Friday, October 26, 2012

सात्विक कर्मो से रोके अवसाद (depression) का दुष्प्रभाव



Depression आज एक मुख्य बीमारी के रूप में उभर रहा है। भाँति-2 के उपचार इस रोग से मुक्ति के लिए विद्वानों-चिकित्सकों ने सुझाँए है लेखक उन सभी का सम्मान करता है। वो सभी महत्वपूर्ण है इसमें कोई सन्देह नहीं है।
इनमें मुख्यत: आते है-
1 Antidepressant एलोपैथिक दवाँए
2 आयुर्वेदिक दिल-दिमाग के ताकत की दवाँए
3 तनाव रहित हंसती जिन्दगी एवं counseling
4 ध्यान-जप की भक्ति शक्ति
5 आसन-प्राणायाम आदि के प्रयोग
उपरोक्त उपायों के साथ-साथ, दो अन्य उपाय यहाँ पर दिए जा रहे है, उनको यदि अपनाया जाए तो इस रोग से शीघ्र मुक्ति मिल सकती है।
सर्वप्रथम हमें यह जानना जरूरी है कि depression का मूल कारण क्या है? प्रत्येक व्यक्ति के भीतर सतोगुण, रजोगुण व तमोगुण विद्यमान होता है जिसके द्वारा उसके दैनिक क्रियाकलाप व आचरण संचालित होता है।
जब व्यक्ति के भीतर रजोगुण व तमोगुण बढ़ जाता है व सत्वगुण कम हो जाता है तो व्यक्ति के depression में जाने की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है। कई बार आध्यात्म के पथ पर चलनें वाले व्यक्ति भी इसकी चपेट में आ जाते है। इसका कारण होता है कि कई बार व्यक्ति के अवचेतन मन अथवा चित्त में रजोगुण व तमोगुण की परतें पड़ी होती है जो उसके पुरानें जन्मों के संस्कार स्वरूप बनती है इस जन्म में सात्विक सा दिखने वाला व्यक्ति जब कुण्डलिनी शक्ति के प्रभाव में आता है तो सर्वप्रथम यह शक्ति उसके भीतर की गन्दगी सतह पर ला फेंकती है। यह ठीक वैसा ही है जैसे डॉक्टर चीरा लगाकर भीतर की पस को बाहर निकालता है। अन्यथा यह पस उसके लिए भविष्य में खतरनाक सिद्ध हो सकती है। कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होकर व्यक्ति के भोंगों में शीघ्रता लाती है जिससे उसकी इश्वर प्राप्ति सहज हो सकें।
रजोगुण व तमोगुण की प्रधानता व्यक्ति के भीतर एक प्रकार का ऋणात्मक प्रभाव (negative effect) उत्पन्न करती है और व्यक्ति की उर्जा negative direction में बहनें लगती है। इससें व्यक्ति के भीतर हर समय नकारात्मक विचारों का कोहराम मचने लगता है और व्यक्ति बहुत अशांत व खिन्न रहने लगता है।
यदि व्यक्ति के भीतर सतोगुण बढ़ा दिया जाए तो रोगी के नकारात्मक विचारों का घेरा धीरें-धीरें करके कमजोर पड़ता चला जाता है। उसके भीतर शांति व प्रसन्नता झलकने लगती है। सतोगुण की वृद्धि करके ही कोई व्यक्ति स्थायी शांति पा सकता है, परन्तु यह कार्य भी सरल नहीं है। तमोगुणी जड़ता, इन्द्रिय लोलुपता, दूसरे को व्यर्थ मे नुकसान पहुँचाने को भाव से जो घिरा होता है वह सहजता के इन विकारों से मुक्त नहीं हो पाता।
इसी प्रकार रजोगुणी महत्वकाक्षाँए, पद प्रतिष्ठा, लोभ लालच व्यक्ति को अपने शिकंजे में उलझाए रखती है। व्यक्ति को धैर्यपूर्वक सतोगुण का संचय करना पड़ता है सतोगुण की वृद्धि करने के लिए व्यक्ति निम्न कार्य करे।
1. जो दीन दुखी व मुसीबत मे फसें हुए लोग है उनकी यथासम्भव मदद करें। अपने बारे में ज्यादा न सोचें।
2. देश भक्ति, सेवा, परोपकार में रूचि ले परन्तु पदों के दायित्व व प्रसंसा पाने से बचता रहे।
3. क्षमा करना सीखें, पुरानी फाइलें बन्द करें, बदला लेने व दूसरों को नुक्सान पहुँचाने की भावना अपने भीतर न पनपनें दें। जो कुछ मान-अपमान मिल रहा हो अपना प्रारब्ध मानकर अनुतेजित रहें। क्षमा, सहनशीलता व धैर्य का विकास करने का प्रयास करें। Negative Aura को समाप्त करने के लिए एक प्रयोग नीचे दिया जा रहा है-
1. जिस भी देवी-देवता, गुरू अथवा भगवान को मानते है उसके ज्योतिर्मय स्वरूप का ध्यान करें। उगते हुए स्वर्णीय सूर्य अथवा दीपक ज्योति को भी ध्यान किया जा सकता है। उनको अपने आज्ञाचक्र में अथवा सिर के उपर सोचे।
2. यह भावना करें कि परमात्मा की कृपा-प्रकाश हमारे रोम-रोम में समा रहा है। हमारा सूक्ष्म शारीर प्रकाशमान, तेजवान हो रहा है। हमारे रोग-शोक, कषाय-कल्मष, कट रहें है। हम शक्तिमान हो रहे हैं।
3. परमात्मा की विश्व व्याप्त शांति हमारे भीतर स्थापित हो रही है।
4. हम आंनदमय बन रहें है। परमात्मा आंनदमय है, शांतिमय है हम भी आंनद और शांति के स्त्रोत से जुड़कर आनंदमय, शांतिमय बनते जा रहें है। ओउम आंनदमय ओउम शांतिमय ।
यदि स्थिति को नियन्त्र्तित करने के लिए दवाँओ की जरूरत पड़े तो ले सकते है। एकदम से दवा छोड़ना भी समस्या बढ़ा सकता है। खुशनुमा व क्रियाशील व्यक्तियों का सान्निध्य लें, अकेले कम रहें। अपना मनपंसद जीवन जीए। प्रारब्धों की दीवार तोड़कर नया उजाला जीवन में अवष्य आएगा ऐसा विश्वाश दृढ़ करते रहें। व्यस्त रहे, मस्त रहें इस सूत्र पर चलें।
(नोट-इस लेख में सत्-रज- तम गुणों के बारें में चर्चा नहीं की गई है कृपया इसके लिए ‘‘सनातन धर्म का प्रसाद’’ अथवा ब्लॉग पर डाले गए इससे संबंधित अन्य लेख पढ़े।)

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