूल, अनजाईनल पेन, कोरोनरी
इन्सफीयन्सी, रक्तनालिका
ब्लाॅकेज बगैरा में अच्छा परिणाम दिखता है।
(जिनको मधुमेह हो, वे मधु या
च्यवनप्राश का उपयोग न करें)
2. अस्थिभंग (फ्रेक्चर) में ‘अर्जुन छाल चूर्ण’ दूध के साथ सुवह
शाम नियमित लेने से हड्डी जल्द ठीक होती है।
3. खांसी में ‘अर्जुन छाल चूर्ण’ और अडुसा का
चूर्ण मिलाकर मधु के साथ सुवह शाम लेना चाहिए।
4. वृद्धावस्था में
हृदयरोग होना का डर लगता हो तो अर्जुन छाल चूर्ण गाय के घी के साथ मिलाकर सुवह शाम
लेना चाहिए।
Since human studies in Western countries with arjuna
herb are quite limited, we don't have a good idea how long arjuna should be
taken without a break. To be on the safe side, it would be a good idea to be
off arjuna one or two days a week, and one week per month.
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