Wednesday, February 10, 2016

Live as your Biological Clock

1.         प्रातः 3 से 5 बजे- यह ब्रह्म मुहूर्त का समय है। इस समय फेफड़े सर्वाधिक क्रियाशील रहते हैं। ब्रह्म मुहूर्त में थोड़ा-सा गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमना चाहिए। इस समय गहरे-लम्बे श्वास लेने से फेफड़ों की कार्यक्षमता खूब विकसित होती है। उन्हें शुद्ध वायु (आॅक्सीजन) विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिवान होता है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाले लोग बुद्धिमान व उत्साही होते है और सोते रहने वालों का जीवन निस्तेज हो जाता है।
2.         प्रातः 5 से 7 बजे- इस समय बड़ी आँत क्रियाशील होती है। जो व्यक्ति इस समय भी सोते रहते हैं या मल-विसर्जन नहीं करते, उनकी आँतें मल में से त्याज्य द्रवांश का शोषण कर मल को सुखा देती हैं। इससे कब्ज तथा कई अन्य रोग उत्पन्न हो जाते हैं। अतः प्रातः जागरण से लेकर सुबह 7 बजे के बीच मल त्याग कर लेना चाहिए।
3.         सुबह 7 से 9 बजे व 9 से 11 बजे- 7 से 9 बजे तक आमाशय क्रियाशील होता है। उसके बाद 9 से 11 बजे तक अग्नाशय व प्लीहा सक्रिय रहते हैं। इस समय पाचक रस अधिक बनते हैं। अतः करीब 9 से 11 बजे का समय भोजन के लिए उपयुक्त है। भोजन से पहले रं-रं-रं बीज मंत्र का जप करने से जठराग्नि और भी प्रदीप्त होती है। भोजन के बीच-बीच में गुनगुना पानी थोड़ी मात्रा में घूँट-घूँट करके पिया जा सकता है।
इस समय अल्पकालिक स्मृति सर्वोच्च स्थिति में होती है तथा एकाग्रता व विचारश्क्ति उत्तम होती है। अतः तीव्र क्रियाशीलता का समय है। इसमें दिन के महत्वपूर्ण कार्यों को प्रधानता देनी चाहिये।
4.         दोपहर 11 से 1 बजे तक- इस समय ऊर्जा का प्रवाह हृदय में विशेष होता है। करुणा, दया, प्रेम आदि हृदय की संवेदनाओं को विकसित एवं पोषित करने के लिए दोपहर 12 बजे के आसपास मध्यान्ह संध्या का विधान हमारी संस्कृति में है।
5.         दोपहर 1 बजे से 3 बजे तक- इस समय छोटी आँत विशेष सक्रिय रहती है। इसका कार्य आहार से मिले पोषक तत्वों का अवशोषण व व्यर्थ पदार्थों को बड़ी आँत की ओर ढकेलना है। लगभग इस समय अर्थात् भोजन के करीब 2 घटें बाद प्यास के अनुसार पानी पीना चाहिए, जिससे त्याज्य पदार्थों को आगे बड़ी आँतों की तरफ भेजने में छोटी आँत को सहायता मिल सके।
इस समय भोजन करने अथवा सोने से पोषक आहार-रस के शोषण में अवरोध उत्पन्न होता है।
6.         दोपहर 3 से 5 बजे- यह मूत्राशय की विशेष सक्रियता का काल है। मूत्र का संग्रहण करना यह मूत्राशय का कार्य है। 2-4 घंटे पहले पिये गए पानी से इस समय मूत्र त्याग की इच्छा होगी।
7.         शाम 5 बजे से 7 बजे तक- इस समय जीवनी शक्ति गुर्दों की ओर विशेष रूप से प्रवाहित होने लगती है। सुबह लिये गये भोजन की पाचन-क्रिया पूर्ण हो जाती है। अतः इस काल में हल्का भोजन कर लेना चाहिये। शाम को सूर्योस्त से 40 मिनट पहले भोजन कर लेना उत्तम रहेगा। सूर्योस्त के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक (संध्याकाल में) भोजन न करें। संध्याकालों में भोजन नहीं करना चाहिए। रात्रि में बहुत देर से भोजन वर्जित है। देर रात किया गया भोजन रोगों को लाता है। सुबह भोजन के 2 घंटे पहले, शाम को भोजन के 3 घंटे बाद दूध पी सकते हैं।
8.         रात्रि 7 से 9 बजे- इस समय मस्तिष्क विशेष सक्रिय रहता है। अतः प्रातःकाल के अलावा इस समय में पढ़ा हुआ पाठ जल्दी याद रह जाता है। आधुनिक खोज से भी इसकी पुष्टि हुई है। शाम को शयन से पूर्व स्वाध्याय अपनी संस्कृति का अभिन्न अंग है।
9.         रात्रि 9 से 11 बजे- इस समय जीवनी-शक्ति रीढ़ की हड्डी में स्थित मेरु रज्जु ;ैचपदंस बवतकद्ध में विशेष रूप से केन्द्रित होती है। इस समय पीठ के बल या बायीं करवट लेकर विश्राम करने से ैचपदंस बवतक को प्राप्त शक्ति ग्रहण करने में मदद मिलती है। इस समय की नींद सर्वाधिक विश्रांति प्रदान करती है और इस समय का जागरण शरीर और बुद्धि को थका देता है।
रात्रि 9 बजे के बाद पाचन-संस्थान के अवयव विश्रांति प्राप्त करते हैं। अतः यदि इस समय भोजन किया जाए तो वह सुबह तक जठर में पड़ा रहता है। पचता नहीं है और उसके सड़ने से हानिकारक द्रव्य पैदा होते है, जो अम्ल ;।बपवेफद्ध के साथ आँतों में जाने से रोग उत्पन्न करते हैं। इसलिए इस समय भोजन करना खतरनाक है।
10.       रात्रि 11 से 1 बजे तक- इस समय जीवनी-शक्ति पित्ताशय में सक्रिय होती है। पित्त का संग्रहण पित्ताशय का मुख्य कार्य है। इस समय का जागरण पित्त को प्रकुपित कर अनिद्रा, सिरदर्द आदि पित्त विकार तथा नेत्र रोगों को उत्पन्न करता है।
रात्रि को 12 बजे के बाद दिन में किये गये भोजन द्वारा शरीर के क्षतिग्रस्त कोशों के बदले में नये कोशों का निर्माण होता है। इस समय जागते रहोगे तो बुढ़ापा जल्दी आयेगा।
11.       रात्रि 1 से 3 बजे- इस समय जीवनी शक्ति यकृत ;स्पअमतद्ध में कार्यरत होती है। अन्न का सूक्ष्म पाचन करना स्पअमत का कार्य है। इस समय शरीर को गहरी नींद की जरूरत होती है। इसकी पूर्ति न होने पर पाचन-तंत्र बिगड़ता है।
इस समय जागते रहे तो शरीर नींद के वशीभूत होने लगता है, दृष्टि मंद होती है और शरीर की प्रतिक्रियाएँ मंद होती हैं। अतः इस समय सड़क दुर्घटनाएँ अधिक होती हैं।
आजकल पाये जाने वाले अधिकांश रोगों का कारण अस्त-व्यस्त दिनचर्या व विपरीत आहार ही है। हम अपनी दिनचर्या शरीर की जैविक घड़ी के अनुरूप बनाये रखें तो शरीर के विभिन्न अंगों की सक्रियता का हमें अनायास ही लाभ मिलेगा। इस प्रकार थोड़ी-सी सजगता हमें स्वस्थ जीवन की प्राप्ति करा देगी।
निम्न बातों का भी विशेष ध्यान रखें-
1.         ऋषियों व आयुर्वेदाचार्यों ने बिना भूख लगे भोजन करना वर्जित बताया है। अतः प्रातः एवं शाम के भोजन की मात्रा ऐसी रखें, जिससे ऊपर बताये समय में खुलकर भूख लगे।
2.         सुबह व शाम के भोजन के बीच बार-बार कुछ खाते रहने से मोटापा, मधुमेह उच्च रक्तचाप, हृदय रोग जैसी बीमारियों और मानसिक तनाव व अवसाद ;उमदजंस ेजतमेे ंदक कमचतमेेपवदद्ध आदि का खतरा बढ़ता है।
3.         जमीन पर कुछ बिछाकर सुखासन में बैठकर ही भोजन करें। इस आसन में मूलाधार चक्र, सक्रिय होने से जठराग्नि प्रदीप्त रहती है। कुर्सी पर बैठकर भोजन करने से पाचन-शक्ति कमजोर तथा खड़े होकर भोजन करने से तो पाचन बिल्कुल बीमारी के रूप में बदल जाता है। इसलिए बुफे डिनर से बचना चाहिए।
4.         भोजन से पूर्व प्रार्थना करें, मन्त्र बोलें या गीता के पन्द्रहवें अध्याय का पाठ करें। इससे भोजन भगवत्प्रसाद बन जाता है मन्त्र है-
‘‘हरिर्दाता हरिर्भोक्ता हरिरन्न प्रजापतिः।
हरिः सर्वशरीरस्थो भुक्ते भोजयते हरिः।।’’
5.         भोजन के तुरन्त बाद पानी न पियें, अन्यथा जठराग्नि मंद पड़ जाती है और पाचन ठीक से नहीं हो पाता। अतः दो या डेढ़ घंटे बाद ही पानी पियें। फ्रिज का ठंडा पानी कभी न पियें क्योंकि मधुमेह का एक कारण यह भी होता है।
6.         पानी हमेशा बैठकर या घूँट-घूँट करके मुँह में घुमा-घुमा के पियें। इससे अधिक मात्रा में लार पेट में जाती है, जो पेट के अम्ल के साथ संतुलन बनाकर दर्द, चक्कर आना, सुबह का सिरदर्द आदि तकलीफें दूर करती है।
7.         भोजन के बाद 10 मिनट वज्रासन में अवश्य बैठें। इससे भोजन जल्दी पचता है।
8.         पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का लाभ लेने हेतु सिर पूर्व या दक्षिण दिशा में करके ही सोयें अन्यथा अनिद्रा जैसी तकलीफें होती हंै।
9.         शरीर की जैविक घड़ी को ठीक ढंग से चलाने हेतु रात्रि को बत्ती बन्द करके सोयें।
            इस सन्दर्भ में हुए शोध चैंकाने वाले हैं। नार्थ कैरोलिना यूनिवर्सिटी के प्रो. डाॅ. अजीज के अनुसार देर रात तक कार्य या अध्ययन करने से और बत्ती चालू रख कर सोने से जैविक घड़ी निष्क्रिय होकर स्वास्थ्य संबंधी भयंकर हानियाँ होती हैं। अँधेरे में सोने से यह जैविक घड़ी सही ढंग से चलती है। 
            अन्त में आप सभी से अनुरोध है कि अपनी दिनचर्या को Biological Clock के अनुसार रखेंगे तो हमारा जीवन सुखी एवं आनन्दित रहेगा।
           

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