दो बातों में से आप में से हर आदमी को देखना
चाहिए कि हमारी श्रद्धा कमजोर तो नहीं हुई। एक ओर हमारी लगन कमजोर तो नहीं हुई अर्थात
परिश्रम करने के प्रति जो हमारी उमंग और तरंग होनी चाहिए उसमें कमी तो नहीं आ रही।
व्यक्तिगत जीवन में अपनी श्रद्धा को कायम रखना और अपनी लगन को जीवंत रखना- ये काम तो आपके व्यक्तिगत जीवन के है,
वह आपको करने चाहिए।
नए आदमियों को बुलाने का भी आपका काम है। कैसे बुलाना? हम 250 आदमी का एक कुटुंब बनाकर बैठे हैं और उस कुटुंब
को हम कौन सी रस्सी में बांधे बैठे हुए हैं। प्यार की आत्मीय भावना की रस्सी से बाँधे
हुए हैं। ये रस्सियाँ आपको तैयार करनी चाहिए ताकि आप नए आदमियों को बांध करके अपने
पास रख सकें और जो आदमी वर्तमान में हैं आपके पास उनको मजबूती से जकड़े रह सकें। नहीं
तो आप इनको भी मजबूती से जकड़े नहीं रह सकेंगे। यह भी नहीं रहेंगै। इनकी सफाई भी आपको
करनी है। आत्मीयता अगर न होगी और आपका व्यक्तित्व न होगा तो आपके लिए इनकी सफाई करना
भी मुश्किल हो जायेगा। इसलिए क्या करना चाहिए?
आपके पास एक ऐसी
प्रेम की रस्सी, मिठास की रस्सी होनी चाहिए। आपके पास अपने
व्यक्तिगत जीवन का उदाहरण पेश करने की रस्सी होनी चाहिए जिससे प्रभावित करके आप
आदमी के हाथ-पैर को सारे के सारे को जकड़ करके जिंदगी भर अपने साथ बनाए रख सकें।
यह काम आपको भी विशेषता के रूप में पैदा करना पड़ेगा। संस्थाएँ इसी आधार पर चलती हैं।
संस्थाओं की प्रगति इसी आधार पर टिकी है। संस्थाएँ जो नष्ट हुई हैं, संगठन जो नष्ट हुए हैं इसी कारण नष्ट हुए हैं।
लगन आदमी के अंदर हो तो सौ गुना काम करा लेती
है। इतना काम करा लेती है। इतना काम करा लेती है कि हमारे काम को देखकर आपको आश्चर्य
होगा। इतना साहित्य लिखने से लेकर इतना बड़ा संगठन खड़ा करने तक और इतनी बड़ी क्रांति
करने से लेकर इतने बड़े आश्रम बनाने तक जो काम शुरू किए हैं वे कैसे हो गये?
यह श्रम है श्रम। यह हमारा श्रम है। यदि हमने
श्रम से जी चुराया होता तो उसी तरीके से घटिया आदमी होकर के रह जाते जैसे कि अपना पेट
पालन ही जिसके लिए मुश्किल हो जाता है। चोरी,
ठगी से, चोरी चालाकी से, जहां कहीं से मिलता पेट भरने के लिए, कपड़े पहनने के लिए और अपना मौज-शौक करने के लिए पैसा इकट्ठा करते रहते पर
इतना बड़ा काम संभव न होता।
तो क्या करना चाहिए? मैं वही बताता हूँ। कैसे कहूँ?
आपको देख लीजिए और
हमको पढ़ लीजिए, हमारी श्रद्धा को पढ़ लीजिए। जिस दिन से हमने
साधना के क्षेत्र में, सेवा के क्षेत्र में, अध्यात्म के क्षेत्र में कदम बढ़ाया उस दिन से लेकर आज तक हमारी निष्ठा ज्यों की
त्यों बनी हुई है। इसमें कहीं एक राई रत्ती सुई की नोंक के बराबर फर्क नहीं आएगा। जिस
दिन तक हमारी लाश उठेगी उस दिन तक आप कभी यह नहीं सुनेंगे कि इन्होंने अपनी श्रद्धा
डगमगा दी। इन्होंने अपने विश्वास में कमी कर दी।
आप हमारी वंश परम्परा को जानिए और हम मरने
के बाद जहाँ कहीं भी रहे, हम देखेंगे कि जिन लोगों को हम पीछे छोड़कर
आए थे उन्होंने हमारी परंपरा को निभाया है और अगर हमको यह मालूम पड़ा कि इन्होंने हमारी
परंपरा नहीं निभाई और इन्होंने व्यक्तिगत ताना-बाना बुनना शुरू कर दिया और अपना अहंकार, अपनी व्यक्तिगत यश कामना और व्यक्तिगत धन संग्रह करने का सिलसिला शुरू कर दिया।
व्यक्तिगत रूप से बड़ा आदमी बनना शुरू कर दिया तो हमारी आँखों से आँसू टपकेंगे
और जहाँ कहीं भी हम बैठेंगे वहाँ जो आँसू टपकेंगे आपको चैन से नहीं बैठने
देंगे और मै कुछ कहता नहीं हूँ। आपको हैरान कर देंगे हैरान! आपको भी चैन नहीं मिलेगा।
अगर हमको विश्वास देकर के विश्वासघात करेंगे
तो मेरा शाप है कि आपको चैन नहीं पड़ेगा,
कभी भी और न आपको
यश मिलेगा, न आपको ख्याति मिलेगी, न उन्नति होगी और आपकी जीवात्मा आपको मारकर डाल देगी। आप यह मत करना, अच्छा।
मुझे अपने मन की बात कहनी थी सो मैंने कह दी बस मेरा मन हल्का हो गया। अब आप इन्हें सोचना। मालूम
नहीं आप इन्हें कार्यरूप में लाएँगे या नहीं लाएँगे। यदि लाएँगे तो मुझे बड़ी प्रसन्नता
होगी और मैं समझूँगा कि आज मैंने जी खोलकर आपके सामने जो रखा था आपने उसे ठीक तरीके
से पढ़ा, समझा और जीवन में उतार करके उसी तरह का लाभ
उठाने की संभावना शुरू कर दी जैसे कि मैंने अपने जीवन में की। हमको देखिए और अपने आपको
ठीक करिए।
युग संधि में भयावह वर्तमान को गलाने और उज्ज्वल
भविष्य को ढालने की महान् योजना प्रज्ञा पुरुष ने अपने हाथों मे लिया है। वे उसे पूरा
करने के लिए आवश्यक वातावरण बना रहे हैं और प्रेरणाएँ उभार रहे हैं। किन्तु निराकार
होने के नाते इस पुण्य प्रयोजन का श्रेय एवं उत्तरदायित्व तो उन्हें भी शरीरधारी जागृत
आत्माओं को ही सौंपना पड़ रहा है। यही भूत में भी होता रहा है। हनुमान, अंगद, नल-नील,
जटायु, जामवंत निजी स्तर पर नगण्य-सी सामर्थ्य वाले थे, पर जब वे राम-काज के लिए कटिबद्ध हो गए तो उस संकल्प के
साथ ही उनकी सामर्थ्य में उभार आया और जैसे थे उसकी तुलना में असंख्य गुनी सामर्थ्य
से संपन्न हो गए। मिस्टर गांधी का आरंभिक जीवन तथा महात्मा गांधी का देवोपम वर्चस्
देखकर कोई भी इस निष्कर्ष पर पहुँच सकता है कि राम-काज में निरत होना जहां आरंभिक असमंजसों से
आच्छादित है वहाँ उसके अगले ही चरण इतने शानदार हैं जिनकी तुलना में आरंभिक असमंजस
एवं दुस्साहस के लिए किए गए कष्ट सहन को नगण्य ठहराया जा सके। हर क्षेत्र में महामानवों
में से हर एक का विश्लेषण करते चला जाय तो एक ही निष्कर्ष पर पहुंचना पड़ेगा कि वैयक्तिक
योग्यता, संपन्नता एवं पारिवारिक स्तर की दृष्टि से गए-गुजरे होते हुए भी जब उसने आदर्शवादी साहसिकता अपनाई तो प्रामाणिकता की प्रारंभिक
परीक्षा देने में जो अड़चन आती है उसे पार करते ही वे आसमान चूमने वाली सफलता प्राप्त
करने लगे और दशों दिशाओं से उन पर अजस्र सद्भाव-सहयोग बरसने लगा।
इन दिनों ऐसे ही उदार चेताओं की अत्यधिक आवश्यकता
है। महाकाल का युग निमंत्रण उन्हीं के लिए उतरा है। युग संधि के इस पुण्य पर्व पर उन्हें
आगे आना चाहिए। अत: प्रेरणा का अनुसरण करना चाहिए और मानवीय भविष्य
का दो टूक फैसला होने की इस निर्णायक बेला में युग पुरुषों जैसा रोल अदा करना चाहिए।
इस उदार साहसिकता को अपनाने में जो कृपण जेसे असमंजस में हैं उन्हें झाड़ू से बुहार
कर कूड़े-करकट के ढेर में ले जा पटकना चाहिए। युग धर्म
के निर्वाह में समयदान, अंशदान की दुहरी आवश्यकताएं पूर्ण करनी होंगी।
ऋषि रक्त से भरे गए घड़े की तरह उन्हें भी पहल करनी होगी ताकि युग संस्कृति की सीता
का अभिनव सृजन हो सके। त्याग-बलिदान की पुण्य परंपरा जागृत आत्माओं को
अपने ही जीवन क्रम से आरंभ करनी होगी। दूसरों से याचना करने से पहले यही न्यायानुकूल
है कि पहले अपनी ही पोटली खाली की जाय,
भले ही वह सुदामा
के बगल में दबे हुए थोड़े से चावल ही क्यों न हों।
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