चोर कौन?
चोर कौन? चोर के कई प्रकार हैं। जो ताला तोड़कर ले जाता है,
वह चोर है। जिसका है, उसे दिए बिना जो खाता है,
वह चोर है। मेहनत कम नफ़ा ज्यादा लेता है, वह
चोर है। माता-पिता की सेवा नहीं करता, वह चोर है। अतिथि को
खिलाये बिना खाता है, वह चोर है। घर अथवा समाज में आए साधु
सन्त को भगाए, वह चोर है। किसी के भी दिल को अनावश्यक दुखाता
है, वह चोर है। अपने
परिवार के उदर-पोषण की जरूरत से ज्यादा प्रभु से मांगता है, वह
चोर है। सोचिए! हम तो इस तरह श्रेणी में नहीं आते। बीना परिश्रम किए खाली बैठे
खाता है, वह चोर है।
मूर्तिपूजा की जरूरत
मित्रो! जो व्यक्ति ऐसा ख्याल करते है
कि भगवान् निराकार है, उसकी मूर्तिपूजा की जरूरत नहीं है, उन लोगों से भी मेरी यह प्रार्थना है
कि व उस शक्तिशाली माध्यम की उपेक्षा नहीं करें। ये मंदिर हिंदु धर्म की श्रद्धा
के केंद्र है। उनको अब दिशा दी जानी चाहिए, नया
मोड़ दिया जाना चाहिए। अब उनका विरोध करने की जरूरत नहीं रही। अब उनका खंडन करने
की जरूरत नहीं रही। किसी जमाने में ऐसा रहा होगा कि लोगों के मनों में मूर्ति पुजा
की बात, जो गहराई तक जम गई थी, उसको कमजोर करने के लिए संभव है, किसी
ने मंदिर को विरोध किया हो कि इसमें मूर्तिपूजा की जरूरत नहीं है। उस आधार पर धन
खर्च करने की जरूरत नहीं है हो सकता है, किसी
जमाने में धर्मसुधारकों ने अपनी बात समय के अनुरूप कही हो, लेकिन मैं अब यह कहता हूँ कि
हिंदुस्तान में गाँव-गाँव में छोटे-छोटे मंदिर बने हुए है। उनको आप उखाड़िएगा क्या? भगवान् राम और भगवान् कृष्ण, जिनको हमारी असंख्य जनता श्रद्धापूर्वक
प्रणाम करती है, क्या आप उनका विरोध करेंगे? निंदा करेगे क्या? नहीं, अब यह गलती नहीं करनी चाहिए।
साथियों! ठीक है, जैसा भी अब तक चला आ रहा है, उसे अब हमें सुधार की दिशा में मोड़
देना चाहिए। यह एक बहुत बड़ा काम है। विरोध करके नई चीज को खड़ा करना कितना मुशिकल
है। एक चीज को गिराया जाए और फिर एक नई इमारत बनाई जाए, इसकी अपेक्षा यह क्या बुरा है कि जा
बनी-बनाई इमारत है, उसको हम ठीक तरिके से इस्तेमाल करना
सिख लें और उसी को काम में लाएँ। मंदिरों को अगर ठीक तरिके से काम में लाया जा
सकता हो और उनमें लगी पूँजी का ठीक तरीके से इस्तेमाल किया जाता रहा हो और इन
दोनों का उपयोग लोकमंगल के लिए किया जाता रहा हो। उनमें ऐसे पुजारियों की, कार्यकर्ताओ की नियुक्ति की जा सकती हो, जो अपना एक-दों घंटे को समय पूजा-पाठ
में लगाने के बाद में बचा हुआ सारा समय समाज को उँचा उठाने में लगाएँ, तो मैं यह विशवास के साथ कह सकता हूँ
कि सरकार और दूसरी संस्थाओं के द्वारा जो लंबे-लंबे प्लान, योजनाएँ बनती है, धन लगाती है, कार्यकर्तो नियुक्त करती है, फिर भी सारी योजनाएँ असफल हो जाती है, उसकी तुलना में यह योजना इतनी बड़ी, इतनी महत्त्वपूर्ण, इतनी मार्मिक और सार्थक है कि हम
राष्ट्र को पुन: उसके शिखर पर पहुँचा सकते
है।
गुरूवर की धरोहर भाग -3
No comments:
Post a Comment