मानव आज कितना चारों ओर भटक रहा है, चक्कर काट रहा है - ठिकाने के लिए, आश्रय के लिए, इलाज के लिए, रोषनी के लिए। यह उसका महादुर्भाग्य है
कि वह आपको व आपकी कृपा को अनुभव नहीं कर पाता व माया के चक्कर में उलझ ठोकरें
खा-खाकर लहुलुहान होता रहता है। कदाचित मानव आपके धर्मदाता रूप् को, कल्याणकर्ता रूप् को, पूर्ण उद्धारकर्ता व सुखदाता रूप को
पहचान सके।
हे परम हित सम्पादक, हे अन्धकार से ज्योति की ओर ले जाने
वाले, हे, असत्य
से सत्य की ओर ले जाने वाले, हे
मृत्यु से अमृत की ओर ले जाने वाले, हे
देवलोक के सूर्य, हे आध्यात्मिक जगत के सिरमौर हे, पूर्ण पुरूश धर्म, हे एकमात्र सत्य और उपास्य हम आपकी “ारण में हैं हमारा उद्धार करिये।
हे दाता! ऐसा बल दो , मै अपना व दूसरों का सदा भला चाहूँ, भला ही सोचूँ व भला ही करूँ। मेरे भाव, मेरी सोच व मेरे कर्म सब शुभ में रंग
जाएं। मुझे क्या अपना शुभ चाहते हुए अथवा किसी दूसरे का शुभ चाहते हूए बहुत प्रयास
न करना पड़े, वह स्वत: होने लगे। यानि शुभ चाहना व
शुभ करना मेरे स्वभाव का हिस्सा बन जाए। ऐसी समर्थ दो!
हे रक्षक! आप महाबली है, मेरी रक्षा कीजिए। प्राय: संसार में
लोग अपने इष्ट से, अपने बाहरी दुश्मनों से रक्षा हेतु
प्रार्थनाशील होते है, किन्तु आपकी कृपा से मैं ऐसा नहीं
चाहता। क्योंकि बाहरी दुश्मनों से कुछ न कुछ रक्षा तो मैं अपने व अपनोंके बाहुबल, धनबल, दिमागी शक्तियों और पुलिस, प्रशासन
व सरकार के दम पर कर ही लूँगा। परन्तु, मेरे
स्वभाव में जो मेरी दुश्मन शक्तियाँ छुपी है,उनसे
बचाने में मेरा शारीरिक बल,
मानसिक शक्तियाँ, मेरे साथी, पुलिस प्रशासन व सरकार सब बेबस है। इन
भीतरी दुश्मनों को तो केवल आपकी ज्योति व शक्ति ही दिखा सकती है व उनसे बचा सकती
है, इसलिए इस ज्योति व शक्ति की मुझे अतिशय
जरूरत है।
हे महादानी! मुझ पर तरस खाओ, मेरी मजबूरी व मेरी अयोग्यता को देखकर
मुझ पर रहम करो, मुझे अपनी जीवन दायिनी ज्योति व शक्ति
का दान दो। मेरे भीतर जो भी कारण इस ज्योति व शक्ति को प्राप्त करने में रूकावट
हों, उन्हें नष्ट करो, ताकि मैं अपने भीतरी शक्तियों व
दुश्मनों से सुरक्षित रह सकूँ। हे भगवान् कृपा करके मेरे जीवन में सच्चे सुख, शांति, चैन, नींद, सेहत का अपहरण करने वाले तथा मेरे आत्मबल को घटाने वाले इन शत्रुओं
को दिखाओ व इनसे बचाओ! मेरी प्रार्थना कबूल करो!
हे देव! ऐसी प्रार्थना भी तो आपकी ही
कृपा से सम्भव है। आपके इस अमूल्य दाने के लिए आपके श्रीचरणों की धूल में अपना
नापाक सिर रखना, मैं अपना महासौभाग्य बोध करता हूँ, आपके साथ अपने संबंध बना पाना, अपना एहोभाग्य बोध करता हूँ और स्ंवय को
राजा महाराजाओं से असख्यों गुणा अमीर बोध करता हूँ। काश, मैं सदा-सदा आपके देव दरबार का भिखारी
बना रह सकूँ और आपकी ज्योति व शक्ति को पाने व योग्य आत्माओं तक उसे पहुँचाने का
अधिकारी बना रह सकूँ। हे शुभकर्ता! आपका भी शुभ हो! मेरा शुभ हो! सबका शुभ हो!
सत्य देव संवाद-दिसम्बर 2012
प्रार्थना
हे सर्वाधार, सर्वान्तर्यामिन परमेश्वर! तुम्हारे
आँचल में अविचल शान्ति तथा आनंद का वास है।तुम्हारी चरण-शरण की शीतल छाया में परम
तृप्ति है,शाश्वत सुख की उपलब्धि है तथा सब
अभिलशित पदार्थों की प्राप्ति है।
हे जगत पिता परमेश्वर! हममें सच्ची
श्रद्धा तथा विश्वास हो। हम तुम्हारी अमृतमयी गोद में बैठने के अधिकारी बनें।
अंत:करण को मलिन बनाने वाली स्वार्थ तथा संकीर्णता की सब क्षुद्र भावनाओं से हम उँचे उठें।काम, क्रोध, लोभ, मोह, र्इष्र्या, द्वेष इत्यादि कुटिल भावनाओं तथा सब
मलिन वासनाओं को हम दूर करें।अपने हृदय की आसुरी प्रवृत्तियों के साथ युद्ध में
विजय पाने के लिए हे प्रभो! हम तुम्हें पुकारते है और तुम्हारा आँचल पकड़ते हैं।
हे परम पावन प्रभो! हम में सात्विक
प्रवृत्तियाँ जागरित हों।क्षमा, सरलता,
स्थिरता, निर्भयता, अहंकार शुन्यता इत्यादि शुभ भावनाएँ
हमारी सम्पत्ति हो,
आत्मा
पवित्र तथा सुंदर हो, तुम्हारे
संस्पर्श से हमारी सारी शक्तियाँ विकसित हो, हृदय दया तथा सहानुभूति से भरा हो। हमारी वाणी में मिठास हो तथा
दृष्टि में प्यार हो। विद्या और ज्ञान से हम परिपूर्ण हों। हमारा व्यक्तित्व महान
तथा विशाल हो।
हे प्रभो! अपने अशीर्वादों की वर्षा
करो। दीनतिदीनों के मध्य में विचरने वाले तुम्हारे चरणारविदों में हमारा जीवन
अर्पित हो। इसे अपनी सेवा में लेकर हमें कृतार्थ करें।
ओमशान्ति!शान्ति!!शान्ति!!!
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