युग निर्माण योजना की यदि आज के सदन्र्भ में समीक्षा करें तो वरिष्ठो का यह दायित्व है कि वो अपने अनुजो को दौडने के लिए प्रेरित करें। केवल इतने भूल से ही काम नहीं चलने वाला है यह भी देखें कि उनके रास्ते मं कांटे कौन बिछा रहा है व इनक ाँटो के साफ कैसे किया जाय जिसमें युग निर्माण के सैनिक बिना घायल हो निर्विघ्न आगे बढ़ते रहे। आज आसुरी शक्तियों ने कुछ इस प्रकार का मायाजाल बिछाया है कि स्थिति इस प्रकार उलझी है कि बहुत से लोग युग निर्माण की बात तो कर रहे है। परन्तु न तो स्वयं इस दिशा में आगे बढ़ पा रहें है न ईष्र्या व अंहकार वंश दूसरों को आगे बढ़ने दे रहे है। इस विडम्बना के कारण हमारी सेना भीतर ही भीतर आपसी कलह में फंस रही है। यदि यह कठिनाई दूर हो जाय तो तुरन्त ब्रहम तेज व क्षात्र तेज का सूर्य उदय होने लगेगा। जिस दिन 24,000 तेजस्वी लोग संगठित हो जाएँग आन्दोलनो व अभियानों के गति मिलना प्रारम्भ हो जायगी।
इतिहास साक्षी है भारत कभी इतना दुर्बल नहीं रहा कि विदेशी आक्रान्ताओं का सामना न कर पाएँ। जब भीतर के ही गददारों ने समस्याएँ खड़ी की तभी विदेशी यहाँ शासन करने में समर्थ हो पाए। आज भी युग निर्माण मिशन के पास एक से बढि़या एक नायक उपलब्ध है परन्तु वो सफल क्यों नहीं हो पा रहे हैं यह बड़ी ही गम्भीर परिस्थिति है। यदि हम भीतर घुसे हुए आसुरी गुलामों के पहचान कर सफाया कर दें तो तुरन्त ही हमें सफलता मिलनी प्रारम्भ हो जाएगी। आज भलें ही इन बातों का कोई महत्व समझे न समझे इनकी उपयोगिता माने न माने परन्तु भविष्य में जब युग निर्माण की समीक्षा होगी तो इनका मूल्य समझ आएगा। ठीक है आज भले ही कोई तन्त्र इन पुस्तके का सम्मान करे न करे, आज भले ही स्वार्थी न महत्वकाँक्षी इनको बाहर भीतर की श्रेणी में रखे परन्तु भविष्य में इनकी महत्ता को स्वीकार किया जाएगा इनको अवश्य पूजा जाएगा भविष्य की प्रबुद्ध युवा शक्ति जब युग निर्माण की समीक्षा करेगी तो दूध का दूध व पानी का पानी हो जाएगा। महाकाल की चाह, महाकाल का सकंल्प अधूरा कैसे रह सकता है। विश्व में कोई इतना शक्तिशाली नही कि श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र के आगे बढ़ने से रोक सके।
पाण्डवो की तरह सेना चाहे छोटी हो परन्तु हो व्यवस्थित। इतना प्रेम हो कि युधिष्ठिर की इतनी बड़ी गलती को भी स्वीकार कर लिया, अग्रेजों के सम्मान का इतना बड़ा उदाहरण दूसरा नही हैं। युग निर्माण के लिए जिन्होंने अपना जीवन समर्पित किया हो उन लोगों के एकत्रित किया जाए, मन से भय व सकांेच के निकाला जाप व अभियान के गतिमान किया जाए। यदि आपस में विश्वास की कमी होगी, एक दूसरे से टकराहट होगी, कडवाहट होगी, गोष्ठियों में बैठकर एक दूसरे का मजाक बनाया जाएगा तो मात्र भवन निर्माण ही हो पाएगा।
अब हमें भावनात्मक निर्माण की ओर द्रुत गति से आगे बढ़ना है इसके लिए धीर गम्भीर सुलझे हुए व्यक्तित्व चाहिए। एक बार घर में सेब आए सभी ने एक-एक लिया। अन्त में दो सेब बचे व माँ व बेटी दोनों के एक-एक लेना था। माँ ने बेटी से कहा तुम अपना चुन लो तो बेटी ने झट से दोनों सेब उठा लिए व दोनों के मुँह भरा। इस पर माँ आग बूबला होकर बेटी के उल्टा सीधा बोलने लगी कि वह बहुत स्वार्थी है माँ का सेब भी खा रही है। जब माँ थोड़ा शान्त हुयी तो बेटी ने माँ की ओर एक सेब बढ़ाते हुए कहा कि यह सेब लो यह अधिक मीठा है। माँ की नेत्रों में आँसू छलक आए व मुझ दूर हो गया।
अधिकांश समस्याएँ इन्हीं भ्रमों के कारण ही उत्पन्न होती है विश्वास व साहस दोनों के साथ-साथ बढ़ाने की आवश्यकता आज युग निर्माण मिशन महसूस कर रहा है। यही तो किसी भी संगठन का प्राण है, अन्यथा लोग चाहे जितने भी बढ़ जाएँ बिना प्राण के रहेंगे तो मुर्दा ही अर्थात् किसी काम के नहीं होगे। कहते है सम्राट अशोक ने चार स्तम्भों का निर्माण कराया था ये प्रतीक थे- ‘साहस, विश्वास, सहनशीलता व शक्ति’। कितना अद्भुत था यह जब विश्वास बढ़ेगा तभी साहस बढ़ेगा और जब सहनशीलता आएगी तभी जीवन में शक्ति का अवतरण होगा। यदि सहनशीलता नहीं होगी तो शक्ति का अपव्यय होगा। मात्र तितिक्षा अथवा सहनशीलता के द्वारा ही शक्ति का समन्वय सम्भव है। अनेक गायत्री साधक अपने जीवन में शक्ति का अनुभव करते है परन्तु ऐसा कोई बिरला ही होगा जो उस शक्ति के सुरक्षित सम्भल कर रखते में सफल हुआ होगा। क्योंकि शक्ति क साथ अंह का उदय भी होता है यही से साधक के समर्पण की परीक्षा प्रारम्भ होती है जिन तिलों में तैल नहीं उनका क्या करना? जिसको शक्ति की अनुभूति नहीं हुयी उसका समर्पण करेगा? छोटी-छोटी बातों में शक्ति को अपव्यय के रोककर उसको किसी महान प्रयोजन के निर्मित प्रयोग करने की क्षमता जो रख सकेगा वही युग निर्माण योजना का नायक कहलाएगा।
देवसत्ताओं का प्रयोग चल रहा है। मात्र 3 वर्ष के भीतर व्यक्ति का आध्यात्मिक रूपान्तरण कैसे हो सकता है यह प्रयोग लगभग सफलता के कगार पर आ पहुँचा है। बुद्ध प्रक्रिया के अन्तर्गत उच्च स्तर पर यह प्रयोग सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ था। अब पुनः महावतार प्रक्रिया के द्वारा इसका शुभरम्भ होने जा रहा है। परन्तु इसके लिए माध्यम तो मानव के ही बनाना होता है। क्या बिना बुद्ध के सूक्ष्म से या प्रयोग सम्भव था? नहीं स्थूल आधार प्रत्येक प्रयोग के लिए चाहिए। श्री अरविन्द 30 वर्ष में व्यक्ति के आध्यात्मिक रूपान्तरण की बात करते थे परन्तु अब महाकाल का नृत्य बहुत तीव्र हो चुक है व 3 वर्ष के अन्दर ैचपतपजनंस ज्तंदेवितउंजपवद सम्भव होने जा रहा है।
बुद्ध उसके कहते हैं जिसके बोध हो चुक हो, यह बोध िकइस जीवन के कैसे मंगलमय भगवान क महादर्शन के लिए समर्पित करना है। महाकाल का बोधि वृक्ष 24 स्थानों पर अपनी जडे जमा रहा है जिसका प्रतिफल आने वाले समय में पूरा विश्व देखेगा। जितना तेजी से इस विश्व को मेगवाद भौतिकवाद ने अपने शिकंजे में लिया है उतनी तेजी से इसका आध्यात्मिक रूपान्तरण भी सम्भव होने जा रहा है।
भगवान के इस मंगलमय विधान के लिए हमें अपने भवके द्वारा खुले रखने होंगे। किसी भी प्रकार की सकींर्णता से हटकर उस परमब्रह्म के विधान के स्वीकार करना होगा। ज्योतिपुंज से आ रहे प्रकाश के ग्रहण करना होगा। इन पक्तियों के लिखना कितना रोमांचकारी है व इस प्रक्रिया के अन्तर्गत जिनका चयन होगा उनका जीवन कितना दिव्य होगा, अद्भुत होगा। आइए उस प्रभु से प्रार्थना करें कि हमारे जीवन में भी उस प्रक्रिया का शुभरम्भ हो व हम युग निर्माण के नायक के रूप में उभरकर देश माता की सेवा कर पाएँ।
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