आदि काल से भारत ऋषि, मुनियों, योगियों, तपस्वियों का देश रहा है, जिनकी महानता, चमत्कारों व शक्ति के आगे पूरा विश्व
नतमस्तक रहा है। कहते हैं जर्मन देश शर्मन नामक ऋषि ने बसाया था व देनमार्क का
पहला नाम धेनुमार्ग था। धेनु अर्थात वह मार्ग जहाँ गाँय बड़ी संख्या में मिलती है।
आज भी देनमार्क का डेरी उद्योग प्रसिद्ध है यह भी आश्चर्य का विषय है कि अब से 150 वर्ष पूर्व जब भारत बड़ी दयनीय स्थिति
से गुजर रहा था तो बड़ी संख्या में महापुरुष व योगी पुरुष इस भारत भूमि को बचाने
के लिए अवतरित हुए। 300 वर्ष की आयु तक जीवित रहने वाले
वाराणसी के महायोगी तैंलग स्वामी जो हमेशा नगन रहते थे व जिनको छूने का साहस कोई
भी अंग्रेज नहीं कर सकता था जिनके बनारस ूंसापदह ेीपअ व िांेी कहता था। इसी प्रकर ‘स्वामी विशुद्धानन्द परमहंस’ जिनके चमत्कारो से पाल ब्रिंटेन जैसे
अंग्रेज पत्रकार बड़े प्रभावित थे वे सूर्य की शक्ति से धातु परिवर्तन करने में
समर्थ थे उनके भारत की जनता ‘कवि
कमली वाले बाबा’ के नाम से जानती है। मद्रास हाई कार्ट
के जज सर जान वुडरफ ऐसे ही एक तान्त्रिक योगी ‘श्विचन्द्र’ से बड़े प्रभावित थे। जब ब्रिटिश
पार्लियामेन्ट में प्रश्न उठा ष्।तम प्दकपंदे नदबपअपसप्रमकघ्ष् तो वुडरफ क्रोधित हो उठे ओर उन्होंने इसको अपने
गुरु का अपमान समझा व तुरन्त त्याग पत्र दे दिया व पेट कोट फेंककर धोती कुर्ता
धारण कर सीधा शिवचन्द्र जी के आश्रम में पहुँचे व तन्त्र साधनाओं का अभ्यास किया।
उन्होंने एक दिन शिवचन्द्र जी से कहा कि वो उनकी जीवनी लिखना चाहते हैं तो योगी जी
ने स्पष्ट मना कर दिया व कहा कि यदि वह कुछ करना चाहते है तो तन्त्र साहित्य का
अग्रेंजी भाषा में लेखन करें जिससे पुनः तन्त्र का लाभ पूरी व दुनिया उठाए।
अभी हाल ही में जब मोदी जी यू.एस.ए गये
तो वहाँ बड़े चतवमिेेपवदंसे की एक वार्ता के सम्बोधित करते हुए भारत की सहायता की
ंचचमंस थी। उस पर ंिबमइववा के विनदकमत मार्क जुकरबर्ग हंस कर बोले ‘जो देश सबकी सहायता करता है उसके
सहायता की क्या आवश्यकताघ्’
विस्तार से पूछने पर बताया कि जब उसकी
ंिबमइववा नहीं चल रही थी तो वो भारत के आश्रम में आकर माथा टेके तब वो उस कठिनाई
के दोह से मुक्त हुए।
सुझाव इन्हें ंचचसम के विनदकमत स्टीव
जाब्स ने दिया था जिनके ऊपर भारत के एक सिह पुरुष ‘नीम करौती के बाबा’ की
बड़ी कृपा रही है। एक अमेरिकी डाक्टर इनके आश्रम में साधना करते थे तो इन्होंने
उनसे गुरु दक्षिणा में माँगा कि भारत के बच्चे पोलियों, चेचक जैसी घातक रोगों से सुरक्षित
रहें। इन डाक्टर ‘लेरी ब्रिलियन्ट’ ने भारत में टीकाकरण के सफल बनाने के
लिए ॅभ्व् के साथ मिलकर बड़े अदभुत प्रयास किए। आज जो पोलियो उन्मूलन भारत में
सफलतापूर्वक हुआ है उसका श्रोय इन्हीं को जाता है।
इस प्रकार भारत की धरती पर इतनी महान
विभूतियाँ जन्म लेती रही परन्तु हम विशेषकर नई पीढ़ी इनके चरित्र से अनभिज्ञ है।
इनके व्यक्तित्वों के ऊपर सस्ती व सरल भाषा में पुस्तकें समाज के उपलब्ध होनी
चाहिए। कुछ महायोगी बहुत उच्च स्तर के हुए परन्तु उन्होंने शिष्य व आश्रम परम्परा
नहीं चलायी जैसे तैंलग स्वामी। इस प्रकार के महायोगियों पर लिखना आवश्यक है। इस
हेतु ‘योगी चरितामृत’ की एक श्रृंखला प्रारम्भ की जा रही है
जिसके अन्तर्गत 10 पाकेट वुकस (10रू प्रति) निकाली जा रही है। गीता, रामायण की तरह इन पुस्तकों की घर-घर
में स्थापना का अभियान चलना चाहिए जिससे हम अपनी संस्कृति अपने राष्ट्र की गौरव
गरिमा से परिचित हो सकें व अपना व नयी पीढ़ी का जीवन श्रेष्ठ बना सकें।
योगी चरितामृत की पुस्तकें
1. नीम करौती के बाबा (भाग-1)
2. पुराणपुरुष लाहिडी महाशय (भाग-2)
3. तैंलग स्वामी (भाग-3)
4. स्वामी विशुद्धानन्द परमहंस (भाग-4)
5. महर्षि अरविन्द (भाग-5)
6. महर्षि रमण (भाग-6)
7. युग ऋषि श्री राम आचार्य (भाग-7)
8. श्री रामकृष्ण परमहंस (भाग-8)
9. आचार्य शंकर की दिग्विजय यात्रा (भाग-9)
10. देवरहा बाबा (भाग-10)
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