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ज्ञानयज्ञ को विश्वव्यापी
बनाने का सकंल्प
अब हम सर्वनाश
के किनारे पर
बिलकुल आ खड़े
हुए हैं। कुमार्ग
पर जितने चल
लिए उतना ही
पर्याप्त है। अगले
कुछ ही कदम
हमें एकदूसरे का
रक्तपान करने वाले
भेडि़यों के रूप
में बदल देंगे।
अनीति और अज्ञान
से ओत-प्रोत
समाज सामूहिक आत्महत्या
कर बैठेगा। अब
हमें पीछे लौटना
होगा। सामूहिक आत्महत्या
हमें अभीष्ट नहीं।
नरक की आग
में जलते रहना
हमें स्वीकार है।
मानवता को निकृष्टता
के कलंक से
कलंकित बनी न
रहने देंगे। पतन
और विनाश हमारा
लक्ष्य नहीं हो
सकता।
दुर्बुद्धि
और दुष्प्रवृत्तियों को
सिंहासन पर विराजमान
रहने देना सहन
न करेंगे। अज्ञान
और अविवेक की
सत्ता शिरोधार्य किए
रहना अब अशक्य
है। हम इन
परिस्थितियों को बदलेंगे,
उन्हें बदलकर ही रहेंगे।
शपथपूर्वक परिवर्तन के पथ
पर हम चले
है और जब
तक सामथ्र्य की
एक बूँद भी
शेष है, तब
तक चलते ही
रहेंगे। अविवेक को पदच्युत
करेंगे। जब तक
विवेक को मूर्द्धन्य
न बना लेंगे,
तब तक चैन
न लेंगे। उत्कृष्टता
और आदर्शवादिता की
प्रकाश किरणें हर अंतःकरण
तक पहुँचाएँगे और
वासना एवं तृष्णा
के निकृष्ट दलदल
से मानवीय चेतना
को विमुक्त करके
रहेंगे। मानव समाज
को सदा के
लिए दुर्भाग्यग्रस्त नहीं
रखा जा सकता,
उसे महान आदर्शो
के अनुरूप ढलने
और बदलने के
लिए बलपूर्वक घसीट
ले चलेंगे। पाप
और पतन का
युग बदला जाना
चाहिए, उसे बदलकर
रहेंगे। इस धरती
पर स्वर्ग का
अवतरण और इसी
मानव प्राणी में
देवत्व का उदय
हमें अभीष्ट है
और इसके लिए
भगीरथ तप करेंगे।
ज्ञान की गंगा
को भूलोक पर
लाया जाएगा और
उसके पुण्य जल
में स्नान कराके
कोटि-कोटि नर-पशुओं को नर-नारायाणों में परिवर्तित
किया जाएगा। इसी
महान शपथ और
व्रत को ज्ञानयज्ञ
के रूप में
परिवर्तित किया गया
है। विचार-क्रांति
की आग में
गंदगी का कूड़ा-करकट जलाने
के लिए होलिका-दहन जैसा
अपना अभियान है।
अनीति और अनौचित्य
के गलित कुष्ठ
से विश्वमानव का
शरीर विमुक्त करेंगे।
समग्र कायाकल्प का,
युग परिवर्तन का
लक्ष्य पूरा ही
किया जाएगा। ज्ञानयज्ञ
की चिनगारियाँ विश्व
के कोने-कोने
में प्रज्वलित होंगी।
विचार-क्रांति का
ज्योतिर्मय प्रवाह जन-जन
तक के मन
को स्पर्श करेगा।
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