Sunday, February 21, 2016

Transformation of freedom fighters

क्रान्तिवीर चन्द्रशेखर आजाद

यहाँ परम क्रान्तिवीर चन्द्रशेखर आजाद के बचपन चर्चा प्रासंगिक होगी। यूँ तो वह बचपन से साहसी थे। पर कुछ चीजें उन्हें डरा देती थी। इनमें से एक अँधेरा था और एक दर्द। दस-बारह साल की उम्र में उनके यहाँ एक महात्मा आये। यह महात्मा महावीर हनुमान जी के भक्त थे। हनुमान जी की पूजा करना और रामकथा कहना यही उनका काम था। चन्द्रशेखर के गाँव में भी उनकी रामकथा हो रही थी। रामकथा के मार्मिक अंश बालक चन्द्रशेखर को भावविह्नल कर देते थे। तो कुछ प्रसंगों को सुनकर वह रोमाँचित हो जाता। अपनी भावनाओं के उतार-चढ़ावों के बीच बालक चन्द्रशेखर ने सोचा कि ये महात्मा जी जरूर हमारी समस्या का समाधान कर सकते हैं।
और बस उसने अपनी समस्याएँ महात्मा जी को कह सुनायी। उसने कहा-स्वामी जी! मुझे अँधेरे से डर लगता है। महात्मा जी बोले-क्यों बेटा? तो उन्होंने कहा कि अँधेरे में भूत रहते हैं इसलिए। यह सुनकर महात्मा जी बोले- और भी किसी चीज से डरते हो। बालक ने कहा हाँ महाराज- मुझे मार खाने बहुत डर लगता है। उनकी यह सारी बातें सुनकर महात्मा जी ने उन्हें साँझ के समय झुरमुटे में बुलाया। और अपने पास बिठाकर बातें करते रहे। जब रात थोड़ी गाढ़ी हो चली तो वह उन्हें लेकर गाँव के बाहर श्मशान भूमि की ओर ले चले। जहाँ के भूतों के किस्से गाँव के लोग चटखारे लेकर सुनाते थे।
राह चलते हुए महात्मा जी ने उनसे कहा-जानते हो बेटा-भूत कौन होते हैं? बालक ने कहा नहीं महाराज। तो सुनो, वे स्वामी जी बोले-भूत वे होते है जिनकी अकाल मृत्यु होती है। जो जिन्दगी से डरकर आत्महत्या कर लेते हैं। जो आदमी अपनी जिन्दगी में डरपोक था वह पूरे जीवन कुछ ढंग का काम न कर सका वह भला मरने के बाद तुम्हारा क्या बिगाडे़गा? रही बात मार खाने से डरने की तो शरीर तो वैसे भी एक दिन मरेगा और मन-आत्मा मरने वाले नही है। इन बातों को करते हुए वे महात्मा गाँव के बाहर श्मशन भूमि में आ गये। श्मशान भूमि में कहीं कोई डर का कारण न था। इस अनुभव ने बालक चन्द्रशेखर को परम साहसी बना दिया। हाँ यह जरूर है कि महात्मा जी ने उन्हें रामभक्त हनुमान जी की भक्ति सिखायी। महात्मा जी की इस आध्यात्मिक चिकित्सा ने उन्हें इतना साहसी बना दिया कि अंग्रेज सरकार भी उनसे डरने लगती। उन महात्मा जी का यह भी कहना था कि यदि कोई विशिष्ट आध्यात्मिक प्रयोग करने हों तो किसी तपस्थली का चयन करना चाहिए, क्योंकि ये आध्यात्मिक चिकित्सा के केन्द्र होते हैं।

पं. रामप्रसाद बिस्मिल

एक भटकता हुआ आवारा किशोर महान् क्रान्तिकारी इतिहास पुरुष बन गया। हाँ यह सच्चाई पं. रामप्रसाद बिस्मिल के जीवन की है। ‘सरफरोशी का तममा अब हमारे दिल में है’- का प्रेरक स्वर देने वाले बिस्मिल किशोर वय में कुसंग एवं कुटेव के कुचक्र में फंस गए थे। गलत लोगों के गलत साथ में उनमें अनेको गलत आदतें डाल दी। स्थिति कुछ ऐसी बिगड़ी कि जैसा उनका व्यक्तित्व ही मुरझा गया।
इसी दौर में उनके कुछ शुभ संस्कार जगे, कुछ पुण्य बीज अंकुरित हुए और उनकी मुलाकात एक महापुरुष से हुई। ये महापुरुष संन्यासी थे और नाम था स्वामी सोमदेव। इनकी साधना अलौकिक थी। इनका तप बल प्रबल था। वे पं. रामप्रसाद को देखते ही पहचान गए। उन्होंने अपने परिचित जनों से कहा कि यह किशोर एक विशिष्ट आत्मा है। इसका जन्म भारत माता की सेवा के लिए हुआ है। पर विडम्बना यह है कि इसके उच्चकोटि के संस्कार अभी जाग्रत नहीं हुए। और किसी जन्म के बुरे संस्कारों की जागृति ने इसे भ्रमित कर रखा है। क्या होगा महाराज इसका? इन संन्यासी महात्मा के कुछ शिष्यों ने इनसे पूछा। वे महापुरुष पहले तो मुस्कराए फिर हंस पड़े और बोले- इस बालक की आध्यात्मिक चिकित्सा करनी पड़ेगी। और इसे मैं स्वयं सम्पन्न करूँगा। बस तुम लोग इसे मेरे समीप ले आओ।
ईश्वर प्रेरणा से यह सुयोग बना। पं. रामप्रसाद इन महान् योगी के सम्पर्क में आए। इस पवित्र संसर्ग में पं. रामप्रसाद का जीवन बदलता चला गया। वह यूं ही अचानक एवं अनायास नहीं हो गया। दरअसल उन महान् संन्यासी ने अपनी आध्यात्मिकऊर्जा का प्रयोग करके इनके बुरे संस्कारों वाली परत हटानी शुरू की। एक तरह से वह अदृश्य ढंग से अपनी आध्यात्मिक दृष्टि एवं शक्ति का प्रयोग करते रहे। तो दूसरी ओर दृश्य रूप में उन्होंने रामप्रसाद को गायत्री महामंत्र का उपदेश दिया। उन्हें श्रीमद्भगवद्गीता के पाठ के लिए तैयार किया। दिन मास वर्ष के क्रम में युवक रामप्रसाद में नया निखार आया।
उनकी अन्तर्चेना में पवित्र संस्कार जाग्रत् होने लगे। पवित्र संस्करों ने भावनाओं को पवित्र बनाया, तदानुरूप विचारों का ताना-बाना बुना गया। और एक नये व्यक्तित्व का उदय हुआ। एक भ्रमित-भटके हुए किशोर के अन्तराल में भारत माता के महान् सपूत पं. रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म हुआ। इस नव जन्म ने उनके जीवन में सर्वथा नए रंग भर दिए। यह सब चित्त के संस्कारों की आध्यात्मिक चिकित्सा के बलबूते सम्भव हुआ। जिसने पूर्वजन्म के शुभ संस्कारों को जाग्रत् कर एक नया इतिहास रचा।

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