केन्द्र शान्तिकुंज हरिद्वार के संचालन
की रूपरेखा
केन्द्र विश्वव्यापी बढ़ती गतिविधियों
के रूप में उभरते हुए केन्द्र शान्तिकुंज को ओर अधिक व्यवस्थित करने की आवश्यकता
प्रतीत हो रही है। भगवती गायत्री के पाँच मुखों की तरह हम पाँच अलग-अलग प्रकोष्ठ
बना सकते हैं।
1-
प्रचार
अभियान प्रकोष्ठ:- इसके
अन्तर्गत नौ दिवसीय, एक मासीय सत्र, झोला पुस्तकालय अभियान, गायन-वादन अभियान चलाने हैं। जो
व्यक्ति इस प्रकार के कार्यों में रूचि लेते हैं। मिशन का प्रचार करना चाहते हैं।
उनकी सेवाओं के लिए प्रचार अभियान प्रकोष्ठ बनाया जाए। मिशन के कार्यकर्ता तैयार
करना इस अभियान का मुख्य उद्देश्य हैं।
2-
साधना
अभियान प्रकोष्ठ:-
बहुत से व्यक्ति प्रचार कार्य में रूचि नहीं लेते परन्तु साधना में रूचि रखते हैं।
हमें क्षेत्रों में ऐसे बहुत से व्यक्ति मिले जो यह कहते हैं कि हम गंगातट के
किनारे सवा करोड़ गायत्री जप करना चाहते हैं। हमारी व्यवस्था शान्तिकुंज हरिद्वार
में करा दीजिए हम अपना खर्च स्वयं वहन करने के लिए तैयार हैं। इस सन्दर्भ में हमें
कोर्इ सटीक उत्तर उन लोगों को देते नहीं बनता। क्षेत्रों के लोगों में साधना की
भूख बढ़ रही है। इसके लिए एक अलग साधना प्रकोष्ठ की आवश्यकता प्रतीत हो रही है।
उभरते हुए साधन हमारे मिशन के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। इसलिए हमें
इस पक्ष पर ध्यान देना जरूरी है।
यदि हम परम पूज्य गुरुदेव के जीवनकाल
की बात करें तो उस समय गुरुदेव अधिकाँश लोगों को प्रचार कार्य में लगाते थे वे
कहते थे कि हमने आपके लिए बहुत कर रखा है। सम्भवत: इस समय साधना का वातावरण
विनिर्मित नहीं हो पाया था इस कारण गुरुदेव गिने चुने सुपात्रों को ही इसकी अनुमति
देते थे। एक परिजन ने गुरुदेव से कहा कि हमें ध्यान साधना में उन्नति करनी है तो
गुरुदेव ने झिड़का कि सूक्ष्म जगत में तो हाहाकार मचा है तू कैसे ध्यान साधना
करेगा? परन्तु अश्वमेघ यज्ञों व 108 कुण्डी यज्ञों द्वारा सूक्ष्म जगत का
परिशोधन हुआ है। इस कारण हमें साधना पक्ष को मजबूत करना होगा।
यदि हमने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो ये
उभरते साधक अन्य मिशनों की ओर पलायन करने की सोचेंगे जो हमारे लिए बड़े ही दु:ख की
बात होगी।
3-
रचनात्मक
अभियान प्रकोष्ठ:- सन
2001 से विश्वविद्यालय के रूप में मिशन को
एक बहुत बड़ी सफलता मिली। यह देव संस्कृति विश्वविद्यालय रचनात्मक गतिविधियों का
एक सशक्त केन्द्र के रूप में उभर रहा है। DSVV के
माध्यम से हम Multi National
Companies (MNCS) में
workshops लगा सकते हैं। Professional Colleges में
Seminars व Invilud Talks दे सकते हैं। ग्राम प्रबन्धन व गौशालाओं के निर्माण के लिए आवश्यक
सुविधाएँ उपलब्ध करा सकते हैं अनेक कुटीर उद्योगों की खोज, जल प्रबन्धन आदि पर यहाँ विस्तृत खोजें
(researches) सम्भव हैं। जैविक खेती, जड़ी बूटी प्रशिक्षण, सर्वधर्म समन्वय, Waste Management व विभिन्न प्रदूषण, पर्यावरण जागरण चिकित्सा पद्धतियों पर
खोज जैसे महत्वपूर्ण चर्चा अन्य विश्वविद्यालय सफलतापूर्वक कर रहा है। इस प्रकार
रचनात्मक अभियान के लिए DSVV
एक सशक्त केन्द्र बनकर समय की मांग को
पूरा करने में अपना अमूल्य योगदान दे रहा है।
4-
संगठन
प्रकोष्ठ:- 24,000 आत्मदानी स्तर के ब्रह्मकमल के रूप
में उभरती आत्माओं एवं सवा लाख हीरों का चयन इस प्रकोष्ठ के माध्यम से होना चाहिए।
प्रान्तीय स्तरों पर 24,51,108 लोगों की समितियों का गठन बहुत जरूरी
है जो अपने-अपने प्रान्त को समर्थ व सक्षम बनाए। उठती हुर्इ समस्याओं व उलझती
हुर्इ गुत्थियों का निबटारा प्रान्तीय स्तर पर ही हो। अन्यथा हर छोटे-मोटे झगड़ों
के लिए लोग केन्द्र की ओर दौड़ते हैं व केन्द्र के योग्य कार्यकताओं के समय को
नष्ट करते रहते हैं। इसी के अन्तर्गत कौन सा प्रान्त कितने सशक्त रूप में उभर रहा
है यह लेखा जोखा आवश्यक है। प्रान्तीय स्तर पर कार्यकर्ता funds बनने चाहिएं जिसमें आर्थिक रूप से
कमजोर कार्यकताओं की मदद की जा सके। अनेक बार कार्यकर्ता लोग आर्थिक रूप से मजबूर
होकर विद्रोह के तेवर अपनाने लगते हैं या गलत नीतियों पर चलने के लिए विवश हो जाते
हैं। इसके संगठन में तरह-तरह का तनाव उत्पन्न होता है। हर प्रान्त समिति का पता व E-mail
address व Phone
Nos. हमारी मुख्य
वैबसार्इट (main website) पर
हो। ताकि नए व्यक्तियों को न तो मिशन से जुड़ने में कठिनार्इ हो न पुरानों को अपनी
गतिविधियों का आगे बढ़ाने में कोर्इ बाधा आए। अनेकों बार अनेक व्यक्ति हमसे पूछते
हैं कि हमें इस शहर की मिशन की गतिविधियों का पता बताएं हम उसमें सम्मिलित होना
चाहते हैं। जैसे सभी MDOCS
MNC के मैनेजर ने
हमसे पूछा गुड़गाँव में हम मिशन की गतिविधियों में शामिल होना चाहते हैं। हमारे
पास उनके लिए कोर्इ जवाब नहीं था सिवाय टामटोल के। यदि प्रान्तीय स्तर पर हम यह सब
manage करें तो हमें बहुत लाभ होगा।
अभी जो जोनल कार्यालय हम खोल रहे हैं
उसमें हमें आशातीत सफलता नहीं मिल पा रही है इसमें कुछ सुधार की आवश्यकता प्रतीत
होती नजर आ रही है। अधिकतर हम बाहर के लोगों को बना देते हैं जो उस प्रान्त की
समस्याओं व लोगों के स्वभाव से अनभिज्ञ होते हैं।
5-
अतिथि-आगन्तुक
प्रकोष्ठ:-
बहुत से नए व्यक्ति अपने मिशन की जानकारी चाहते हैं। इसके लिए भी हमें सहृदय होना
होगा। इन्हें भी निराश नहीं करना है। हाँ इस प्रकार की भीड़ को नियन्त्रित करने के
लिए हम उनको फ्री सेवाऐं देने की बजाए Paid services दें अर्थात उनके ठहरने की व्यवस्था शुल्क लेकर करें जिसे यह विभाग
अपना खर्च स्वयं निकाले। हमारे अन्य विभाग मुफत होने चाहिएं परन्तु इस विभाग का
निठल्ले लोग न लाभ उठा पाएं इस कारण इसको मुफ्त न किया जाए। यह Self sustainable type कर हो जिससे हम व्यक्ति जितने दिन उतने
दिन के रहने, भोजन का खर्च ले लें। आय के 50% से यह प्रकोष्ठ चले व शेष 50% मिशन के अन्य भोजनालयों को दान रूप में
दिया जाए। इससे भोजन व्यवस्था पर बढ़त भार का समाधान भी निकल पाएगा। इस विभाग में
हम Luxury arrangement करके विदेशियों को भी आमन्त्रित कर
सकते हैं।
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