Sunday, February 21, 2016

समर्पण व निश्चित जीवन


            व्यक्ति इस दुनिया को अपनी मरजी से चलाना चाहता है। यह सम्भव नहीं है इसके विपरीत परिस्थितियों के अनुसार हमें अपनी मरजी को बदलना होता है। इसी का नाम समर्पण है। संघर्ष एक सीमा तक ही सम्भव है। मात्र योग में सिद्ध हो जाने पर ही व्यक्ति भाग्य एवं प्रकृति पर नियन्त्रण कर सकता है। जो भैतिकवादी होता है वह सारी जिन्दगी यही शिकायत करता पाया जाता है कि उसकी इच्छाएँ पूरी न हो सकी। अध्यात्मवादी भगवान की इच्छा को स्वीकार कर उसमें सन्तुष्ट होकर प्रसन्न जीवन जीता है।
            एक उदाहरण के द्वारा समर्पण की पराकाष्ठा को समझाया जा रहा है। एक सन्त दम्पत्ति थे उनके दो बेटे थे। सन्त कथा करके परिवार का भरण पोषाण करते थे। एक बार सन्त कथा करने गए थे। पीछे सन्ध्या समय उनके दो छोटे बालक कहीं खेलने गए। अचानक एक दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गयी। सन्त लौटकर घर आए। उनकी पत्नी ने सन्त के एकदम बताना उचित नहीं समझा। पहले योजना परीक्षण व फिर उनसे बात करने लगी- ‘‘पडोसन कुछ गहने उधार ले गयी थी अब वापिस नहीं दे रही है।’’ सन्त बोले यह तो गलत बात है जिससे जो लिया है उसे वापिस अवश्य करना चाहिए। अब वह महिला बोली कि भगवान ने हमें दो फूल दिए थे वो वापिस ले लिए। भोजन पूर्ण हो चुका था सन्त पूछने लगे कौन से फूलस्त्री ने कक्ष की ओर ईशारा करके कहा कि उधर जाकर देखो आपके पुत्रों के भगवान ने वापिस ले लिया है उनकी दुर्घटना में मृत्यु हो चुकी है। सन्त अपनी स्त्री के धैर्य व समर्पण को देख बड़े ही आश्चर्यचकित हुए।
            जो लोग प्रभु के समर्पित होते हैं उनके जीवन में निश्चिन्तता होती है कहते है भगवान बुद्ध रात में जिस करवट सोते थे उसी करवट से उठते थे अर्थात् पूर्ण सुख से निश्चिन्त एक करवट सोते थे। जबकि आज के व्यक्ति की नींद उड चुकी है। वह रात भर करवटे बदलता रहता है। चिन्ताओं के भार से आदमी दबाता जा रहा है। चिन्ता आदमी के जिस तरह दुख देती हैहैरान करती है उसकी तुलना यमदूतों से की जा सकती है। महात्मा गाँधी का जीवन इतनी भागदौड़ से भरा होने पर भी पूर्ण निश्चिन्त था एक बार वाडसराय ने गाँधी जी मिलने के लिए बुलाया। गाँधी जी मिलने के लिए गए। वाडसराय ने सन्देश भेजा कि आधा घण्टा बाद मिलेंगें तब तक आप बैठें। गाँधी जी ने सोचा कि रात भर का जागा हँू थोड़ा सो लेता हँू। झट से उन्होंने चादर सोफे पर बिछायी ओर वहीं सो गए। जब वायसराय उनसे मिलने आए तो उठकर बैठ गए। वाडसराय यह देखकर दंग रह गए कि गाँधी जी को इतना शीद्य्र ओर इतनी अच्छी नींद आती है।
            मानव की मौलिक आवश्कता का प्रबन्ध भगवान ने कितने अदभुत ढंग से किया है माँ की छाती में दूध के दो कटोरे उस समय लगाकर रखे थे जब हम हाथ पाँव चलाने की स्थिति में नही थे ओर कुछ करने पहचानने लायक नहीं थे। भगवान ने मानव के विश्वास दिलाया था कि सके लिए दूध के कटोरे भेजे गएमाता पिता के रूप में रखवाले नौकर भेजे गए। अब तो हाथ पैरबुद्धि सब कुछ है फिर क्यों शिकायत की जाती है मनुष्य को तो बकरी सेभैंसे से भी का भोजन की आवश्यकता है फिर क्यों चिन्त्रित होते है समस्या केवल यही है कि मनुष्य की इच्छाएँ बढ़ती चली जाती है। यदि इनको रोका जाए तो मनुष्य अप्तकाम हो जाता है। तब वह हँसी खुशी कीशंाति कीनिश्चिन्तता का जीवन जी सकता है।
            इसका अर्थ यह नही है कि व्यक्ति आलसी ओर कामचोर हो जाए। तनाव व विश्राम अर्थात् कार्य करना व निश्चिन्त रहना दोनों मनुष्य को सीखना होगा। व्यक्ति जितना परिश्रमी होगा साथ-साथ मेहनत करते हुए चिन्ता रहित होगा उतना ही शरीर व मन से मजबूत होना चला जाएगा। यह स्थिति समर्पण से ही सम्भव है।

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